गुजरात से आई जमीनी रिपोर्ट भाजपा को परेशान करने वाली

punjabkesari.in Sunday, Oct 15, 2017 - 01:34 AM (IST)

अपनी केरल यात्रा को बीच में छोड़ कर यूं अचानक जब अमित शाह को दिल्ली लौटना पड़ा तो कयासों के बाजार गर्म थे, लेकिन इसके बाद सरकार की आर्थिक नीतियों के प्रभाव को लेकर प्रधानमंत्री मोदी, वित्त मंत्री जेतली और अमित शाह के बीच जी.एस.टी. के प्रावधानों को लेकर एक मैराथन बैठक हुई। सूत्र बताते हैं कि शाह ने जेतली को बताया कि गुजरात से जो जमीनी रिपोर्ट आ रही है, वह परेशान करने वाली है। खासकर अहमदाबाद, सूरत और वड़ोदरा के व्यापारी खुलकर अपना विरोध जता रहे हैं। 

सूत्र बताते हैं कि एक वक्त ऐसा भी आया जब पी.एम. के समक्ष ही शाह व जेतली की वाणी आपस में उलझ गई। खैर, इस बैठक का लबोलुआब यह निकला कि इसमें इस बात पर इन त्रिमूर्तियों में सहमति बनी कि 28-29 उत्पादों पर जी.एस.टी. की दरें कम की जाएंगी और पैट्रोल व डीजल पर से भी वैट कम किया जाएगा। शायद यह गुजरात के आसन्न विधानसभा चुनावों की ही धमक थी जिसकी वजह से खाखड़ा, आम पापड़ जैसे गुजरातियों के नियमित खाद्य पदार्थों से जी.एस.टी. सीधे 18 से घटाकर 5 पर लाया गया। 

सूरत के कपड़ा उद्योग के मद्देनजर कपड़ों के जरी पर भी जी.एस.टी. 5 कर दिया गया, धागे पर 18 फीसदी के जी.एस.टी. को 12 पर लाया गया। सरकार इन त्वरित कदमों की प्रतिक्रियाओं के इंतजार में है, शायद यही वजह हो कि गुजरात चुनावों की तारीखों के ऐलान में देरी हो रही है और जी.एस.टी. को लेकर भाजपा के अपने शत्रुघ्न सिन्हा ने भोजपुरी में इसकी एक नई परिभाषा दी है। शत्रु कहते हैं जी.एस.टी. का मतलब है ‘गईल सरकार तोहार’। 

राजा व राजे में तनातनी: क्या राजस्थान की महारानी वसुंधरा राजे और दिल्ली के निजाम के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है? शायद यही वजह थी कि जब पिछले दिनों राजस्थान के उदयपुर में 15 हजार करोड़ का रोड प्रोजैक्ट गिफ्ट करने प्रधानमंत्री वहां पहुंचे तो उन्हें एयरपोर्ट पर रिसीव करने के लिए स्वयं मुख्यमंत्री भी मौजूद थीं, पर मोदी ने वसुंधरा को ज्यादा तवज्जो न देकर उनके साथ खड़े घनश्याम तिवाड़ी से बातचीत शुरू कर दी। इस तल्खी के दीदार मंच पर भी हुए जब मोदी मंच पर विराजमान होकर पूरे समय तिवाड़ी से ही बतियाते रहे। 

दरअसल इस योजना के असल लाभार्थी भी वही थे क्योंकि इस योजना का ज्यादा से ज्यादा लाभ उनके ही क्षेत्र को मिलने जा रहा था। जब मंच से मुख्यमंत्री का भाषण चल रहा था, तो पी.एम. उचाट मन से किसी पत्रिका के पृष्ठों को पलटने में मसरूफ  थे, आगे और क्या कुछ पलटा जा सकता है, यह पी.एम. से बेहतर और कौन जान सकता है? 

कांग्रेस नई, दस्तूर पुराना: राहुल गांधी एक नए अवतार में सामने आए हैं, अपनी दादी के 100वें जन्मदिन (19 नवम्बर) के मौके पर कांग्रेस की बागडोर पूरी तरह संभालने को वे कृतसंकल्प दिख रहे हैं, इसके साथ ही वह कांग्रेस का चेहरा-मोहरा बदलने को भी उत्सुक जान पड़ते हैं। पार्टी से जमीनी कार्यकत्र्ताओं को जोडऩे की मुहिम का आगाज करते हुए और आसन्न विधानसभा चुनावों को मद्देनजर रखते हुए राहुल ने अपनी पहल से ए.आई.सी.सी. में एक चुनाव प्राधिकरण का गठन किया है। इस प्राधिकरण का सिरमौर किसी मुल्लापुली रामचंद्रन को बनाया गया है। लम्बे अर्से से ठंडे बस्ते के सुपुर्द कर दिए गए मधुसूदन मिस्त्री भी इस बार जाग गए हैं और बतौर मैम्बर उन्होंने इस प्राधिकरण में एंट्री मार ली है। सो, यहां भी उनका पुराना रवैया चालू हो गया है। 

