नाड़ जलाने की मजबूरी से किसानों को मुक्ति दिलाना सरकार की जिम्मेदारी

punjabkesari.in Thursday, May 18, 2017 - 12:28 AM (IST)

नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के प्रहार से पंजाब के किसान परेशान हैं, उत्पीड़ित हैं और हाशिए पर खड़े किए जा रहे हैं। उनके साथ न तो सरकार है और न ही कोई राजनीतिक पार्टी। सरकार और राजनीतिक पाॢटयां भी उसी सोच की शिकार बनी हुई हैं जो नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल पर हावी है ? 

पंजाब के किसानों से जुड़ी हुई जो खबरें सामने आ रही हैं वे परेशान करने वाली हैं, किसानों की आॢथक स्थिति बिगाडऩे वाली हैं तथा सिर्फ पंजाब के किसानों को गुनहगार, खलनायक और प्रदूषण विरोधी मान लिया गया है। नाड़ जलाने वाले किसानों पर कड़ी कार्रवाई हो रही है। पूरे पंजाब में सैटेलाइट से निगरानी हो रही है, सैटेलाइट से ही नाड़ जलाने वाले किसानों को गुनहगार साबित कर उनसे जुर्माना वसूला जा रहा है। अब 226 किसानों को गुनहगार मानकर जुर्माना वसूला गया है। प्रति 2 एकड़ 2500 रुपए का जुर्माना लगाया जा रहा है। अब तक 10 लाख से ज्यादा रुपए किसानों से जुर्माने के रूप में वसूले गए हैं। हालांकि यह आंकड़ा ज्यादा हो सकता है। 

किसानों की समस्या यह है कि अगर वे नाड़ नहीं जलाएंगे तो फिर धान की बुआई कैसे करेंगे, अगर धान की बुआई नहीं करेंगे तो उनके खेत परती रह जाएंगे, उनकी आजीविका मारी जाएगी, खेतिहर मजदूर जिनकी खेती की मजदूरी से जीविका चलती है, की जीविका भी मारी जाएगी। पर ये सब सोचने और समझने का समय किसके पास है, अगर किसी के पास है तो भी वह सोचेगा क्यों। पंजाब के किसानों का दुर्भाग्य यह है कि उन्हें दिल्ली के प्रदूषण के लिए गुनहगार मान लिया गया। यह स्थापित कर दिया गया कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में जो प्रदूषण है तथा हवा जो जहरीली हो गई है वह पंजाब के किसानों की करतूत है। ऐसा स्थापित करने वाले वही लोग हैं जिनकी नजरों में किसान की कोई अहमियत ही नहीं होती है। ऐसे लोग किसानों को मिलने वाली नाममात्र की सुविधाओं के खिलाफ  खड़े होकर अर्थव्यवस्था हनन और चौपट होने का बवंडर खड़ा कर देते हैं। 

प्रदूषण क्या सिर्फ  नाड़ जलाने से ही होता है? क्या दिल्ली सिर्फ पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा नाड़ जलाने से ही प्रदूषित होती है? क्या दिल्ली फैक्टरियों के प्रदूषण से प्रदूषित नहीं होती है? क्या नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का वह जज दोषी नहीं है जिसने ए.सी. कमरों में बैठकर पंजाब के किसानों को प्रताडि़त करने और उनसे जुर्माना वसूलने का आदेश सुनाया है। ए.सी. मशीन से कितनी गर्मी होती है, कितना मौसम प्रदूषित होता है, यह कौन नहीं जानता। ए.सी. कमरे को ठंडा तो जरूर करता है पर वह अपने पीछे से कितनी गर्म हवा फैंकता है, यह कौन नहीं जानता है। 

