पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरपंथियों की बढ़ती गतिशीलता

punjabkesari.in Monday, May 10, 2021 - 04:28 AM (IST)

यूरोपियन यूनियन पार्लियामैंट का हालिया प्रस्ताव पाकिस्तान में कट्टरपंथीकरण और धार्मिक कट्टरपंथियों की बढ़ती गतिशीलता को सरकार पर हावी होने को उजागर करता है। अगर पाकिस्तान में ईश निंदा के आरोप खतरनाक तरीके से पर्याप्त नहीं थे तो पत्रकारों और नागरिक समाज संगठनों पर ऑन लाइन और आफलाइन हमलों की बढ़ती सं या न केवल पाकिस्तान के लिए बल्कि इसके पड़ोस के लिए भी खतरनाक है। 

बरेलवी स्कूल के विचारों की इस्लामवादी पार्टी तहरीक-ए-लब्बैक (टी.एल.पी.) ने पाकिस्तान में फ्रांस विरोधी प्रदर्शनों को भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। हालांकि सरकार ने समूह के विघटन की घोषणा की है लेकिन यह पूरे पाकिस्तान में मजबूत आधार वाला एक शक्तिशाली समूह बन चुका है।

आई.डी.एस.ए. में एक रिसर्च फैलो  स्मृति एस. पटनायक के अनुसार अप्रैल 2021 में इस संगठन द्वारा की गई ङ्क्षहसा के मद्देनजर पाकिस्तान सरकार द्वारा टी.एल.पी. पर प्रतिबंध लगाया गया। ऐसा लगता है कि टी.एल.पी. पर आधा अधूरा प्रतिबंध समूह की जहरीली धर्म आधारित राजनीति को नियंत्रित करने की बजाय तत्कालीन कानून व्यवस्था की प्राथमिकताओं पर आधारित है। यह प्रतिबंध टी.एल.पी. के धार्मिक कट्टरवाद को कम नहीं कर पाएगा। 

जुलाई, 2018 में आयोजित राष्ट्रीय चुनावों में टी.एल.पी. पाकिस्तान की पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी थी। कई कारकों ने इसके उदय में योगदान दिया। उनमें से सबसे उल्लेखनीय योगदान अलामा खादिम रिजवी का रहा। खादिम ने लोगों को जुटाने के लिए ईश ङ्क्षनदा के मुद्दे का इस्तेमाल किया। नवंबर 2020 में उसकी मृत्यु के बाद उनके बेटे और टी.एल.पी. के मु य साद रिजवी दक्षिणपंथी राजनीति में आगे बढऩे की कोशिश कर रहे हैं।  इसके कैडर पैग बर मोह मद के कार्टून प्रकाशन को लेकर फ्रांसिसी राजदूत को निष्कासित करने की मांग कर रहे हैं। 

हालांकि यह विवाद अक्तूबर, 2020 से शुरू हुआ और रिजवी ने फ्रांसिसी  राजदूत के निष्कासन के सरकारी आश्वासन के बाद हड़ताल खत्म कर दी थी। जब उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो उनके संगठन ने हिंसा का सहारा लिया जिसके परिणामस्वरूप अप्रैल, 2021 को प्रतिबंध लगा दिया गया। 

न्यायपालिका के समक्ष दो विकल्प : यह विड बना है कि किसी के लिए कथित रूप से ईश निंदा करने के मुद्दे को लेकर न्यायपालिका के पास दो विकल्प हैं या तो वह उस व्यक्ति को मौत की सजा सुनाए या फिर उसे मुक्त कर दें। ऐसा कहा जाता है कि जिन लोगों को न्यायपालिका द्वारा मौत की सजा सुनाई गई वह अपने आपको किस्मत वाले समझने चाहिएं क्योंकि न्याय का दूसरा रूप भीड़ है। जैसा कि 2009 में गोजरा में घट चुका है। इस मामले में ईश निंदा के आरोपी को जुलाई 2020 में पेशावर की हाई सिक्योरिटी अदालत परिसर में मार दिया गया। 

