अब मुस्लिम आतंकवाद को ‘तीसरा विश्व युद्ध’ मान लेना चाहिए
punjabkesari.in Wednesday, Nov 18, 2015 - 11:20 PM (IST)

(विष्णु गुप्त): दुनिया स्वीकार करे या न, दुनिया के बुद्धिजीवी स्वीकार करें या न, दुनिया के सुरक्षा विशेषज्ञ स्वीकार करें या न, दुनिया को नियंत्रित करने वाले व दुनिया की शांति को सुनिश्चित करने वाले नियामक स्वीकार करें या न-पर यह सौ प्रतिशत सही है कि मुस्लिम आतंकवाद अब किसी एक देश की समस्या नहीं रही है बल्कि यह समस्या अब विश्वव्यापी हो गई है। इतना ही नहीं, बल्कि मुस्लिम आतंकवाद की समस्या को अब तीसरे विश्वयुद्ध के तौर पर देखा जाना चाहिए।
क्या यह सही नहीं है कि एक तरफ मुस्लिम आतंकवादी हैं और दूसरी तरफ पूरी दुनिया है? एक तरफ आई.एस.आई.एस., तालिबान, अलकायदा, बोको हराम, सिमी, पी.एफ.आई., हमास, हिजबुल जैसे दर्जनों नहीं बल्कि सैंकड़ों मुस्लिम आतंकवादी/ हिंसक संगठन हैं तो दूसरी ओर मुस्लिम आतंकवाद से पीड़ित भारत, इसराईल, अमरीका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस जैसे बड़े देश हैं। दर्जनों छोटे-छोटे देश भी हैं जिनकी संप्रभुता इस्लामिक आतंकवाद से दग्ध है, इनकी संप्रभुता खतरे में है। यह भी सही है कि ये सभी बड़े और शक्तिशाली देश भी मुस्लिम आतंकवाद के सामने असमर्थ और हताश व असफल हैं, जबकि मुस्लिम आतंकवादी संगठन अपने तरह-तरह के हथकंडे से दुनिया में जहां चाहते हैं वहां ङ्क्षहसक घटनाएं अंजाम देकर निर्दोष लोगों की जिंदगियां तबाह करते हैं।
अब तक न तो इस्लामिक आतंकवाद के मूल को पहचाना गया है और न ही आतंकवाद के मूल परकोई प्रहारकारी हमला ही हुआ है। सिर्फ कुछ हथियारवर्षक विमानों से हमला कर देने मात्र से इस्लामिक आतंकवाद कभी भी जमींदोज नहीं हो सकता है। तथाकथित मानवाधिकार के नाम पर इस्लामिक आतंकवाद को संरक्षण दिया जाता है, शरणार्थी के हथकंडे से यूरोप और अमरीका में मुस्लिम आतंकवादियों को आमंत्रण देकर दुनिया की शांति में हिंसा का धरातल बनाया जाता है। ऐसी खतरनाक व्यवस्था व नीति जब तक जारी रहेगी तब तक दुनिया इस ङ्क्षहसा से कैसे मुक्त हो सकती है?
दुनिया यह क्यों नहीं समझती कि मुस्लिम आतंकवादी कोई आसमान पर नहीं रहता है, मुस्लिम आतंकवादी कोई जमीन के नीचे नहीं रहता, मुस्लिम आतंकवादी कोई ‘मिस्टर इंडिया’ फिल्म की तरह अदृश्य नहीं होता है। मुस्लिम आतंकवादी आम मुस्लिम आबादी के बीच में ही रहता है, मुस्लिम आबादी के बीच से ही मुस्लिम आतंकवादियों को संरक्षण, सहयोग मिलता है और आर्थिक मदद मिलती है। मुस्लिम आतंकवादी कभी मानवाधिकार के हथकंडे, कभी गरीबी, कभी तथाकथित औपनिवेशिक विरोध के हथकंडे के नाम पर अपने लिए तथाकथित बुद्धिजीवियों और मीडिया में संरक्षण और समर्थन हासिल करते हैं।
दुनिया भर के बुद्धिजीवी और मीडिया मुस्लिम आतंकवाद को यह कहकर बढ़ावा देते हैं कि इस्लाम के खिलाफ दुनिया भर में जारी विरोध के कारण मुस्लिम आतंकवाद बढ़ता है, मुस्लिम आतंकवाद से मुस्लिम युवक-युवतियां जुड़ते हैं। बुद्धिजीवियों और मीडिया की जब तक ऐसी सोच जारी रहेगी तब तक यह सोचा भी नहीं जा सकता है कि हम मुस्लिम आतंकवाद को निशाने पर लेकर उसे मिलने वाले समर्थन और सहयोग पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे हथकंडे पर कब निश्चितकारी चोट पहुंचेगी, यह कहना मुश्किल है।
मुस्लिम आबादी की सोच और समझ एक समान है। भारत की मुस्लिम आबादी जो सोच रखती है, वही सोच चीन की मुस्लिम आबादी रखती है, वही सोच अमरीका,यूरोप, अफ्रीका, लैटिन अमरीका की मुस्लिम आबादी रखती है। इसका कारण दुनिया क्यों नहीं समझती है? ऐसा नहीं है कि दुनिया कारण तक नहीं पहुंच सकती है। दुनिया समझ कर भी उस सोच पर अपना चाबुक नहीं चलाना चाहती है।
अब सवाल यह है कि पूरी दुनिया की मुस्लिम आबादी की सोच क्या है? वास्तव में राष्ट्रवाद की कल्पना इस्लाम में है ही नहीं। इसीलिए कि पूरी दुनिया की मुस्लिम आबादी राष्ट्रवाद को मानती ही नहीं है। पूरी दुनिया की मुस्लिम आबादी पूरी दुनिया को ही अपना राष्ट्र मानती है। इसीलिए पूरी दुनिया की मुस्लिम आबादी राष्ट्र की अवधारणा से दूर है, राष्ट्र की परिधि से मुक्त है। इस सोच के पक्ष में कई उदाहरण हैं, कई तथ्य हैं। उदाहरण व तथ्य यह है कि कभी तालिबान, कभी अलकायदा, कभी बोको हराम, कभी हमास तो कभी आई.एस. जैसे मुस्लिम आतंकवादी-हिंसक संगठनों में शामिल होने के लिए अमरीका, यूरोप, भारत में रहने वाली मुस्लिम आबादी जुड़ती है। क्या यह सही नहीं है कि अमरीका, यूरोप और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की मुस्लिम आबादी आई.एस. के साथ जुड़ी है?
