अच्छा होता कि यूरोपियन यूनियन सांसदों की ‘कश्मीर यात्रा’ को टाला जाता

punjabkesari.in Sunday, Nov 03, 2019 - 01:45 AM (IST)

यूरोपियन यूनियन के राइट विंग के 23 सदस्यों की 2 दिवसीय यात्रा की समाप्ति पर पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त शरत सभ्रवाल का कहना है कि यह कहीं बेहतर होता यदि यूरोपियन यूनियन के सांसदों की कश्मीर यात्रा कुछ देरी से हुई होती और ये सांसद कुछ बेहतर ढंग से चुने होते। 

‘द वायर’ के लिए एक साक्षात्कार के दौरान शरत ने कहा कि सभी के सभी सांसद राइट विंग से संबंधित थे। जिसका मतलब यह था कि मुस्लिम विरोधी पाॢटयां भारत को दी जाने वाली किसी प्रकार की क्लीन चिट की विश्वसनीयता को कम कर देंगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत कश्मीर में बंद, पाबंदियां तथा  गिरफ्तारियां व मानवीय अधिकारों के उल्लंघन के आरोप लिबरल पाॢटयों की तरफ से झेल रहा है। ये राइट विंग सांसद इस आलोचना का प्रभावी रूप से जवाब नहीं दे पा रहे होंगे। वास्तव में सभ्रवाल ने यह सुझाव दिया कि इन राइट विंग सांसदों की ओर से दी जाने वाली किसी भी प्रकार की क्लीन चिट लिबरल पाॢटयों की ओर से ज्यादा आलोचना को बढ़ावा दे सकती है। 

विदेशी सांसदों को यात्रा की मंजूरी देना एक भूल थी 
जब उनसे पूछा गया कि क्या 5 अगस्त के बाद कश्मीर की यात्रा हेतु इन राइट विंग विदेशी सांसदों को मंजूरी देना एक भूल थी तो सभ्रवाल ने यह साफ किया कि यह कहीं बेहतर होता यदि इनकी यात्रा बाद में की गई होती और यह ऐसे समय में होती जब कश्मीर में सब कुछ शांत होता तथा भारतीय सांसदों को इनसे पहले यात्रा की मंजूरी दी गई होती। उन्होंने यह भी कहा कि यदि सांसद यूरोप भर में से राजनीतिक विचारों का प्रतिनिधित्व करते। उन्होंने यह माना कि इन राइट विंग आप्रवासी विरोधी सांसदों ने भारत की उदारवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक छवि के लिए संघर्ष किया होता। 

मैडी शर्मा के वैस्टट तथा गुटनिरपेक्ष शोधों हेतु अंतर्राष्ट्रीय संस्थान के बारे में बोलते हुए सभ्रवाल ने कहा कि ये लघु तथा छोटे लॉबी ग्रुप हैं और यह सरकार के लिए असामान्य बात न होती कि आलोचना का जवाब देने के लिए तथा देश के पक्ष को सही ढंग से पेश करने के लिए लॉबिस्ट का प्रयोग किया होता। सभ्रवाल ने कहा कि मैडी शर्मा के सांसदों को देने वाले निमंत्रण पत्र ने स्पष्ट कर दिया है कि उनका प्रधानमंत्री के साथ थोड़ा-बहुत ङ्क्षलक जरूर है, नहीं तो यह कैसे सम्भव था कि उसने पी.एम. के साथ बैठक करने का वायदा किया और यह भी कहा कि प्रधानमंत्री यूरोपियन यूनियन से कुछ प्रभावी निर्णय करने वालों के साथ बैठक करना पसंद करते। 

सभ्रवाल ने यह भी माना कि यूरोपियन सांसद कुछ चुनिंदा लोगों के साथ ही मिल सके और यह अच्छा होता कि यदि ये उन लोगों से भी मिलते जो यह जानते हैं कि कश्मीर में असल में क्या घटा है या घट रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से उनकी यात्रा की विश्वसनीयता और भी बढ़ जाती तथा भारत की विश्व की सबसे बड़ी लोकतंत्र प्रणाली की छवि में और इजाफा होता। जब उनसे पूछा गया कि ऐसी रिपोर्टें भी ध्यान में लाई गई हैं कि स्थानीय कश्मीरी पत्रकारों को यात्रा के अंतिम पड़ाव पर यूरोपियन सांसदों द्वारा आयोजित प्रैस कांफ्रैंस से दूर रखा गया, कुछ चुने हुए पत्रकारों को ही अपने सवालों को रखने की अनुमति प्रदान की गई, तब सभ्रवाल ने कहा कि यह अवांछनीय बात है। 

भारतीय राजनेताओं को इस यात्रा से वंचित किया गया
सभ्रवाल ने दोहराया कि यह यात्रा इतनी विवादास्पद न होती यदि भारतीय राजनेताओं को कश्मीर यात्रा की अनुमति दी गई होती। सभ्रवाल ने माना कि यह विरोधाभास ही है जहां एक ओर राइट विंग यूरोपियन सांसदों के कुछ चुने हुए सदस्यों को कश्मीर यात्रा के लिए अनुमति दी गई जबकि भारतीय राजनेताओं को इस यात्रा से वंचित किया गया। 

जब सभ्रवाल से यह पूछा गया कि इस यात्रा को लेकर कांग्रेस तथा माकपा नेताओं ने कश्मीर का अंतर्राष्ट्रीयकरण किया तो उन्होंने कहा कि  वास्तव में यह तब भी हो जाता जब भारत ने कश्मीर का संवैधानिक दर्जा बदला। उन्होंने कहा कि पिछले 15-20 वर्षों में कश्मीर के भारत में विलय का किसी ने प्रश्र नहीं उठाया। अब भारत में इस बहस को फिर से जागृत कर दिया गया है। पश्चिम मीडिया में भी इस बहस को हवा दी जा रही है। हालांकि सभ्रवाल ने यहां पर यह भी कहा कि वह यह नहीं मानते कि इस तरह यूरोपियन सांसदों की घाटी की यात्रा से कश्मीर का अंतर्राष्ट्रीयकरण किया जा सकेगा।-करण थापर
 


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