केरल व पश्चिम बंगाल में बढ़ रहा है भाजपा का ‘प्रभाव’

punjabkesari.in Friday, Dec 25, 2015 - 12:30 AM (IST)

(बलबीर पुंज): नैशनल हेराल्ड फर्जीवाड़े और उससे पूर्व काल्पनिक असहिष्णुता के नाम पर संसद को बंधक बनाने वाली कांग्रेस पार्टी के आचरण को देखकर लगता है कि वह दीवार पर लिखी इबारत पढ़ नहीं पा रही है। सुदूर दक्षिण के केरल से लेकर पश्चिम बंगाल में हो रहे राजनीतिक घटनाक्रम बदलते राजनीतिक परिदृश्य की दस्तक देने वाले  हैं। 

अगले  साल जिन दो महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें केरल और पश्चिम बंगाल प्रमुख हैं। दोनों के मायने इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन दोनों राज्यों में कथित सैकुलर दलों का एकछत्र राज बारी-बारी से बना रहा है। किन्तु पिछले कुछ समय से पश्चिम बंगाल में जनता का भरोसा भारतीय जनता पार्टी में अभूतपूर्व रूप से बढ़ा है, वहीं केरल में लोग भाजपा को भावी तीसरे विकल्प के रूप में देख रहे हैं।
 
केरल के राजनीतिक दल कांग्रेस नीत यू.डी.एफ. या माक्र्सवादी नीत एल.डी.एफ. मोर्चे के घटक हैं। केरल में भाजपा अभी तक खाता नहीं खोल पाई है, किन्तु दोनों ही मोर्चों के अधीन कायम भ्रष्टाचार और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के खेल से जनता आजिज आ चुकी है। 
 
यही कारण है कि शक्तिशाली श्री नारायण धर्मपक्षिणी योगम के नेता और अत्यंत पिछड़े वर्ग, इझावा समुदाय के नायक वेलापल्ली नटेशन ने जब इन दोनों मोर्चों को उखाड़ फैंकने के लिए ‘भारत धर्म जन सेना’ के गठन की घोषणा की तो स्वाभाविक तौर पर उसे समाज के हर वर्ग से व्यापक समर्थन प्राप्त हो रहा है। 
 
पिछले दिनों स्थानीय निकायों के चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत बढ़कर 16 प्रतिशत हुआ है। लोकसभा के चुनाव में एक भी जीत हासिल नहीं कर पाने के बावजूद पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा है। तिरुवनंतपुरम सीट पर भाजपा का दूसरे नंबर पर आना बदलते राजनीतिक परिदृश्य का ही संकेत है।
 
कांग्रेस नीत संयुक्त प्रजातांत्रिक गठबंधन (यू.डी.एफ.) वाली सरकार में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आई.यू.एम.एल.) का दबदबा है। ओमान चांडी के 21 सदस्यीय मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक कोटे के 12 मंत्री हैं, जिसमें अकेले मुस्लिम लीग के 5 मंत्री हैं। आई.यू.एम.एल. के मंत्री इब्राहिम कुंजु ने पिछले दिनों सार्वजनिक तौर पर यह दावा किया था कि उनकी पार्टी ही गठबंधन की वास्तविक नेता है। कांग्रेस नीत यू.डी.एफ. जोड़-तोड़ कर सरकार बनाने में सफल हुई थी, उस मजबूरी का भरपूर दोहन सहयोगी मुस्लिम पार्टी कर रही है। 
 
आई.यू.एम.एल. जब-तब सरकार की  कलाई मरोड़ अपनी मांगें मनवाता आया है। वह मुस्लिम बहुल मल्लपुरम जिले में अधिकांश सरकारी योजनाओं को लागू कराने के लिए लंबे समय से दबाव बना रहा है। मल्लपुरम  वही ऐतिहासिक क्षेत्र है जहां माक्र्सवादी नेता और बाद में केरल के पहले मुख्यमंत्री बने नंबूदरीपाद ‘अलग पाकिस्तान’ के समर्थन में नारे लगाते सड़कों पर उतरा करते थे। देश के रक्तरंजित बंटवारे में यदि मुस्लिम लीग सफल रहा तो इसकी जवाबदेही कांग्रेस के मौन और माक्र्सवादियों के सक्रिय सहयोग को ही जाती है। 
 
किन्तु परिस्थितियां आज भी वैसी ही हैं। दोनों ही मोर्चों की सरकारें मुस्लिम कट्टरपंथ को संरक्षण प्रदान करती  आई हैं, जिससे साम्प्रदायिक सौहार्द को गहरी क्षति पहुंची है। 
 
