क्या कांग्रेस अपनी खोई जमीन वापस पा रही है?

punjabkesari.in Friday, Dec 01, 2023 - 04:10 AM (IST)

जिन पांच राज्यों मिजोरम, तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए हैं, 3 दिसंबर को उनके नतीजे घोषित किए जाएंगे। इन चुनावों में ई.सी.आई. अपनी छवि के प्रति अधिक सतर्क रहा है। इसने भाजपा के नेताओं की भी खिंचाई की। मीडिया और चैट रूम में घूम रही सभी रिपोर्टों और गणनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने फिर से अपने पैर जमा लिए हैं। यह 2024 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभरेगी। यदि सभी विपक्षी दल, जिन्होंने ‘इंडिया’ गठबंधन बनाने का फैसला किया, मोदी के रथ का विरोध करने के लिए एक साथ रहेंगे, तो कांग्रेस को गठबंधन के नेता के रूप में स्वीकार करना होगा। अगर ‘आप’ और तृणमूल जैसी पार्टियां संकोच करती हैं तो कांग्रेस अकेले या शरद पवार की राकांपा और उद्धव ठाकरे की शिवसेना जैसी छोटी पार्टियों की सक्रिय मदद से चुनाव लडऩे का फैसला कर सकती है। 

यह स्पष्ट है कि किसी भी पार्टी के लिए कोई लहर नहीं है। बड़े राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मुकाबला बेहद करीबी है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के लिए आसान हो सकता था यदि ई.डी. ने किसी गेमिंग सिंडिकेट के प्रवर्तकों द्वारा भूपेश बघेल को 500 करोड़ रुपए दिए जाने की अफवाह नहीं फैलाई होती। जिस वाहन चालक के बयान पर अफवाह उड़ाई गई थी, वह यह कहते हुए पीछे हट गया है कि यह बयान जांचकत्र्ताओं के कहने पर दिया गया था! सच्चाई का पता केवल तटस्थ, निष्पक्ष जांचकत्र्ताओं द्वारा ही लगाया जा सकता है, एक ऐसी जाति, जिसे अनैतिक राजनीतिक साजिशों से लगभग पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है। 

नरेंद्र मोदी ने 2014 में देश को एक नए पुनर्जीवित भारत की आशा दी थी, जहां हर नागरिक खुश और संतुष्ट होगा। वह आशा खत्म हो गई है। गरीब अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। संपन्न लोग निश्चित रूप से बेहतर स्थिति में हैं लेकिन उनमें भी इस बात को लेकर संदेह है कि देश फर्जी खबरों और वास्तविकता को खत्म करने वाले झूठ के कारण किस ओर जा रहा है। एक समय हिंदू धर्म से जुड़े होने को लेकर लोगों में गर्व की भावना जगी थी लेकिन अब उस उद्देश्य को लेकर उतना उत्साह नहीं देखा जा रहा। इस कठिन समय में रोजी-रोटी का मुद्दा हावी है। यह तथ्य, कि मतदाता उनके और उनकी पार्टी के प्रति उतने उत्साहित नहीं हैं, ने मोदी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। भाजपा के एक अधिक शांत सदस्य, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मीडिया द्वारा निर्देशित सवालों का जवाब देते हुए कहा कि इन 5 चुनावों में झटका 2024 के लोकसभा चुनावों में मतदाताओं की पसंद पर असर नहीं डालेगा। केवल यही उत्तर इस विश्वास में बदलाव के बारे में बहुत कुछ बताता है कि भाजपा नेता देश के सभी राज्यों में ‘डबल इंजन’ सरकारें स्थापित करने के अपने प्रयासों को लेकर कितने चिंतित हैं। 

