मोदी सरकार से 2014 के मुकाबले अधिक अपेक्षाएं

punjabkesari.in Tuesday, Jun 04, 2019 - 12:48 AM (IST)

पुरानी व्यवस्था बदलती है और नए मानदंड स्थापित होते हैं। शासन, विकास और आर्थिक वृद्धि के बोझ से मुक्त नई सरकार। स्वराज और जेतली का स्वास्थ्य कारणों से सरकार में शामिल न होना तथा कूटनयिक और पूर्व विदेश सचिव जयशंकर का सरकार में सीधे शामिल होना और 2014 के 40 प्रतिशत मंत्रियों को पुन: मंत्री न बनाने के बाद मोदी ने नई सरकार की कार्यशैली और इरादों को स्पष्ट कर दिया है, साथ ही बदलाव और विकास का एक सशक्त संदेश भी दिया है। राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा और क्षेत्रीय आकांक्षा (नारा) उनकी कार्यशैली को दर्शाता है। इस बार मोदी सरकार से 2014 से अधिक अपेक्षाएं हैं और मतदाताओं का विश्वास जीतने के लिए नमो को सर्वोत्तम संसाधनों का उपयोग करना होगा तथा भारत के हितों की रक्षा के लिए नए संसाधन जुटाने होंगे। आर्थिक वृद्धि, विकास, सुरक्षा और स्थिरता के लक्ष्यों को प्राप्त करना होगा।

प्रधानमंत्री विशेषज्ञता, ज्ञान और परिश्रम को महत्व देते हैं और उन्होंने अपनी इस सरकार में नए चेहरे शामिल किए हैं। साथ ही जिन मंत्रियों का कार्य निष्पादन अच्छा रहा है उन्हें पुरस्कृत किया है ताकि समुचित राजनीतिक संतुलन बनाया जा सके और इस क्रम में उन्होंने अपनी 58 सदस्यीय मंत्रिपरिषद में सभी राज्यों को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया है। उन्होंने ऐसे नए चेहरों को शामिल किया है जिन्होंने चुनाव के दौरान अपनी क्षमता का परिचय दिया, जिनमें विशेषज्ञता और अनुभव है तथा जो उद्देश्य के प्रति समर्पित हैं तथा भाजपा के जनाधार को बढ़ाने में मदद करेंगे।

2019 के चुनाव की 5 मुख्य बातें इस प्रकार हैं। हम फोर्थ पार्टी सिस्टम या प्रगतिशील युग में प्रवेश कर गए हैं। अमरीकी राजनीति में 1890 से 1920 तक रिपब्लिकन पार्टी का वर्चस्व था जिसने अनेक राजनीतिक सुधार किए तथा राजनीतिक भ्रष्टाचार का अंत किया। भारत में 1989 के बाद का राजनीतिक विखंडन का युग समाप्त हो गया है क्योंकि 2019 के चुनावों ने उस प्रवृत्ति की पुष्टि की है जो हमें 2014 में देखने को मिली थी। भाजपा ने उस केन्द्रीय स्तंभ का स्थान ले लिया जो कभी कांग्रेस हुआ करती थी और जिसके चारों ओर राजनीति घूमती थी और पार्टी हमेशा राजनीतिक अभियान के दौर में रहती है।

दूसरा, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को मंत्रिमंडल में शामिल कर एक नया आयाम स्थापित किया गया है। अब तक अमित शाह राजनीतिक मंच के बैकरूम में रहते थे, अब उन्हें केन्द्र में लाया गया है। गृह मंत्रालय एक ऐसा मंत्रालय है और उसके पास ऐसी शक्तियां हैं जिनका आनंद शाह उस समय से ले रहे हैं जब 2002 में वह और मोदी गुजरात में एक बड़ी शक्ति बनकर उभरे थे। शक्तियों के केन्द्रीकरण के मामले में उनके और प्रधानमंत्री के बीच क्या समीकरण रहेंगे? सरकार और जनता के बीच जवाबदेही का क्या होगा? भारत में प्रशासनिक सुधारों की अत्यावश्यकता है।