केरल में मुस्लिम बहुल जिले-मल्लपुरम का सृजन कराने वाले माक्र्सवादियों को केरल के विधानसभा चुनाव में पराजय का स्वाद इसलिए भी चखना पड़ा क्योंकि पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अच्युतनंदन द्वारा की जा रही इस्लामी कट्टरवाद की आलोचना के साथ खुद को जोड़ नहीं पाया। नटेशन पूरे राज्य की यात्रा कर जनजागृति पैदा करने में जुटे हैं। उनको मिल रहा जन समर्थन आने वाले दिनों में केरल के राजनीतिक इतिहास की दिशा बदलने में कामयाब हो सकेगा।
 
इस्लामी तुष्टीकरण का वीभत्स खेल पश्चिम बंगाल में भी जारी है, जिसके खिलाफ जनता में भारी आक्रोश है। आश्चर्य नहीं कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की वकालत करने वाले भाजपा का ग्राफ पश्चिम बंगाल में तेजी से बढ़ रहा है। लोकसभा और विधानसभा में भाजपा के एक-एक प्रतिनिधि को भेजने के साथ पार्टी की सदस्यता में निरंतर वृद्धि हो रही है। 
 
पश्चिम बंगाल के भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष की यात्राओं में भारी भीड़ के जुटने से तृणमूल कांग्रेस की नींद हराम है। माक्र्सवादियों को जनता  पहले  ही नकार चुकी है। आश्चर्य नहीं कि भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता को थामने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जहां सैकुलर दलों के गठजोड़ का प्रयास कर रही हैं, वहीं तृणमूल कांग्रेस के कार्यकत्र्ता ङ्क्षहसा का सहारा ले रहे हैं, जो कल तक माक्र्सवादियों का ब्रह्मास्त्र था। 
 
पहले माक्र्सवादियों और अब तृणमूल कांग्रेस के संरक्षण में पश्चिम बंगाल अवैध बंगलादेशीयों का पनाहगाह बन गया है। पश्चिम बंगाल में सत्ता समीकरण भले ही बदला हो, किन्तु वोट बैंक की ओछी राजनीति और इस्लामी कट्टरपंथ को पोषित करने की सैकुलर विकृति निरंतर जारी है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक माक्र्सवादियों को सत्ताच्युत कर आई तृणमूल कांग्रेस के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। 
 
पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों की आबादी 26 प्रतिशत है, जोकि राष्ट्रीय औसत की दूनी है। आश्चर्य नहीं कि कथित सैकुलर सरकारों के संरक्षण में अभयदान प्राप्त बंगलादेशी जेहादियों के माध्यम से आई.एस.आई., जमातुल मुजाहिदीन और अल कायदा जैसे मानवता के दुश्मन सभ्य समाज को लहूलुहान करने की साजिश रच रहे हैं।
 
भारत में आॢथक और सामाजिक स्तर पर जो विरूपताएं हैं, उसका सबसे बड़ा कारण साम्यवादी ङ्क्षचतन ही है। वामपंथियों के विकृत सामाजिक दर्शन के कारण जहां हिंदू समाज को जातियों में विभाजित करने का कुप्रयास किया गया, वहीं  मजहब के नाम पर मुसलमानों का एकीकरण किया गया, जिसकी परिणति भारत के रक्तरंजित विभाजन व अलग पाकिस्तान में हुई। कम्युनिस्ट आंदोलन की सर्वाधिक अंतर्घाती भूमिका और अक्षम्य अपराध अलगाववादी ताकतों को प्रोत्साहन देना है। 
 
धर्म को ‘जनता की अफीम’ पुकारने वाले कम्युनिस्टों ने जिन्ना को वो सारे तर्क-कुतर्क उपलब्ध कराए, जो एक अलग मजहबी राष्ट्र के लिए जरूरी थे। 
 
माक्र्सवादी वर्गभेद मिटाने के लिए जिस क्रांति का शंखनाद  करते हैं, वह वास्तव में वैचारिक विरोधियों के लहू से सिंचित है। तृणमूल कांग्रेस से लोगों को बदलाव की जो अपेक्षाएं थीं, वह विश्वास पिछले 5 सालों में खो चुका है। लोग सार्थक बदलाव चाहते हैं और स्वाभाविक तौर पर भाजपा ही विश्वासी विकल्प है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ के गुरुमंत्र के साथ चल रही भाजपा में लोगों की बढ़ती आस्था अकारण ही नहीं है।

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