यहां तक कि पी.सी.सी .डैलीगेट्स के लिए भी पूजा-अर्चना स्वीकार की जा रही है, ऐसा सूत्रों का दावा है। मोतीलाल वोरा इस बात की शिकायत पहले ही राहुल से कर चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक, वोरा जी को सबसे ज्यादा शिकायतें महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से मिल रही हैं। अब राहुल अगर कांग्रेस की पुरानी परिपाटियों पर लगाम नहीं लगा पाएंगे, तो कांग्रेस का चेहरा-मोहरा क्या खाक बदल पाएंगे। 

कांग्रेस के हाथ नया मुद्दा: 2001 से जब से गुजरात में मोदी की एंट्री हुई है, गुजरात स्टेट पैट्रोलियम कार्पोरेशन लगातार विवादों के घेरे में रहा और राजस्थान की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के निशाने पर भी। कांग्रेस का मानना है कि सन् 2001 से लेकर सन् 2014 तक लगातार राजनीतिक फायदे के लिए इस कार्पोरेशन का दोहन हुआ, कांग्रेसी नेताओं के ये भी आरोप हैं कि इस कार्पोरेशन के पैसों से ही कई चुनाव लड़े गए। जब दोहन की इंतिहा हो गई और यह कार्पोरेशन लगभग 20 हजार करोड़ के घाटे में आ गया तो केन्द्र सरकार की पहल से इसका विलय देश की सबसे बड़ी नवरत्न कम्पनियों में शुमार होने वाली ओ.एन.जी.सी. में कर दिया गया। सूत्र बताते हैं कि इस दफे के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बड़े जोर-शोर से यह मुद्दा उठाने वाली है। 

अखिलेश का नया प्लान: समाजवादी पार्टी को नया चेहरा-मोहरा प्रदान करने की कवायद में अखिलेश कहीं शिद्दत से जुटे हैं। पिछले दिनों अखिलेश की अपने पिता से एक लम्बी मुलाकात हुई और इस मुलाकात में पार्टी के भावी संकेतों को लेकर भी गहन मंत्रणा हुई। अखिलेश ने एक तरह से मुलायम के समक्ष साफ कर दिया है कि वे शिवपाल को और ज्यादा नहीं ढो सकते। सूत्र बताते हैं कि अखिलेश ने अपने पिता के समक्ष इस बात पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई कि अब से पहले तक शिवपाल भाजपा के सीधे संपर्क में थे और जब भाजपा की ओर से उन्हें टका-सा जवाब मिल गया कि वे पहले अपनी क्षेत्रीय पार्टी का गठन करें और फिर उसका विलय भाजपा में कर दें, तो लौट के बुद्धू घर को आ गए। 

सूत्र बताते हैं कि शिवपाल को अब अखिलेश दिल्ली की राजनीति में सक्रिय रखना चाहते हैं। सो मुमकिन है कि उन्हें किसी भांति दिल्ली का ठौर पकड़ाया जाए, जिससे कि यू.पी. की जमीन पर अखिलेश बेधड़क अपनी साइकिल दौड़ा सकें। सूत्रों का यह भी दावा है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में अखिलेश अपने परिवार के कम-से-कम 3 लोगों का टिकट काट सकते हैं, इनमें से जिन लोगों के टिकट कट सकते हैं उनके नाम हैं-स्वयं अखिलेश की पत्नी डिम्पल यादव, मुलायम के भतीजे व लालू के दामाद तेज प्रताप यादव और प्रोफैसर रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव। 

गहलोत की उड़ान, पायलट की धड़ाम: क्या सचिन पायलट को अभी राज्य की बागडोर संभालने के लिए थोड़ा और इंतजार करना पड़ सकता है? नहीं तो इन दिनों राज्य के पुराने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही अपने नए लीडर राहुल गांधी के दिलो-दिमाग पर छाए हुए हैं। सो, इस बात के अभी से संकेत मिल रहे हैं कि राजस्थान का अगला विधानसभा चुनाव अशोक गहलोत के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। दरअसल जब गहलोत को पंजाब का प्रभारी बनाया गया था, तो किसी को शायद ही इस बात की उम्मीद थी कि कांग्रेस वहां इतना बड़ा चमत्कार कर जाएगी। 

हालांकि कैप्टन अमरेन्द्र ने पंजाब चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। इसके बाद गहलोत को गुजरात का प्रभारी बनाया गया, तो वहां भी एक चमत्कार हुआ और पार्टी के कद्दावर अहमद पटेल आधे वोट से वहां से राज्यसभा का चुनाव जीत गए। गुजरात में सुप्तप्राय: कांग्रेस में हालिया दिनों में एक नई जान आ गई है, तो गहलोत समर्थक इस बात के क्रैडिट में भी उनका नाम जोड़ रहे हैं। सो, फिलवक्त तो गहलोत की निकल पड़ी है।    


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