नौकरशाही, पुलिस और कानून के शासन में व्यापक बदलाव की आवश्यकता है। वर्तमान स्थिति ऐसी है कि भारतीय राज्य का इकबाल कमजोर पड़ गया है जिसके चलते आज हर कोई कानून द्वारा शासन करना चाहता है। एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा कश्मीर का है जहां पर अनेक आतंकवादियों के मारे जाने के बावजूद आतंक अभी भी फैला हुआ है। राज्य में सामान्य स्थिति की बहाली के लिए वहां शीघ्र चुनाव कराने होंगे। यह भी प्रश्न उठता है कि क्या भाजपा सरकार अनुच्छेद 370 और 35-ए के मामले में अपने चुनावी वायदे को पूरा करेगी।

राजनीति और हिन्दू विचारधारा 
तीसरा, प्रधानमंत्री को पार्टी की राजनीति और हिन्दू विचारधारा के बीच संतुलन बनाना होगा। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि क्या नमो का भारत मूल लोगों के लोकतंत्र की ओर बढ़ रहा है जिसमें मूल लोगों के राष्ट्र की रक्षा के लिए बहुसंख्यक समुदाय को एकजुट करना होता है? क्या इसके लिए मोदी सरकार असम के अलावा अन्य राज्यों में भी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर लागू करेगी और नागरिकता संशोधन विधेयक पारित करवाएगी या संघ परिवार की इच्छा के अनुसार पाठ्य पुस्तकों को फिर से लिखने की परियोजना को लागू करेगी? इन प्रश्नों का उत्तर केवल मोदी ही दे सकते हैं। 
राजनीतिक दृष्टि से भारत में इस समय राष्ट्रवाद के अनेक स्वरूप सक्रिय हैं। पहला, हिन्दुत्व या बहुसंख्यकवाद है और यह बताता है कि भविष्य में भारतीय समाज पर किस तरह शासन किया जाएगा। दूसरा, भावनात्मक राष्ट्रवाद है जिसमें भारत की प्रादेशिक अखंडता, देशभक्ति और देश के प्रति निष्ठा पर बल दिया गया है।

तीसरा, बाहुबल वाला राष्ट्रवाद है जो बाहर से देखने पर राष्ट्रवाद पर ध्यान केन्द्रित करता है और जो विश्व के अन्य देशों में भारत की भूमिका पर आधारित है। क्या भारतीय राजनीति और समाज के लिए हिन्दू राष्ट्रवाद डिफॉल्ट मोड बन जाएगा? भारत का दक्षिणपंथ की ओर झुकाव भगवा संघ की रणनीति का हिस्सा है जहां पर राष्ट्रवाद की प्रकृति को पुन: परिभाषित किया जा रहा है और सांस्कृतिक पहचान पर पुन: बल दिया जा रहा है। किंतु हो सकता है हिन्दुत्व सभी भारतीयों को पसंद न आए क्योंकि देश में सामाजिक, मूलवंशीय, भाषायी विविधता है और लोकतंत्र इन सबको जोड़ता है। मोदी ने राष्ट्रवाद का उपयोग किया और कहा कि भारत को सबसे पहले रखा जाना चाहिए। पुलवामा और बालाकोट के दौरान यह राष्ट्रवाद देखने को मिला और मतदाताओं ने पुन: उन्हें अपना मत दिया।

आर्थिक वृद्धि और विकास
चौथा आर्थिक वृद्धि और विकास है। इस मामले में मोदी किसी तरह की उदासीनता नहीं अपना सकते हैं। मंत्रिमंडल की अपनी पहली बैठक में उन्होंने 6 हजार रुपए प्रति वर्ष वाली प्रधानमंत्री किसान योजना सभी किसानों पर लागू की और आतंकवादी या माओवादी हमलों में शहीद हुए पुलिसकर्मियों के बच्चों की छात्रवृत्ति को बढ़ाया। यह छात्रवृत्ति राष्ट्रीय रक्षा निधि और प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति योजना के अंतर्गत दी जाती है। मोदी की पहली चुनौती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना है। चाहे वह रोजगार सृजन हो, महंगाई हो या कृषि संकट। अब तक राजग-1 ने संभलकर कदम उठाए थे क्योंकि राज्यसभा में उसका बहुमत नहीं था और फिलहाल भी यही स्थिति बनी हुई है।

