कश्मीर में कोई धांधलीपूर्ण गठबंधन का प्रयास असंभव होगा

punjabkesari.in Sunday, Jul 15, 2018 - 03:01 AM (IST)

जम्मू -कश्मीर में आतंकवाद तथा बगावत के वर्तमान दौर के बीज राजीव गांधी ने 1987 में बोए थे जब नैशनल कांंफ्रैंस-कांग्रेस गठबंधन को बड़ी सफलता सुनिश्चित करने के लिए विधानसभा चुनावों में खुलकर बड़ी धांधली की गई। या फिर और अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि नवगठित केन्द्र विरोधी विषैले मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट, जो विभिन्न स्वतंत्र समूहों तथा नेताओं का एक गठबंधन था जो केन्द्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के समय किए गए वायदे के अनुसार स्वायत्तता के लिए दबाव बना रहा था, को वश में करने के लिए। 

राज्य में 1977 के बाद, जब मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री थे, जम्मू-कश्मीर में स्वतंत्र तथा पारदर्शी चुनाव नहीं करवाए गए। यदि घाटी के लोगों को अपनी इच्छा के अनुसार अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी जाती तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ता। मगर एक अनुभवहीन तथा पूरी तरह से बेखबर प्रधानमंत्री ने नैशनल कांफ्रैंस-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में बड़े पैमाने पर धांधली करने का आदेश दिया। परिणामस्वरूप फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने। 

मगर इसने कश्मीरियों के गुस्से तथा निराशा को और भी बढ़ा दिया। यहां तक कि वे ‘भारत में’ अपने मूल लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र नहीं थे। इसने भारत विरोधी तत्वों का हौसला बढ़ाया। अन्य के अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट ने हिंसा को न्यायोचित ठहराने के लिए लोगों के गुस्से का दोहन किया। बाद में अब्दुल्ला सरकार को हटाकर राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया। भारत अभी भी उस आग को बुझाने के लिए राजीव गांधी की मूर्खता की कीमत चुका रहा है जो 30 से अधिक वर्ष पूर्व ए.के. 47 संस्कृति द्वारा सुलगाई गई थी तथा प्रत्येक बीतते वर्ष के साथ और भी भड़क रही थी। 

हमने 1987 के चुनावों में धांधली को याद किया और उसके बाद जो कुछ हुआ वह इस संकटग्रस्त राज्य में मोदी सरकार द्वारा किसी भी गलत कार्य के खिलाफ चेतावनी है। इन रिपोर्टों से इंकार नहीं किया जा सकता कि कुछ निराश पी.डी.पी. विधायक भाजपा के साथ एक नया गठबंधन बनाना चाहते हैं। यद्यपि यह तथ्य कि पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने केवल सार्वजनिक तौर पर चेतावनी ही दी है, सुझाता है कि जम्मू-कश्मीर में इस तरह की कोई गतिविधि जारी है। वह पार्टी विधायकों को खोने के डर से चिंतित हैं और इसीलिए उन्होंने चेतावनी दी है कि उनकी पार्टी को तोड़कर भाजपा सम्भवत: वही बड़ी गलती दोहराएगी जो राजीव गांधी ने 1987 में की थी। 

उनके अनुसार भाजपा नेता मुफ्ती सरकार गिरने के बाद भी मंत्री पदों को हासिल करने के लिए लालायित हैं। उनके एक नेता ने विश्वास जताया कि चूंकि राज्य में कोई ङ्क्षहदू मुख्यमंत्री नहीं रहा, भाजपा, विद्रोही पी.डी.पी. विधायकों तथा साजिद लोन की पीपुल्स कांफ्रैंस व कुछ अन्य आजाद विधायकों, जो इस बात की परवाह किए बिना कि श्रीनगर में किस पार्टी की सरकार है, केन्द्रीय खुफिया एजैंसियों के साथ खेल खेलते रहे हैं, से मिलकर अगली सरकार बनाए जाने की खुलकर बातें की जा रही हैं। सम्भवत: यही कारण है कि विधानसभा को भंग करने की बजाय अभी लंबित स्थिति में रखा गया है। 

हालांकि कोई ऐसी अवसरवादिता तथा जम्मू केन्द्रित गठबंधन का प्रयोग केवल एक मूर्खता होगी। भाजपा का तर्क है कि राज्य पर कभी भी किसी ‘गैर पारिवारिक’ पार्टी ने शासन नहीं किया। इस तरह के अपने हित साधने वाले तर्क कश्मीरियों को मुख्यधारा राजनीति से और अधिक परे करते हैं जिसके लिए एक के बाद एक आने वाली केन्द्र सरकारों की गलत तथा अहंकारपूर्ण नीतियां, जिन्हें श्रीनगर के कठपुतली शासकों ने लागू किया, भी जिम्मेदार हैं। कश्मीर केन्द्रित पी.डी.पी. तथा जम्मू केन्द्रित भाजपा के बीच सत्ता की व्यवस्था का नया प्रयोग भी बुरी तरह से असफल रहा है। 

यदि मुस्लिम-हिंदू गठबंधन महबूबा मुफ्ती के अंतर्गत श्रीनगर तथा जम्मू के बीच बड़ी दरार को भरने में मदद नहीं कर सका तो आप को यह जानने के लिए राकेट साइंटिस्ट होने की जरूरत नहीं कि सामान्य कश्मीरी एक भाजपा नेता और वह भी जम्मू से, के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ किस तरह प्रतिक्रिया करेंगे। एक भाजपा सरकार 2014 के जनादेश का पूर्ण मखौल होगा। इसके अतिरिक्त जेहादियों तथा अलगाववादियों को ‘भारत द्वारा’ ऐसी सरकार थोपे जाने के खिलाफ अपने आंदोलन को दोगुना करने का कारण मिल जाएगा। 

उससे अधिक बड़ी आग से क्यों खेलें, जितनी से कश्मीर निपट सके? पर्याप्त जनादेश के बगैर कश्मीर में एक भाजपा सरकार कश्मीरियों का एक बड़ा अपमान होगी मगर उन सभी लोगों का भी जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया की  पवित्रता में विश्वास करते हैं। कश्मीर को वाजपेयी वाले ‘हीलिंग टच’ की जरूरत है न कि मोदी-शाह की तानाशाहीपूर्ण नीतियों की। इसके अतिरिक्त तथाकथित कड़ा रवैया कश्मीर को किसी भी तरह की सामान्यता के करीब नहीं लाया। यदि पी.डी.पी.-भाजपा प्रयोग असफल समाप्त होता है, सामान्य कश्मीरियों की अलगाव की भावना को समाप्त करने में असफल रहता है तो नि:संदेह आई.एस.आई. द्वारा इस आग को और भड़काए जाने के कारण किसी धांधलीपूर्ण गठबंधन के लिए इसका प्रयास करना असम्भव होगा।-वरिन्द्र कपूर


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Pardeep

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