यह ध्यान देने की जरूरत है कि पाकिस्तान में ईश निंदा के मामलों को कम करने वाले राजनीतिक और आॢथक कारक हैं। सैंटर फार सोशल जस्टिस के एक अध्ययन के अनुसार 1997 से लेकर 2020 के बीच 1855 लोगों को धर्म से संबंधित अपराधों के तहत अभियुक्त बनाया गया है। उन पर ज्यादातर धारा 295-बी और सी के तहत केस चलाया गया। 200 लोगों को आरोपी बनाया गया जिनमें से 75 मुसलमान थे। 75 लोगों की अतिरिक्त न्यायिक रूप से हत्या कर दी गई थी। 

कुछ का कोई सुराग नहीं मिला और कुछ को यह भी पता नहीं चला कि उन्हें क्यों मारा जा रहा है। कुछ लोग पुलिस हिरासत या फिर पुलिस कर्मियों द्वारा मारे गए थे। मरने वालों में 39 मुसलमान, 23 ईसाई, 9 अहमदी, 2 हिन्दू और 2 अन्य व्यक्ति थे जिनकी धार्मिक पहचान नहीं हुई। निष्पक्ष ट्रायल के लिए यहां तक कि न्यायाधीशों को भी ब शा नहीं जाता। ऐसे ही मामले में जस्टिस आरिफ इकबाल की हत्या उनके चै बर में एक कट्टरपंथी द्वारा कर दी गई। आरिफ ने ईश निंदा के आरोपी को बरी किया था। इससे पहले 1994 में डाक्टर सज्जाद फारूख को भीड़ द्वारा पत्थर मार-मार कर उनकी हत्या कर दी गई थी। प्रोफैसर अताउर्रहमान सादिक की हत्या 2002 में की गई। सैमुअल मसीह की हत्या 2004 में एक पुलिस कर्मी द्वारा जेल में उन पर हथौड़ा मार कर की गई। 

वर्षों से पश्चिम और यहां तक कि भारत की सरकारें बरेलवियों को एक  उदारवादी इस्लामिक संगठन के तौर पर पेश कर रही थीं। बरेलवी स्कूल से जुड़े लोगों का मानना है कि सच्चा मुसलमान वह है जो पैग बर को प्यार करता है। फ्रांस टी.एल.पी. का उस समय लक्ष्य बना जब 2020 में सित बर माह में चार्ली हैब्दो ट्रायल शुरू हुआ। 

यूरोपियन संघ का प्रस्ताव चिंता व्यक्त करता है : यूरोपियन संघ के प्रस्ताव ने शगु ता कौसर और शफाकत इमैनुअल के बारे में विशेष चिंता व्यक्त की जिन्हें 2014 में ईश निंदा के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई थी। ये आरोप पैग बर मोह मद के अपमानजनक संदेश भेजने से उत्पन्न हुए थे जो कौसर के फोन से भेजे गए थे। 

यूरोपियन पाॢलयामैंट ने पाकिस्तानी सरकार की धार्मिक अल्पसं यकों के प्रति भेदभाव तथा ङ्क्षहसा को लेकर भी कड़ी आलोचना की है और गहरी चिंता जताई। यूरोपियन पार्लियामैंट के अनुसार पाकिस्तान में स्थिति 2020 से निरंतर खराब हो रही है क्योंकि सरकार ईशनिंदा कानूनों को लागू कर रही है और अल्पसं यक समुदायों की सुरक्षा करने में असफल हुई है। यूरोपियन पार्लियामैंट ने वर्तमान हालातों के मद्देनजर जी.एस.पी. प्लस स्टेटस के लिए पाकिस्तान की योग्यता की समीक्षा करने को कहा है।-अशोक मान 


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