गर्मी के ही दिनों की बात नहीं है। सामान्य मौसम में भी दिल्ली के लोगों को ए.सी. में रहने की आदत है, ए.सी. के बिना दिल्ली के लोग रह ही नहीं सकते हैं। दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने के नाम पर सी.एन.जी. बसें चलाई गई थीं। खासकर ए.सी. सी.एन.जी. बसें दिल्ली की हवा को कितना गर्म करती हैं, यह दिल्ली के लोग जानते हैं, भुगतते हैं, ए.सी. सी.एन.जी. बसों के इंजन के पास खड़े होने मात्र से जलन होने लगती है, गर्मी इतनी कि झेलना मुश्किल हो जाता है। दिल्ली की सड़कों पर हजारों नहीं, लाखों कारें चलती हैं। सभी कारें ए.सी. से युक्त होती हैं। ये कारें गर्मी पैदा नहीं तो और क्या करती हैं? यमुना नदी को ही देख लीजिए। यमुना नदी को गंदा करने वाले कौन लोग हैं? 

यमुना नदी में नालों का पानी गिरता है, पशु कत्लखाने का गंदा खून और पानी नालियों के सहारे यमुना नदी में गिरता है। यमुना नदी दिल्ली के लोगों के पाप से इतनी प्रदूषित हो गई है कि कोई आदमी उसमें स्नान करने के लिए भी नहीं जाता है, फिल्टर वाली मशीनें लगाने और दवाएं मिलाने के बावजूद यमुना नदी का पानी पीने के लायक नहीं बन पाता है।

नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के जिस जज ने पंजाब में नाड़ जलाने वाले किसानों पर कड़ी कार्रवाई करने और नाड़ जलाने पर जुर्माना लगाने का आदेश पारित किया था उस जज को दिल्ली में प्रदूषण फैलाने वालों की करतूत दिखाई नहीं पड़ती है। उस जज को अपना ए.सी. नहीं दिखाई पड़ता है, जिस ए.सी. युक्त कमरे में बैठ कर वह ठंडक महसूस करता है, गर्मी में पसीने से तर-बतर होने से बचता है, उस जज को दिल्ली में चलने वाली ए.सी. सी.एन.जी. बसें नहीं दिखाई पड़ती हैं जो दिल्ली की हवा को प्रदूषित करती हैं, उस जज को दिल्ली की लाखों कारें नहीं दिखाई देतीं जिनकी ए.सी. की गर्मी आम आदमी झेलता और परेशान होता है। 

उस जज को दिल्ली के पशु कत्लखाने दिखाई नहीं देते हैं जिनकी करतूत से यमुना नदी प्रदूषित होती है, उस जज को वैसी फैक्टरियां नहीं दिखाई देती हैं जो अवैध रूप से दिल्ली और आसपास के इलाकों में चलती हैं। पर वह जज इन प्रदूषण फैलाने वाले गुनहगारों पर कार्रवाई कर ही नहीं सकता है या कोई फैसला सुना ही नहीं सकता है। आखिर क्यों? इसलिए कि ये पावरफुल लोग हैं, इन्हें आराम के लिए सभी संसाधन चाहिएं और ये उसका उपभोग करेंगे, चाहे वे संसाधन प्रदूषण फैलाने वाले ही क्यों न हों। दिल्ली में प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक बैठते हैं। 

यह सही है कि नाड़ जलाने और पुआल जलाने से प्रदूषण का स्तर जरूर ऊपर होता है। पंजाब और हरियाणा के किसान जब नाड़ और पुआल जलाते हैं तो फिर प्रदूषण काफी बढ़ जाता है, जहरीला धुआं पंजाब और हरियाणा की सीमा को पार कर दिल्ली तक पहुंच जाता है। दिल्ली के लोगों को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है, आकाश धूल और धुएं से भर जाता है। जब आकाश धूल और धुएं से भर जाएगा तो फिर परेशानी तो होगी ही। खासकर कृषि वैज्ञानिकों को भी इस पर विचार करना चाहिए था। अभी तक कोई ऐसी टैक्नोलॉजी के संबंध में किसानों को जानकारी नहीं है जिसके माध्यम से नाड़ और पुआल के निस्तारण से प्रदूषण नहीं होता हो। ऐसी टैक्नोलॉजी विकसित कराने की जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिए। अगर दुनिया में कहीं भी ऐसी टैक्नोलॉजी है तो उसकी जानकारी भी किसानों को उपलब्ध करानी चाहिए।
 


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