ड्रग्स के भयानक दुष्चक्र से देश को बचाना जरूरी

punjabkesari.in Saturday, Nov 06, 2021 - 04:18 AM (IST)

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी एनसीबी की रेव पार्टी कार्रवाई को लेकर खड़े किए गए विवाद को अलग रखकर विचार करिए तो सच्चाई यही है कि हमारा देश मादक पदार्थों यानी ड्रग्स के विध्वंसक दुष्चक्र में फंसता जा रहा है। एन.सी.बी. ने पिछले डेढ़ वर्ष में जितनी कार्रवाई की है उससे इतना साफ हो गया है कि हमारी फिल्मी दुनिया ड्रग्स की भयानक गिरफ्त में है। इस बीच जो लोग गिरफ्तार हुए या जिन पर मुकद्दमे चल रहे हैं उनमें ज्यादातर 40 से नीचे उम्र के हैं, टी.वी. कलाकार हैं, कुछ द्वितीय- तृतीय श्रेणी की फिल्मों में काम करने वाले कलाकार हैं या फिर धनाढ्य, रसूखदार या नामी गिरामी परिवारों के बच्चे। 

यह केवल मुंबई फिल्मी उद्योग तक सीमित नहीं संपूर्ण देश के भयावह यथार्थ का नमूना भर है। आप मुंबई के बाहर देश के दूसरे हिस्सों में ड्रग्स लेने या उसके व्यापार के आरोप में हुई गिरफ्तारियों पर नजर दौड़ाएं तो उनमें ज्यादातर किशोर व युवा हैं। पहले पंजाब के ड्रग्स की गिरफ्त में आने से देश चिंतित था। पंजाब के 67 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में कम से कम एक सदस्य नशे का शिकार है। हर पांच में से एक युवक वहां नशे का आदी माना गया है। उड़ता पंजाब फिल्म पर विवाद हुआ जो केवल उसकी झलक थी। 

अब तो यह कहना पड़ेगा कि उड़ता पंजाब उड़ते हुए उड़ता भारत तक विस्तारित हो चुका है। कइयों को यह जानकर हैरत हो कि नसों में नशे की सुई लेने वालों के मामले में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है तथा उसके बाद दिल्ली और पश्चिम बंगाल का नंबर है। बिहार, झारखंड और बंगाल जैसे राज्यों में भी ड्रग्स गांव तक पहुंच चुका है। मोटा आंकड़ा है कि तीन करोड़ से ज्यादा लोग भारत में ड्रग्स का सेवन करते हैं। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 2019 में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 3.1 करोड़ लोग भांग, 50 लाख चरस एवं गांजा, 63 लाख हैरोइन और 11 लाख अफीम लेते हैं। 

विश्व भर में ड्रग्स के आदी लोगों की संख्या बढ़ी है खासकर एशिया, अफ्रीका और लातिनी अमरीका में। इस कारण यह वैश्विक चिंता का विषय है और कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन इस पर हो चुके हैं। इससे संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानून हैं तथा देशों के बीच अवैध व्यापार को रोकने की घोषणाएं भी। बावजूद पिछले एक दशक में ड्रग्स का कारोबार व्यापक रूप से फैला है। प्रति वर्ष व्यापार का आंकड़ा 700 अरब डॉलर तक दिया जा रहा है। विश्व स्तर पर माफियाओं का बड़ा गिरोह पनप चुका है। जाहिर है, ऐसी स्थिति को बदलना है तो समस्या को इसके व्यापक संदर्भों में देखकर ही काम करना पड़ेगा। 