शरणार्थी के हथकंडे को भी अमरीका-यूरोप समझने के लिए तैयार नहीं हैं। मुस्लिम आतंकवादियों की शरणार्थी सोच और नीति बड़ी खतरनाक है। इसका दुष्परिणाम फ्रांस में अभी-अभी देखने को मिला है। आई.एस. ने हमला कर फ्रांस में 200 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया। सीरिया, ईराक, लेबनान, नाइजीरिया, सूडान जैसे मुस्लिम देशों में हजारों-लाखों की मुस्लिम आबादी यूरोप और अमरीका में शरण ले चुकी है और लाखों की संख्या में मुस्लिम आबादी शरण के लिए तैयार बैठी हुई है। अमरीका-यूरोप का राष्ट्रवादी तबका यह सोच रखता है कि यह कोई मुस्लिम शरणार्थी नहीं है बल्कि इसे मुस्लिम ‘जनसंख्या आक्रमण’ के तौर पर देखा जाना चाहिए।
यह सही है कि मुस्लिम कट्टरपंथी दो तरह से पूरी दुनिया में इस्लाम की पताका फहराना चाहते हैं। एक तो है अपनी आबादी बढ़ाना, इसीलिए मुस्लिम आबादी अधिक बच्चे पैदा करती है। दूसरा है गैर मुस्लिम देशों में शरणार्थी बनकर अपनी आबादी स्थापित करना और बाद में उस गैर मुस्लिम देश पर इस्लाम का झंडा फहराना। इस नजरिए से अगर हम देखें तो मुस्लिम कट्टरपंथियों की यह सोच विजय प्राप्त करने की सीमा तक पहुंच चुकी है। आज अमरीका और यूरोप की कहानी क्या ऐसी नहीं है।
सच्चाई यह है कि जिस अमरीका व यूरोप ने तथाकथित मानवाधिकार के नाम पर मुस्लिम आबादी को संरक्षण दिया, वही मुस्लिम आबादी अब यूरोप और अमरीका को अपनी हिंसक व आतंकवादी नीति से चपेट में लेने के लिए तैयार बैठी हुई है। मुस्लिम आबादी खुद अमरीका-यूरोप की संप्रभुता को तहस-नहस करने पर तुली हुई है। आई.एस., तालिबानी, अलकायदा, बोको हराम, हमास जैसे आतंकवादी संगठनों ने अमरीका-यूरोप की मुस्लिम आबादी को अपनी चपेट में ले लिया है। अब यहां सोचने और विश्लेषण करने की बात यह है कि जिस मुस्लिम आबादी को अमरीका-यूरोप ने अपने यहां जगह देकर लोकतांत्रिक जीवन दिया, आगे बढऩे के लिए अवसर दिया वही मुस्लिम आबादी अमरीका-यूरोप की संप्रभुता के खिलाफ मुस्लिम आतंकवादी संगठनों के साथ समर्थन और सहयोग की राह पर चल रही है। ऐसी मुस्लिम आबादी को किस नाम से पुकारा जाना चाहिए?
फ्रांस में हुए वीभत्स आतंकवादी हमलों से दुनिया को सबक लेना चाहिए। यह समझ लेना चाहिए कि यह कोई अकेले फ्रांस की समस्या नहीं है। यह पूरी दुनिया की समस्या है पर पूरी दुनिया को यह बात समझ नहीं आ रही है कि जब तक मुस्लिम आतंकवाद को इस्लामी चश्मे से नहीं देखा जाएगा तब तक इस समस्या का समाधान नहीं होगा। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को अब मुस्लिम आतंकवाद को तीसरे विश्वयुद्ध के तौर पर देखना चाहिए।