देखना यह है कि मोदी इस मोर्चे पर किस तरह आगे बढ़ते हैं। नि:संदेह वह व्यापार जगत के पक्ष में अपने एजैंडे को आगे बढ़ाते रहेंगे, किंतु देखना यह है कि क्या यह व्यापारियों के हित में होगा या बाजार के हित में। इसके अलावा अगले पांच वर्षों में बुनियादी समस्याओं रोटी, पानी, कपड़ा, मकान, सड़क और नौकरी पर ध्यान देना होगा। अपने पहले कार्यकाल में मोदी ने सरकारी संसाधनों का उपयोग शौचालय, बिजली कनैक्शन, गैस सिलैंडर, प्रत्यक्ष नकद अंतरण जैसी बुनियादी सुविधाओं पर खर्च किया और अब उन्हें इस पर बल देना होगा ताकि ये परियोजनाएं सफल हों।

हाल ही में हावर्ड के एक अर्थशास्त्री ने पूछा कि चीन में लोकतंत्र न होने के बावजूद भारत की तुलना में आर्थिक मोर्चे पर उसका कार्य निष्पादन अच्छा क्यों रहता है जबकि भारत में लोकतंत्र है। लगता है वह नोबेल पुरस्कार विजेता गुन्नार मृदाल की भावना को व्यक्त कर रहे हैं जिन्होंने कहा था कि भारत एक नरम राज्य है और इस अंतर का कारण मजबूत चीन राज्य है। चीन अनुशासन, परिश्रम और स्पष्ट दृष्टिकोण के कारण 70 के दशक से ही एक महाशक्ति बन रहा है और इस मामले में भारत की उससे कोई तुलना नहीं है। पांचवां, नए मंत्रिमंडल की रचना बताती है कि मोदी ने न केवल क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखा अपितु उन राज्यों पर विशेष बल दिया जहां पर चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा और अपनी जीत जारी रखने के लिए वह नए मंत्रिमंडल में नए मंत्री भी शामिल कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश से भाजपा को लोकसभा में 62 सीटें मिलीं तो वहां से 8 मंत्री बनाए गए और महाराष्ट्र, हरियाणा व झारखंड में इस वर्ष चुनाव होने हैं तो इन तीनों राज्यों से 11 मंत्री बनाए गए।

क्या अच्छे राजनेता भी बन पाएंगे
वस्तुत: मोदी की नई सरकार के 6 माह के कार्यकाल पर नजर रखनी होगी कि वह किस तरह अपने हिन्दू जनाधार के विश्वास और भारत के अल्पसंख्यक समुदाय के मन में भय के बीच संतुलन बनाते हैं। हालांकि उन्होंने इस बार सबका विश्वास पर बल दिया है और नई पीढ़ी तुरंत परिणाम चाहती है जिन्हें रोजगार और बेहतर जीवन शैली चाहिए। वस्तुत: मोदी के समक्ष कठिन चुनौतियां हैं।  हमारे मतदाताओं की स्मृति क्षणिक होती है और वे माफ नहीं करते हैं। इसलिए यह चुनौती और भी बढ़ जाती है। क्या साधारण चाय वाले से असाधारण प्रधानमंत्री बने मोदी एक अच्छे नेता से एक अच्छे राजनेता बन पाएंगे? राजनीति को पुन: परिभाषित कर परिणाम दे पाएंगे? उनका पिछला रिकार्ड यही बताता है कि वह कर सकते हैं और वह करेंगे। कुल मिलाकर 2024 में मोदी की इस सरकार के कार्यकाल के समाप्त होने तक 21वीं सदी का एक चौथाई समय भी समाप्त हो जाएगा। मतदाताओं ने उन्हें एक ऐतिहासिक अवसर दिया है। क्या वह भारत को एक फलता-फूलता रामराज्य बनाएंगे? यह समय ही बताएगा।
—पूनम आई. कौशिश  pk@infapublications.com


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