भारत में मतदाता उतने विनम्र, भोले-भाले नहीं हैं, जिनका राजनेता फायदा उठा सकें। वे दिन चले गए। शिक्षा के साथ ज्ञान आया है। ज्ञान के साथ स्वयं के बारे में सोचने की क्षमता। फर्जी खबरों और चतुराईपूर्ण प्रचार को खारिज किया जा रहा है। मतदाता अपनी प्राथमिकताओं को अपने सीने से लगाकर रखते हैं। 2014 में भाजपा ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध घृणा की लहर पर सवारी की। 21 या 22 प्रतिशत प्रतिबद्ध वोटों के अलावा, जो हिंदुत्व के नायक हर चुनाव में जुटाते थे, पार्टी ने मतदाताओं के गरीब तबकों से 11 प्रतिशत वोट भी हासिल किए, जो उस आशा के आधार पर थे जो मोदी ने उनके मन में जगाई थी। इससे जन प्रतिनिधियों को चुनने की ‘फस्र्ट पास्ट द पोस्ट’ प्रणाली में मोदी को सत्ता में आने में मदद मिली। 

हर गांव में नए खोले गए बैंक खातों में जरूरतमंदों को सीधे सरकारी सहायता हस्तांतरित करने का उत्कृष्ट उपाय, जिससे लोलुप निम्न स्तर के सरकारी सेवकों का सफाया हो गया, जो नियमित रूप से प्राप्तकत्र्ता को उनकी आधी पात्रता से वंचित कर देते थे, एक शानदार सफलता थी। मनरेगा और इसी तरह की योजनाओं को बैंक खातों में सीधे भुगतान द्वारा सेवा प्रदान की गई। एल.पी.जी. की रियायती बिक्री गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को सिलैंडर और किसानों को यूरिया और बीज भी लालची बिचौलियों को खत्म करने के इसी सिद्धांत द्वारा निर्देशित होते हैं। इन उपायों से भाजपा ने कुल डाले गए वोटों में से 6 प्रतिशत अतिरिक्त वोटों के साथ 2019 का लोकसभा चुनाव जीता। इस सद्भावना का अधिकांश भाग तब नष्ट हो गया, जब प्रधानमंत्री ने प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा के बारे में सोचे बिना नाटकीय रूप से लॉकडाऊन की घोषणा की, जो रातों-रात आजीविका के साधनों से वंचित हो गए। कामकाजी आबादी का 30 प्रतिशत हिस्सा पैदल ही हजारों किलोमीटर चलकर अपने घरों तक पहुंचा।

महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान एक और मामला है जिस पर मोदी को तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में महिलाओं ने उनके लिए काफी वोट किया था। जब बृजभूषण शरण सिंह, यू.पी. से भाजपा सांसद, जो भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष भी बने, पर पदक विजेता महिला पहलवानों द्वारा लगाए गए छेड़छाड़ के आरोपों के बावजूद खेल मंत्री ने उन्हें बचा लिया तो कई महिलाएं असहज हो गईं। गुजरात के बिलकिस बानो मामले में सामूहिक बलात्कार सह हत्या के 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई ने उनकी विश्वसनीयता को काफी नुकसान पहुंचाया था। 

अब, डबल इंजन वाले राज्य हरियाणा में, राम रहीम को एक महीने से अधिक समय के लिए पैरोल पर रिहा कर दिया गया है! दो बलात्कारों और दो हत्याओं के दोषी व्यक्ति को जीवन भर जेल में रख कर सबक सिखाया जाना चाहिए था, लेकिन पैरोल और फरलो पर उसकी रिहाई का इतिहास बताता है कि वह कारावास के अपने समय के लगभग आधे समय के लिए बाहर हो गया है! भाजपा को, जब तक ये अपराधी उन्हें वोट दिलाते हैं, उन्हें सामान्य अपराधियों को भी घूमने की अनुमति देने में कोई आपत्ति नहीं है! यदि भाजपा चाहती है कि 2024 में महिला मतदाता मोदी को वोट दें, तो उसे राम रहीम और बृजभूषण शरण सिंह के साथ अपने व्यवहार को उलटने की जरूरत है, जो महिला जाति को शिकार बनाने के लिए कुख्यात हैं।-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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