भारत युवा आबादी तथा पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था में हुए बदलावों से उत्पन्न जटिलताएं एवं भौगोलिक स्थिति ड्रग्स के अवैध व्यापार में लगे समूहों के लिए विश्व में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। आबादी में किशोरों व युवाओं का सर्वाधिक प्रतिशत वाला देश ,जहां 10 से 35 वर्ष के आयु वर्ग की संख्या 50 करोड़ से ज्यादा है, निश्चय ही ड्रग्स के दुष्ट कारोबारियों की घातक नजर में है। इस आयु वर्ग के लोगों को आसानी से शिकार बनाया जा सकता है। समाज के बड़े बुजुर्ग युवाओं के भटकाव से बचाने के बड़े कारक रहे हैं। 

संयुक्त परिवार में वैसे भी बच्चों को स्वाभाविक लाड़ प्यार के साथ जीवन की दिशा प्राप्त होती रहती थी। दोनों ही स्थितियां व्यापक रूप से बदल चुकी हैं। संयुक्त परिवार टूटा है तथा सामाजिक व्यवस्था में अब बड़े बुजुर्गों का सम्मान उस रूप में नहीं रहा। गांव से लेकर शहरों तक लोग निजता में सिमटते गए हैं। एकल परिवार में अगर माता-पिता दोनों नौकरी, व्यापार या अन्य पेशे के लिए निकल जाते हैं तो बच्चों को सही मार्गदर्शन मिलना संभव नहीं रहता। माता-पिता में से कोई नशे का शिकार है तो किशोरों और युवाओं के लिए बहकने का यूं ही आधार मिल जाता है। ऐसे बड़े बुजुर्ग उनके सामने नहीं होते जो उन्हें समझा-बुझाकर भटकाव से बचा सके। 

महानगरों में औसत अगर 100 के आसपास रेव पार्टियां प्रतिदिन होती हैं तो एन.सी.बी. या पुलिस कितनों पर रेड कर पाती है? जितने ड्रग्स अवैध रूप से भारत में आते हैं उनमें से कितने पकड़ में आते हैं? वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 15 प्रतिशत है। इस तरह 85 प्रतिशत ड्रग्स देश में प्रवेश कर जाते हैं। पुलिस और एन.सी.बी. महकमे में रेड करने वाले सारे ईमानदार ही होंगे ऐसा माना ही नहीं जा सकता। आप शहर दर शहर चले जाइए आपको गहरी छानबीन की आवश्यकता नहीं होगी, साधारण जानकारी प्राप्त करते हुए पता चल जाएगा कि किन-किन स्थानों पर आसानी से ड्रग उपलब्ध होते हैं। 

शहरों से निकलकर ड्रग्स अब गांवों तक फैल रहा है। सच कहा जाए तो भारत ड्रग्स के अवैध व्यापार और इस्तेमाल की आपात स्थिति में पहुंचने की ओर अग्रसर है। परिवार में कोई एक व्यक्ति नशेड़ी हो जाए तो उसकी दशा क्या होती है इसी से अनुमान लगाइए कि देश में युवाओं का इतना बड़ा वर्ग नशेड़ी हो जाए तो स्थिति क्या होगी? जो धन देश की प्रगति में लगना चाहिए वह नशे में अवैध रूप से चला जाए तो इसका अर्थव्यवस्था पर कितना विपरीत प्रभाव पड़ेगा इसकी कल्पना भी की जा सकती है। तो क्या हो सकता है? 

अगर राजनीतिक दलों का सहयोग नहीं होगा तो ड्रग्स के भयावह जाल को तोडऩा संभव नहीं हो सकता। इसलिए सत्ता में हो या विपक्ष में सभी राजनीतिक नेताओं को भी अपनी जिम्मेवारी समझनी होगी। यही बातें धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थाओं और संगठनों व्यक्तित्वों पर भी लागू होती है। उन्हें भी अपना दायित्व समझ कर काम करना होगा। इसमें दो राय नहीं कि कोई अकेला व्यक्ति अकेला संगठन ऐसा करेगा तो ड्रग्स माफियाओं का शिकार हो जाएगा। इसलिए पहले आपस में मिल बैठकर एकता बनाएं और फिर संयुक्त रूप से अभियान चलाया जाए।-अवधेश कुमार
 


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