मोदी को अपने राजनीतिक विरोधियों से किसी तरह का डर नहीं

punjabkesari.in Sunday, Mar 25, 2018 - 03:50 AM (IST)

आप जानते हैं कि एक उपचुनाव से दूसरे उपचुनाव तक राजनीतिक मूड में कितने उतार-चढ़ाव आते हैं। त्रिपुरा में अपनी सनसनीखेज जीत के बाद भाजपा बहुत ऊंची हवा में उड़ रही थी और सम्भवत: विपक्ष अपने जख्म सहला रहा था। लेकिन कुछ ही दिनों में सपा और बसपा के बीच असम्भव सा गठबंधन हो गया जिसे हम ‘मजबूरी का नाम महात्मा गांधी’ वाली शैली में बयां कर सकते हैं। इस गठबंधन ने फूलपुर और गोरखपुर के संसदीय उपचुनाव में अपना रंग दिखाया और मोदी विरोधी शक्तियों को नया दमखम प्रदान कर दिया। 

अब वे इस तरह इतराए हुए हैं जैसे 2019 का आम चुनाव ही जीत गए हों। यू.पी. और बिहार में शर्मनाक ढंग से रद्द हो चुकी कांग्रेस पार्टी भाजपा को पहुंची इस चुनावी क्षति से खूब इतराई हुई है और इस खुशी में अपनी दुर्दशा से आंखें मूंदे हुए है। वैसे राहुल गांधी की विवेकहीन आक्रामकता को किसी विशेष दलील की जरूरत भी नहीं होती। फिर भी समझदार तत्वों द्वारा यह माना जा रहा है कि 2019 के चुनावों के बारे में भविष्यवाणी करना अभी बहुत बड़ी जल्दबाजी होगी। तीसरे मोर्चे अथवा संघीय मोर्चे की तरह-तरह की बातों के बावजूद मोदी ऐसे लोकप्रिय नेता हैं कि कोई विरोधी नेता उनके आसपास भी नहीं पहुंचता। ऐसे में वह निश्चय ही अगले 5 वर्ष के लिए अपने पद पर जमे रहेंगे। 

वास्तव में असली समस्या यह नहीं कि विपक्ष इतना प्रसन्न क्यों है कि यह अभी से ऐसा व्यवहार कर रहा है जैसे इसने अगला चुनाव जीत लिया हो। असली समस्या तो यह है कि सत्तारूढ़ पार्टी का एक वर्ग इस तरह का व्यवहार कर रहा है जैसे भाजपा और राजग 2019 का चुनाव अभी से हार गए हों। भाजपा के निराशावादियों में से अधिकतर वे लोग हैं जो अपने आपको मोदी सरकार में उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उनके मन में यही शिकायत है कि सत्ता में उन्हें हिस्सा क्यों नहीं मिला। प्रधानमंत्री की कार्यशैली ही कुछ ऐसी है कि उनके अधिकतर सहयोगी मंत्री अपने-अपने विभागों में अपनी मनमर्जी नहीं चला पा रहे। इसी कारण वरिष्ठ पार्टी नेता भी यदि कुछ को फालतू सा महसूस कर रहे हैं तो यह कोई हैरानी की बात नहीं। 

फिर भी सत्तारूढ़ पार्टी में हर कोई अगली बार भी मोदी के जीतने की उम्मीदें लगाए बैठा है। विपक्ष के पास मोदी जैसी ऊर्जा, राजनीतिक कौशल और करिश्मे वाला एक भी नेता नहीं है और न ही इसके पास राजनीतिक दलों की खिचड़ी को एकजुट रखने के लिए कोई वैकल्पिक कार्यक्रम है। इसके पास केवल कान फाडऩे वाली शोर मचाने की शक्ति ही शेष बची है और इस शक्ति के सहारे वह दुनिया भर की समस्याओं के लिए मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहा है। यदि ईराक के मोसुल में इस्लामिक स्टेट के पाश्विक आतंकी बदकिस्मत भारतीयों की हत्या कर देते हैं तो इसके लिए मोदी को दोषी ठहराओ। इस प्रकार की नकारात्मकता से विपक्ष कभी भी अपनी प्रासंगिकता स्थापित नहीं कर पाएगा। 

