पर्यावरण प्रदूषण रोकने पर ध्यान दें मोदी

punjabkesari.in Tuesday, Jun 18, 2019 - 04:19 AM (IST)

सितारों से आगे जहां और भी हैं। कह नहीं सकते कि समय मोदी को यहां तक लाया या मोदी ने स्वयं समय को घेर लिया? प्राय: समय जालिम होता है, पर गम्भीरता से विचार करें तो लगता है मोदी ने समय को अपने सांचे में ढाल लिया है। मोदी के जानकार जानते हैं कि मोदी समझौतावादी नहीं। जहां समय उन्हें यहां तक ले आया है वहीं मोदी का ‘विजन’ हमेशा समय से आगे झांकता है। 

मोदी को मैंने कभी कन्फ्यूज्ड नहीं देखा। स्पष्ट विजन, स्पष्ट उद्देश्य। बीच में समझौता नहीं। विजन देश सेवा, साधन, उसके लिए अथक परिश्रम, उद्देश्य ‘सबका विकास।’ इस बीच जो आएगा रौंदा जाएगा। मोदी के जानकार यह भी जानते हैं कि मोदी सौ साल पहले घटी घटना या बात को भूलते नहीं, दूसरा जब उनकी उंगली उठ गई तो आप नहीं या सामने वाला नहीं। उनके लिए बीच का रास्ता नहीं। उदाहरण रखता हूं। मेरे एक मित्र की जमीन पर भू-माफिया ने राजकोट में उनकी अनुपस्थिति में कब्जा कर लिया। बेचारा दोस्त मेरे पास आया। मोदी जी तब मुख्यमंत्री थे और मैं एक साधारण कार्यकत्र्ता। मोदी जी के आफिस जाकर उन्हें व्यथा सुनाई। मोदी जी ने राजकोट में डी.सी. को फोन किया कि मास्टर जी आ रहे हैं उन्हें मिलो। काम करके उसकी मुझे रिपोर्ट करो।  

मैं उठने लगा तो आदर सहित कहा मोदी जी चाय नहीं पूछोगे? मोदी जी बोले, मास्टर जी चाय चाहिए या काम? मैंने कहा काम। बोले तुरंत राजकोट जाइए, डी.सी. इंतजार कर रहा है। काम होते ही चले आइए, चाय काम होने के बाद पिएंगे। सच जानिए राजकोट में डी.सी. इंतजार कर रहा था। घंटे में जमीन का कब्जा छुड़ा लिया गया। मेरे मित्र दांतों तले उंगली दबाते कह रहे थे, वाह ओए मोदी, कमाल है मास्टर जी मोदी। यह उनके काम करने का ढंग है। प्राथमिकता क्या है? चाय या वह काम जिसके लिए इतनी दूर से हम गए थे? मेरे जैसा व्यक्ति होता तो चाय पर संतुष्ट हो जाता, काम देखा जाता बाद में। 

मोदी जी की सोच देखिए कि मास्टर जी मित्र सहित पंजाब से गुजरात आए हैं तो इनके काम को पहले किया जाना चाहिए। यह उनकी कार्यशैली का हिस्सा है। प्राथमिकता किसे देनी है? चुनाव किस का करना है? बहुतों का भला किस में है। सौ के भले के लिए एक व्यक्ति को छोड़ा जा सकता है। यह कौन सोच सकता है? मोदी समय के आगे की सोचते हैं इसलिए उन्होंने समय को अपने घेरे में ले लिया है। आज सब लोग सारा देश मोदी-मोदी कर रहा है तो कोई बात होगी उनमें।

