लोकतंत्र में मतदाता ‘हीरो’ है अत: निर्भय होकर मतदान करें

punjabkesari.in Friday, Feb 03, 2017 - 11:42 PM (IST)

भारत का लोकतंत्र यहां के मतदाताओं के निर्णय पर टिका है। लोकतंत्र में मतदाता मालिक है, हीरो है। मतदाता प्रत्यक्ष मतदान करे या अप्रत्यक्ष हीरो मतदाता को ही माना जाता है। पर दुर्भाग्य है कि मतदाता सिर्फ चुनाव तक हीरो है। चुनाव के बाद चुना हुआ प्रतिनिधि मालिक बन जाता है जबकि  चुनाव के बाद चुने हुए प्रतिनिधि को ‘जन सेवक’ की भूमिका निभानी चाहिए। लोकतंत्र मतदाता और चुने हुए प्रतिनिधि के विश्वास पर टिका है। विधायक या संसद सदस्य जनता के सेवक और संविधान के संरक्षक हैं। लोकतंत्र के पहरेदार हैं। 

चुनाव सरकार को संवैधानिक मान्यता प्रदान  करते हैं, चुनाव चुनी हुई सरकार की कार्यप्रणाली पर अपनी मोहर लगाते हैं। चुनाव सरकार और शासन को वैधता प्रदान करते हैं। अत: स्वयं सिद्ध बात हुई कि लोकतंत्र की जड़ मतदाता है। लोकसभा, राज्य की विधानसभाओं, नगरपालिकाओं या पंचायतों के चुनाव भारत का मतदाता प्रत्यक्ष और राज्यसभा, राज्यविधान परिषदों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव मतदाता अप्रत्यक्ष रूप से करता है। 

भारत के लोकतंत्र का ‘हीरो’ नायक मतदाता है। मैं गर्व से कह सकता हूं, इक्का-दुक्का उदाहरण छोड़ दें तो भारत के लोकतंत्र का वास्ताविक हीरो मतदाता है, वोटर है। यहां का मतदाता चुपचाप पोङ्क्षलग बूथ पर जाएगा, वोट गिराएगा और घर आ जाएगा। आप लाख पूछो नहीं बताएगा वोट किस को डाला है। मतदाता की विशेषता है, मतदाता की यही विशेषता लोकतंत्र की मूल भावना है। भारत का मतदाता 16 बार लोकसभा के चुनावों में अपने मतदान का सफल प्रयोग करके आ गया है। भारत का सौभाग्य कहेंगे कि मतदाता ने चुपचाप अपने वोट से सत्ता परिवर्तन कर दिया। 

पड़ोसी देशों से सत्ता परिवर्तन खून-खराबे, रक्तपात से होता है, हमारे यहां मतदान से। पाकिस्तान, बंगलादेश, म्यांमार, श्रीलंका, अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों का हाल दुनिया जानती है। फिर क्यों न हम भारत के मतदाता का अभिनंदन करें। पंजाब में ऐसा ही परिवर्तन मतदान के रूप में 14 बार हो चुका है। पंजाब, यू.पी., उत्तरांचल, मणिपुर, गोवा में मतदाता फिर विजयी होगा। अंत: मुझे मतदाताओं से निवेदन करना है कि निर्भय होकर मतदान करें। 

भय, पक्षपात, स्वार्थ, लालच या दबाव में मतदान न करें। मतदाता को लोकतंत्र की रक्षा, क्षेत्र के विकास और संविधान-प्रदत्त अधिकारों के लिए मतदान करना है। इसमें दबाव कैसा? भय कैसा? लोकतंत्र स्वतंत्र भाव से चलता है। फिर दान तो लोक कल्याण के लिए किया जाता है या निजी जिंदगी में मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाता है। 

लोकतंत्र में भी मतदान देश और संविधान की रक्षा के लिए किया जाता है। वोट बेखौफ होकर डालिए। दान स्वार्थ भावना से ऊपर उठकर कीजिए। धर्म, जाति, पार्टी, लोभ, लालच मतदान में नहीं आना चाहिए। मतदान स्वतंत्र, वोट मतदाता का निजी अधिकार है। इसमें किसी का भी हस्तक्षेप लोकतंत्र की जड़ों को खोखला कर देगा। भारतवर्ष का लोकतंत्र दुनिया का विशालतम और सफलतम लोकतंत्र है जिसमें मतदाता सदैव केन्द्र ङ्क्षबदू में रहेगा। 

राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वे मतदाता को भ्रष्ट न करें। उसे अपने निजी अधिकार का स्वतंत्र प्रयोग करने दें। प्रतिनिधि जिसने मतदान लिया है, मतदाता से बड़ा नहीं। दान लेने वाला सदैव, सिर झुका कर दान प्राप्त करे। मतदाता पात्र व्यक्ति को ही अपना मतदान करे। दान के महत्व को देने-लेने वाले दोनों समझें। प्रजातंत्र में शासन जनता द्वारा चलाया जाता है। जनता को एक बार मूर्ख बनाया जा सकता है,  सदैव नहीं। मतदाता एक हीरो की भूमिका पहले ही निभाता आया है, अब पुन: पंजाब, यू.पी., उत्तरांचल, मणिपुर और गोवा के चुनावों में नायक बनकर उभरेगा, ऐसी मुझे उम्मीद है। मतदाता घबराए नहीं। भारत में लोकतंत्र के उगते सूर्य को देखे। आने वाली पीढिय़ों के भविष्य को देखे। 

मतदाता वोट के महत्व को जाने। एक-एक वोट का महत्व है। वाजपेयी की निर्वाचित सरकार मात्र एक वोट से गिर गई थी। कुछ मतदाता सोचते हैं, मेरे एक वोट न डालने से क्या होगा? मैं वोट नहीं डालूंगा तो आसमान तो नहीं गिर पड़ेगा। मैं जोर देकर कहूंगा-अवश्य गिर पड़ेगा। मतदाता के एक वोट पर लोकतंत्र का महल खड़ा है। हमें वोट डालने का यह अधिकार अनेक कुर्बानियों से मिला है। वोट डालो और सभी डालो।  सारे कामकाज छोड़ वोट डालो। मैं  चुनाव आयोग को साधुवाद देता हूं उसने बहुत बहुमूल्य सुधार चुनाव प्रणाली में किए हैं। चुनावों में सुधारों का यह क्रम रुकना नहीं चाहिए।

भारत की प्रभुसत्ता, गणतंत्रतात्मक प्रणाली और लोकतंत्र की नींव को मजबूत बनाना चुनाव आयोग का उत्तरदायित्व है। चुनाव आयोग प्रजातंत्र की सफलता के लिए कुशल एवं निष्पक्ष चुनाव व्यवस्था को अनिवार्य बनाए। याद रखें अगर चुनाव तंत्र दोषपूर्ण है या कुशल नहीं है या गैर ईमानदार लोगों द्वारा संचालित होता है तो प्रजातंत्र का अर्थ ही बेकार हो जाएगा। न्यायपूर्ण मतदान चुनाव का एकमात्र उद्देश्य हो। मतदाता का महत्व चुनाव आयोग पहचाने। षड्यंत्रों से चुनाव दूर रहे। भ्रष्ट-साधनों के मोह में मतदाता न फंसे। चुनाव आयोग अपने आप में प्रभु बने। लोकतंत्र के मूल भाव में पहुंचे।


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