आई.आई.टी. की डिग्री भी नौकरी दिलाने में नाकाम रही

punjabkesari.in Monday, May 27, 2024 - 05:29 AM (IST)

इस हफ्ते अखबारों में जिस खबर ने सबको चौंकाया वह थी कि इस साल आई.आई.टी. से पास हुए 38 फीसदी युवाओं को रोजगार नहीं मिला। यह अनहोनी घटना है। वर्ना होता यह था कि आई.आई.टी. में प्रवेश मिला तो बढिय़ा रोजगार की गारंटी होती थी। फर्क इतना ही होता था कि किसी को 60 लाख रुपए साल का पैकेज मिलता था तो किसी को 3 करोड़ रुपए साल का। पर इस साल तो आई.आई.टी. की प्रतिष्ठित डिग्री के बावजूद 50,000 महीने की भी नौकरी नहीं मिल रही। इससे युवाओं में भारी हताशा फैली है। आगे स्थिति सुधरने के कोई आसार नजर नहीं आते क्योंकि पूरी दुनिया में मंदी का असर फैलता जा रहा है। अब पता नहीं इन युवाओं को कितने बरस घर बैठना पड़ेगा या मामूली नौकरी से ही संतोष करना पड़ेगा। 

सोचने वाली बात यह है कि आई.आई.टी. में दाखिला और उसकी पढ़ाई कोई आसान काम नहीं होता। मां-बाप और उनके होनहार बच्चे लाखों रुपया और बरसों की तपस्या झोंक कर आई.आई.टी.में दाखिले की तैयारी करते हैं। दिल्ली का मुखर्जी नगर हो या राजस्थान का कोटा शहर आई.आई.टी. के अभ्यर्थियों को यहां लाखों की तादाद में संघर्ष करते हुए देखा जा सकता है, जिसके बाद दाखिला मिल जाए इसकी कोई गारंटी नहीं होती।

सोचिए कि एक मध्यम वर्गीय परिवार पर क्या बीत रही होगी जब उन्हें अपने बेरोजगार बच्चों के लटकते चेहरे रोज देखने पड़ रहे हों। जबकि इसमें न तो युवाओं का दोष है और न ही उनके परिवार का। यह संकट आॢथक नीतियों की कमियों के कारण उत्पन्न हुआ है।  कुछ वर्ष पहले मद्रास आई.आई.टी. के प्रोफैसर एम. सुरेश बाबू और साईं चंदन कोट्टू ने देश की बेरोजगारी पर एक तथ्यात्मक शोध पत्र प्रस्तुत किया था। उनका कहना है कि 50,000 करोड़ के ‘गरीब कल्याण रोजगार अभियान’ से फौरी राहत भले ही मिल जाए पर शहरों में इससे सम्मानीय रोजगार नहीं मिल सकता। 

देश के आर्थिक और सामाजिक ढांचे को देखते हुए शहरों में अनौपचारिक रोजगार की मात्रा को क्रमश: घटा कर औपचारिक रोजगार के अवसर को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। देश की सिकुड़ती अर्थव्यवस्था के कारण बेरोजगारी खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है। भवन निर्माण क्षेत्र में 50 प्रतिशत, व्यापार, होटल व अन्य सेवाओं में 47 प्रतिशत, औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र में 39 प्रतिशत और खनन क्षेत्र में 23 प्रतिशत बेरोजगारी फैल चुकी है। चिंता की बात यह है कि ये वह क्षेत्र हैं जो देश को सबसे ज्यादा रोजगार देते हैं। इसलिए उपरोक्त आंकड़ों का प्रभाव भयावह है। जिस तीव्र गति से ये क्षेत्र सिकुड़ रहे हैं उससे तो और भी तेजी से बेरोजगारी बढऩे की स्थितियां पैदा हो रही हैं। दो वक्त की रोटी का भी जुगाड़ न कर पाने की हालत में लाखों मजदूर व अन्य लोग जिस तरह लॉकडाऊन शुरू होते ही पैदल ही अपने गांवों की ओर चल पड़े उससे इस स्थिति की भयावहता का पता चलता है। 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई.एल.ओ.) के अनुसार भारत में 53.5 करोड़ मजदूरों में से 39.8 करोड़ मजदूर अत्यंत दयनीय अवस्था में काम करते हैं जिनकी दैनिक आमदनी 200 रुपए से भी कम होती है। इसलिए नई सरकार के सामने 2 बड़ी चुनौतियां होंगी। पहली, शहरों में रोजगार के अवसर कैसे बढ़ाए जाएं? क्योंकि पिछले 10 वर्षों में बेरोजगारी का प्रतिशत लगातार बढ़ता गया है। आज भारत में 45 वर्षों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। दूसरा, शहरी मजदूरों की आमदनी कैसे बढ़ाएं, जिससे उन्हें अमानवीय स्थिति से बाहर निकाला जा सके। 4 जून को लोकसभा के चुनाव परिणाम आ जाएंगे। सरकार जिस दल की भी बने उसे 3 काम करने होंगे। भारत में शहरीकरण का विस्तार देखते हुए, शहरी रोजगार बढ़ाने के लिए स्थानीय सरकारों के साथ समन्वय करके नीतियां बनानी होंगी। 

इससे यह लाभ भी होगा कि शहरीकरण से जो बेतरतीब विकास और गंदी बस्तियों का सृजन होता है उसको रोका जा सकेगा। इसके लिए स्थानीय शासन को अधिक संसाधन देने होंगे। दूसरा, स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन वाली विकासात्मक नीतियां लागू करनी होंगी। तीसरा, शहरी मूलभूत ढांचे पर ध्यान देना होगा जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था भी सुधरे। चौथा, देखा यह गया है कि विकास के लिए आबंटित धन का लाभ शहरी मजदूरों तक कभी नहीं पहुंच पाता और ऊपर के लोगों में अटक कर रह जाता है। इसलिए नगर पालिकाओं में विकास के नाम पर खरीदी जा रही भारी मशीनों की जगह अगर मानव श्रम आधारित शहरीकरण को प्रोत्साहित किया जाएगा तो शहरों में रोजगार बढ़ेगा। पांचवां, शहरी रोजगार योजनाओं को स्वास्थ्य और सफाई जैसे क्षेत्र में तेजी से विकास करके बढ़ाया जा सकता है  क्योंकि हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आज यह हालत नहीं है कि वह प्रवासी मजदूरों को रोजगार दे सके। अगर होती तो वे गांव छोड़ कर शहर नहीं गए होते। 

यह जरूरी है कि मनरेगा के तहत आबंटित धन और न्यूनतम कार्य दिवस, दोनों को बढ़ाया जाए, पर साथ ही यह मान बैठना कि जो मजदूर लौट कर गांव गए हैं उन्हें मनरेगा से या ऐसी किसी अन्य योजना से सम्भाला जा सकता है, अज्ञानता होगी।-विनीत नारायण


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