यह तो निश्चय ही तय है कि 2019 में मोदी को भी एंटी इनकम्बैंसी की समस्या दरपेश होगी। उत्तर और पश्चिमी राज्यों में वह कुछ सीटें खो देंगे। यानी कि यू.पी., राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में उन्हें कुछ आघात पहुंचेगा। इन आघातों से भाजपा को अधिक से अधिक 50-60 सीटों का नुक्सान होगा। इसके बावजूद लोकसभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी रहेगी। जहां तक कांग्रेस का सवाल है यह अपनी सीट संख्या वर्तमान 44 से बढ़ाकर 75-80 तक ले जाने में सफल होगी। फिर भी 200 से अधिक सीट संख्या वाली भाजपा से टक्कर लेने के लिए सम्भावित गठबंधन सहयोगियों को साथ जोड़ पाना इसके लिए लगभग असम्भव होगा, खास तौर पर तब जब राहुल गांधी ने ही विपक्ष का संसदीय नेता बनना हो। राहुल तो पूरी तरह भाजपा की नकल करने में व्यस्त हैं। यहां तक कि अपनी प्रासंगिकता की तलाश में वह भाजपा और संघ परिवार की पहचान को चुराने का प्रयास कर रहे हैं। 

आप इसे पसंद करें या न, मोदी को अभी या अगले चुनाव में अपने राजनीतिक विरोधियों से किसी प्रकार का भय नहीं। फिर भी उन्हें इस बात के प्रति आगाह रहना होगा कि एक-दो सम्मानजनक अपवादों को छोड़कर सभी धन्नासेठ उनके विरोधियों से हाथ मिला रहे हैं और इस तरह इस खेमे की शरारतों की क्षमता बहुत बढ़ गई है। उनके ये सभी दुश्मन व्यवस्था को साफ-सुथरा बनाने व जवाबदारी लाने की प्रक्रिया में पैदा हुए हैं। मोदी ने सरकार द्वारा दी जाने वाली कल्याणकारी सबसिडी में होने वाली हेराफेरी के साथ-साथ सस्ते राशन से लेकर शिक्षा छात्रवृत्तियों और कुकिंग गैस सबसिडी में होने वाली हेराफेरियों के अलावा नरेगा के अंतर्गत मिट्टी के तेल की आपूर्ति के जाली उपभोक्ताओं के रजिस्टरों पर भी नकेल कसने के प्रयास किए हैं जिससे अनगिनत दुश्मन पैदा हो गए हैं जो पूरी निर्लज्जता से पुरानी व्यवस्था को बहाल करने पर तुले हुए हैं। 

यू.पी.ए के अंतर्गत जिस प्रकार दिन-दिहाड़े बैंकों की लूटपाट हुई, अर्थव्यवस्था को अभी भी उसकी कीमत अदा करनी पड़ रही है। संक्षेप शब्दों में कहा जाए कि ऐसी लूटपाट करने वाले हर प्रकार के धन्नासेठ, निहित स्वार्थ और जुगाड़बाज एवं दलाल यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि 2019 के चुनाव में मोदी दोबारा न जीत पाएं। वे मोदी विरोधी शक्तियों के वित्त पोषण के लिए सरकारी खजाने से लूटे हुए धन का एक छोटा सा प्रतिशत दाव पर लगा देंगे। विडम्बना यह है कि उनका यह दाव ही मोदी की जीत के लिए तुरूप का पत्ता सिद्ध हो सकता है- बिल्कुल उसी तरह जिस प्रकार 1971 में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा इंदिरा के काम आया था। मतदाता मूर्ख नहीं हैं और वे जानते हैं कि उनके हितों की रक्षा कौन करता है?-वरिन्द्र कपूर 
         


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