प्राथमिकताएं तय करते हैं
मोदी जी हमेशा अपनी प्राथमिकताएं तय कर लेते हैं और फिर उनके क्रियान्वयन में लग जाते हैं, पीछे मुड़कर देखना ही नहीं। लक्ष्य तक पहुंचना है बस यही धुन रहती है। इसीलिए तो उन्होंने समय को बांध लिया। लोकसभा के 2019 के चुनाव में  प्रचंड बहुमत कोई यूं ही तो मिला नहीं। पता था महागठबंधन ढीला है। महत्वाकांक्षाओं पर टिका है। देशहित में नहीं। जीतेगा भी नहीं। प्रहार किया महागठबंधन पर। चित्त कर दिया महागठबंधन को भरी दोपहरी में। कांग्रेस डूब रहा जहाज है। राहुल गांधी मोदी का विकल्प नहीं हो सकते। मोदी जी सब भांप चुके थे। ऐसे हालात में उन्होंने तय कर लिया कि आगे बढऩा है। 18 घंटे काम करना है। अनथक परिश्रम ही वर्तमान स्थिति से उभार सकता है। 

अत: सारे चुनाव में 150 विशाल रैलियों को स्वयं सम्बोधित किया। एक दिन में तीन से चार रैलियां। चार घंटे लगातार एक स्वर, एक स्तर में बोलना कोई खाला जी का बाड़ा नहीं। विपक्ष चौकीदार चोर है की रट लगाता रहा और मोदी जी सारे भारत की जनता को अपने साथ ले उड़े। न केवल लोकसभा में प्रचंड बहुमत लिया बल्कि देश के सर्वसम्मत, सर्वमान्य प्रधानमंत्री दोबारा बन गए। अपने दल को अकेले दम 303 सीटें लोकसभा की दिला दीं। कौन कर सकता है यह सब? जो कन्फ्यूज्ड न हो, हालात को अपने अनुकूल ढालने में समर्थ हो, समझौतावादी न हो, जिसका विजन क्लीयर हो, ध्येय सीधा और स्पष्ट हो। उसका नाम है मोदी। यह बात सच है कि एक सच्चा दोस्त मिल जाए तो इंसान दुनिया जीत सकता है। मोदी को अमित शाह के रूप में एक सच्चा दोस्त इस राह में मिल गया। दोनों ने मिलकर असंभव को संभव कर दिया। 

भविष्य की चुनौतियां
मीडिया कह रहा है मोदी जी को इतना प्रचंड बहुमत मिला है तो अब उन्हें भविष्य की चुनौतियों के लिए भी तैयार हो जाना चाहिए। मुझे लगता है मीडिया मोदी को चिढ़ा रहा है। मोदी को समय, स्थान और परिस्थिति को पहचानना आता है। यकीनन मोदी मीडिया से भी पहले भारत के आगामी भविष्य की योजनाएं  तैयार कर चुके हैं। मीडिया यही कहेगा  न कि भारत का नौजवान हताश है, निराश है, बेकार है, 6 करोड़ पढ़े-लिखे युवा नौकरियों की बाट जो रहे हैं। यही कि देश में प्रति वर्ष एक करोड़ शिक्षित युवा नौकरी की तलाश में नए-नए प्रमाण पत्र लेकर बेरोजगारी की सड़क पर निकल आते हैं। चैलेंज तो है ही, परंतु मोदी जी इससे बेखबर नहीं। भ्रष्टाचार भारत की रग-रग में व्याप्त है। 

मोदी ने प्रतिबद्धता से घोषणा की है, ‘न खाऊंगा न खानेे दूंगा।’ मोदी खाएगा भी क्यों? उनका तो परिवार ही देश के एक अरब तीस करोड़ लोग हैं। पारिवारिक उत्तरदायित्व निज का कोई है नहीं। अत: घोटाले तो मोदी साहिब होने ही नहीं देंगे। मेरी यह बात तो पाठक भी स्वीकार करेंगे कि मोदी क्रप्ट नहीं। बड़बोले जरूर हैं पर खाने वाले नहीं। लालू प्रसाद यादव, ओम प्रकाश चौटाला चोटी के मुख्यमंत्री मोदी की जेलों में बंद हैं। यह मैं थोड़ा बहुत अनुभव कर रहा हूं कि नोटबंदी से भारत के लघु, कुटीर उद्योग जरूर डगमगाए हैं। मोदी जी से अर्ज इन्हीं पंक्तियों से किए देता हूं कि लघु और कुटीर उद्योगों के लोगों का विश्वास बहाल जरूर कीजिए।

