चिंताजनक ‘आर्थिक स्थिति’ पर सरकार तुरंत ध्यान दे

punjabkesari.in Thursday, Oct 24, 2019 - 01:04 AM (IST)

देश में जारी मंदी, जो कई मानदंडों तथा विभिन्न एजैंसियों द्वारा जारी आंकड़ों में प्रतिबिम्बित होती है, गम्भीर ङ्क्षचता का कारण है तथा सरकार को इस गम्भीर मुद्दे पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। देश में मंदी लगभग 5 वर्ष पूर्व नोटबंदी तथा जी.एस.टी. लागू करने के बाद शुरू हुई, जिसमें कमी आने के कोई संकेत दिखाई नहीं देते तथा हालिया आंकड़े इस ओर संकेत देते हैं कि स्थिति और भी खराब होने की आशंका है। 

जहां यह सच है कि विश्व में लगभग हर कहीं अर्थव्यवस्था में कुछ न कुछ मंदी का दौर चल रहा है, भारत एक विकसित होती हुई अर्थव्यवस्था के तौर पर सम्भवत: इससे सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। वैश्विक कारकों के अतिरिक्त स्थानीय कारकों तथा नीतियों ने देश में खराब आर्थिक स्थितियों में और अधिक वृद्धि की है।

एन.एस.एस.ओ. की रिपोर्ट
भारतीय-अमरीकी अभिजीत बनर्जी, जिन्होंने हाल ही में अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार जीता है, ने गत सप्ताह कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था ‘ढिलमुल’ है। उन्होंने नैशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन के आंकड़ों का हवाला दिया, जो एक सरकारी एजैंसी है तथा जो देश के शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में औसत उपभोगों बारे रिपोर्ट देती है। इसकी नवीनतम रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि 2014-15 तथा 2017-18 के बीच उपभोग के स्तरों में गिरावट आई है। उन्होंने कहा कि उपभोग के स्तर एक विकसित होती अर्थव्यवस्था तथा किसी भी देश की समृद्धि के संकेतक होते हैं। यह सम्भवत: पहली बार है कि स्तर नीचे गए हैं और यह चेतावनी के स्पष्ट संकेत हैं। 

केन्द्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा तैयार इसी रिपोर्ट में इस ओर संकेत किया गया है कि 2017-18 में देश में बेरोजगारी की दर 45 वर्षों में 5.1 प्रतिशत के सर्वोच्च पर पहुंच गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में 5.3 प्रतिशत की तुलना में शहरी क्षेत्रों में 7.8 प्रतिशत के साथ बेरोजगारी अधिक थी। एक अन्य महत्वपूर्ण संकेतक यह था कि युवाओं में बेरोजगारी की दर एक रिकार्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई है। 

मनरेगा तथा युवा
इन आंकड़ों को हाल ही में जारी मनरेगा पर आंकड़ों के साथ पढऩा चाहिए। यहां चिंताजनक मानदंड यह था कि अधिक से अधिक ग्रामीण युवा योजना के लिए अपना नाम सूचीबद्ध करवा रहे हैं। 18 से 30 वर्ष आयु वर्ग में युवा कर्मचारियों पर आधारित हिस्सेदारी, जो 2017-18 में 58.69 लाख थी वह 2018-19 में 70.71 लाख पर पहुंच गई और इसमें तेजी से वृद्धि हो रही है। यह इस बात का संकेत है कि युवाओं को नौकरियां नहीं मिल रहीं और वे उस योजना के माध्यम से रोजगार पाने को मजबूर हो रहे हैं, जो सर्वाधिक गरीबों के लाभार्थ बनाई गई है। 

आटोमोबाइल उद्योग रोजगार तथा राजस्व पैदा करने वाला सबसे बड़ा निजी क्षेत्र है। कारों, दोपहिया वाहनों तथा ट्रकों सहित मोटर वाहनों की बिक्री में तीव्र गिरावट देश में कुल मंदी की ओर संकेत करती है। गत एक वर्ष के दौरान बिक्री में गिरावट ने प्रमुख निर्माताओं को अपने उत्पादन में कटौती करने को बाध्य कर दिया है तथा आटोमोबाइल अनुषंगी कम्पनियों सहित पूरे आटोमोटिव क्षेत्र पर दबाव बनाया है, जो वाहनों के विभिन्न पुर्जे बनाती हैं। 

सोसाइटी ऑफ इंडियन आटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष वाहनों की बिक्री गत 19 वर्षों में सर्वाधिक कम दर्ज की गई है। देश भर में लगभग 500 डीलरशिप्स बंद हो गई हैं तथा अब तक कम से कम 30000 लोग नौकरियां गंवा चुके हैं। यहां तक कि इस वर्ष त्यौहारी सीजन भी आटोमोबाइल क्षेत्र के लिए अच्छी खबर नहीं लाया। नोटबंदी तथा वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) लागू करने के कारण गई नौकरियों में आटोमोबाइल क्षेत्र में गंवाई गई नौकरियों ने और भी वृद्धि की है। हजारों की संख्या में छोटे तथा मध्यम उद्योग बंद चले आ रहे हैं अथवा उन्होंने नाममात्र का ही उत्पादन किया है। धन की कमी तथा बाजार, बैंकों द्वारा ऋण देने में आनाकानी, उत्सर्जन के नए नियमों को लेकर संदेह तथा वाहनों की संचालन योग्यता के समय में कमी सहित कई कारकों ने आटोमोबाइल क्षेत्र को बीमार बनाया है। 

जी.डी.पी. रैंकिंग
भारत की अर्थव्यवस्था के अन्य मानदंड भी अधिक चमकदार नहीं हैं। 2018 में विश्व बैंक की जी.डी.पी. रैंकिंग में भारत एक पायदान फिसल गया और अब यह 7वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तथा ब्रिटेन तथा फ्रांस भारत से आगे हैं। गत वर्ष तक हम फ्रांस से आगे थे। 2018 की पहली तिमाही में 7.9 प्रतिशत पर पहुंचने के बाद से देश की विकास दर में भी गिरावट आ रही है। संशोधित अनुमानों के अनुसार अब यह 5 से 6 प्रतिशत के बीच है। शेयर बाजार भी बहुत अच्छी कारगुजारी नहीं दिखा रहे जबकि रुपए की विनिमय दर में लगातार गिरावट आ रही है। 

यह सर्वविदित है कि बेरोजगारी तथा उत्पादन दर अथवा अर्थव्यवस्था में गिरावट गम्भीर सामाजिक तथा कानून व्यवस्था की स्थिति का कारण बन सकती है। यह व्यापक प्रदर्शनों को बढ़ावा तथा चोरी, डकैतियों तथा कहीं अधिक गम्भीर अपराधों की घटनाओं में तेजी से वृद्धि कर सकती है। आर्थिक समस्याओं के कारण कम से कम 4 देशों को वर्तमान में गम्भीर प्रदर्शनों तथा ङ्क्षहसा का सामना करना पड़ रहा है। ये हैं चिली, इक्वाडोर, लेबनान तथा ईराक। 

इस वर्ष के शुरू में लोकसभा तथा महाराष्ट्र व हरियाणा के विधानसभा चुनावों के दौरान ध्यान अर्थव्यवस्था की स्थिति की बजाय अन्य मुद्दों पर रहा। सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं लेकिन यह स्पष्ट तौर पर पर्याप्त नहीं हैं। यह मोदी सरकार के लिए उचित समय है कि वह आर्थिक मोर्चे पर अपना ध्यान केन्द्रित करे।-विपिन पब्बी


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