मीडिया वालों की एक बात सहर्ष स्वीकार करता हूं कि रुपए की परचेजिंग पावर अवश्य घटी है। रुपया अपने बदले बाजार से कुछ खरीद ही नहीं पा रहा। अमरीकी डालर के सामने भारतीय रुपया असहाय महसूस करता जा रहा है। पैट्रोल, डीजल की नित्य बढ़ती जा रही कीमतें आम जनता के लिए ङ्क्षचता का विषय बन रही हैं। मोदी जी अपने समय में महंगाई पर लगाम लगा गए तो समझो कि सौ प्रतिशत भारत की महिलाएं मोदी की जय जय में लग जाएंगी। मोदी की आए दिन घोषणाएं मीडिया वालों को सोचने पर विवश कर रही हैं कि मोदी जी की सरकार भारत के  सकल घरेलू उत्पादन को बढ़ाने में सतत् लगी हुई है। पक्ष-विपक्ष के अर्थशास्त्रियों को एक टेबल पर लाने के प्रयत्न किए जा रहे हैं। देश के बड़े-बड़े अर्थशास्त्री इस बात की सोच में लगे हैं कि मानवीय संसाधनों का उचित प्रयोग हो सके। मानवीय सेवाओं का उचित मूल्य निर्धारित किया जा सके। कारखानेदार और किसान ईमानदारी से परिश्रम कर इस देश का उत्पादन बढ़ाएं। उत्पादन बढ़ेगा तो देश का विकास होगा। देश का विकास होगा तो मोदी का सपना साकार होगा। 

पर्यावरण संतुलन पर ध्यान दें
फिर भी नैतिकता का तकाजा है कि उत्पादन, भ्रष्टाचार, विकास, बेरोजगारी से भी पहले मोदी दो चीजों की प्राथमिकताओं से आंखें बंद न करें। पहली बात जिस की ङ्क्षचता मीडिया को भी करनी चाहिए और मोदी साहिब के भी ध्यान में रहनी चाहिए कि इस देश की धरती गर्म हो रही है। नदियां गंदे नालों में तबदील हो रही हैं। वृक्षों  का कटान धड़ाधड़ हो रहा है। मौसम का मिजाज आए दिन बिगड़ रहा है। धरती, वायु, पानी दूषित हो रहा है। भारत बचेगा कैसे? बुद्धिजीवी वातावरण के दूषित होने की चिंता नहीं कर रहे। विकास की सभी योजनाएं पीछे कर मोदी जी पर्यावरण में संतुलन साधने ंकी चिंता करें। पर्यावरण बचेगा तो मनुष्यता बचेगी।

मनुष्यता बचेगी तो विकास की सोचेंगे। धरती मर गई, नदियां गंदे नाले बन गईं या हवा सांस लेने के काबिल न रही तो बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, उत्पादन वृद्धि को मनुष्य चाटता फिरेगा? मोदी जी प्राथमिकता तय करें। दूसरा भारत की जनता गंदगी में रहने की आदी हो चुकी है। मोदी जी कोई ऐसा मील का पत्थर स्थापित करें जिससे देश की जनता स्वच्छता को अपना आदर्श बनाए। जगह-जगह गंदगी के ढेर, नालों की बदबू, आवारा पशुओं की भरमार मानवता पर कलंक हैं। मोदी साहिब ऐसी योजनाएं सार्थक करें कि देश के लोग अपने चौगिर्दे पर गर्व कर सकें। दोनों समस्याएं देश के वन विभाग को सौंपी जा सकती हैं। वृक्ष लगाना और उसे बचाना अनिवार्य कर दिया जाए।-मा. मोहन लाल पूर्व ट्रांसपोर्ट मंत्री, पंजाब


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