बेहतर मौसम की स्थिति में चुनाव कराए जाएं

punjabkesari.in Monday, May 06, 2024 - 05:30 AM (IST)

जलवायु संबंधी चिंता इतनी गंभीर है कि इसके लिए सुविचारित और सामूहिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। लोकतंत्र के हित में इस प्रश्न का समाधान करने के लिए सभी हितधारकों को एक साथ आना चाहिए और कोई रास्ता निकालना चाहिए। हम आम चुनाव के बीच में हैं। यह एक से अधिक कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर है। भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इस बार 96.88 करोड़ नागरिक वोट देने के पात्र हैं। प्रत्येक वोट, चाहे वह किसी भी उम्मीदवार के लिए हो, लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण वोट है।

दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोकतंत्रों में चुनाव हो रहे हैं, और उनमें से प्रत्येक का परिणाम विभिन्न विश्व घटनाओं को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करेगा। लेकिन यह भारत के चुनाव ही होंगे जो लोकतंत्र को मजबूत बनाने में सबसे अधिक योगदान देंगे। जाहिर तौर पर समय की मांग यह है कि चुनावों को यथासंभव सहभागी बनाया जाए। मतदाताओं तक पहुंचने और दूर-दराज के स्थानों में मतदान की व्यवस्था करने के लिए हर संभव प्रयास करने के लिए भारत के चुनाव आयोग (ई.सी.आई.) की सराहना की जानी चाहिए, जिनमें से कुछ स्थानों तक पहुंच मुश्किल है। नागरिक समाज संगठनों और समाचार मीडिया ने भी मतदान के अधिकार और कत्र्तव्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाए हैं।

मतदाताओं ने भी उस आह्वान का जवाब दिया है और पहले 2 चरणों में उत्साहपूर्वक अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। अब तक का रुझान संतोषजनक रहा है। लेकिन, जब भी मतदान-प्रतिशत के आंकड़ों पर चर्चा होती है, तो पर्यवेक्षक और विश्लेषक अक्सर एक बड़ी चुनौती, अर्थात् गर्म मौसम का उल्लेख करते हैं। यदि गर्मी के बावजूद मतदाता अच्छी संख्या में बाहर आए हैं, तो कम कठिन मौसम में चुनाव होने पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भागीदारी कहीं अधिक होती। वर्तमान परिदृश्य में मौसम एक अपरिहार्य कारक है। चुनावों को इस तरह से निर्धारित किया जाना चाहिए कि 17वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने (16 जून को) से पहले नतीजे आ जाएं। रसद और सुरक्षा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए मतदान को कई हफ्तों तक फैलाना होगा।

इन 2 तथ्यों को देखते हुए, हमें जो मिला है वह एक चुनाव कार्यक्रम है जो अप्रैल में शुरू होता है और जून में समाप्त होता है। ठीक वही अवधि जब भारत के अधिकांश हिस्से बढ़ते पारे के स्तर से पीड़ित होते हैं। यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि ई.सी.आई. चुनावों का कार्यक्रम तय करते समय, मौसम के कारक को ध्यान में रखे, लेकिन उसे 16 जून की अंतिम समय सीमा का पालन करना पड़ा। जैसे ही भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आई.एम.डी.) ने अप्रैल के दौरान कई जिलों में लू की चेतावनी जारी की ई.सी.आई. ने त्वरित कार्रवाई की। इसने ई.सी.आई., आई.एम.डी., एन.डी.एम.ए. और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एम.ओ.एच.एफ.डब्ल्यू.) के अधिकारियों को शामिल करते हुए एक टास्क फोर्स गठित करने का निर्णय लिया, जो किसी भी संबंधित विकास और शमन उपायों के लिए प्रत्येक मतदान चरण से 5 दिन पहले गर्मी की लहर और आर्द्रता के प्रभाव की समीक्षा करेगी।

स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय को चुनाव संचालन को प्रभावित करने वाली गर्मी की लहर की स्थिति में तैयारी करने और सहायता प्रदान करने के लिए राज्यों में स्वास्थ्य अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी करने का  निर्देश दिया गया था। चुनाव आयोग ने राज्य-स्तरीय अधिकारियों को मतदान केंद्रों पर आश्रय, पीने के पानी और पंखों की व्यवस्था करने के लिए भी कहा।

बेहतरीन प्रस्ताव : मुझे यकीन है कि ये उपाय मतदाताओं को कुछ हद तक राहत प्रदान करेंगे। फिर भी, वे चुनाव प्रक्रिया के केवल एक पहलू को कवर करते हैं। उम्मीदवारों, राजनीतिक नेताओं और पार्टी कार्यकत्र्ताओं को बाहर, गर्मी और धूल में प्रचार करना पड़ता है। सार्वजनिक रैलियों में दिग्गज नेताओं के बेहोश होने की खबरें चौंकाने वाली थीं लेकिन आश्चर्यजनक नहीं।  मतदान केंद्र पर व्यवस्थाओं की सराहना की जानी चाहिए, लेकिन जिन मतदाताओं को ग्रामीण इलाकों में तेज धूप में काफी दूरी तय करनी पड़ सकती है, वे बाहर निकलना पसंद नहीं करेंगे।

हमें ध्यान देना चाहिए कि ये परिदृश्य अपवाद से अधिक एक आदर्श हैं। भारतीय गर्मियों के लिए मौसम की यह स्थिति बिल्कुल भी असामान्य नहीं है। उत्तरी मैदानी इलाकों और दक्षिणी प्रायद्वीपीय और तटीय क्षेत्रों में तापमान 40 डिग्री सैल्सियस से ऊपर बढ़ जाता है यहां तक कि कुछ स्थानों पर 45 डिग्री सैल्सियस से भी ऊपर। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भविष्य में मई-जून में जब भी मतदान होगा, तब भी इसी तरह की चरम मौसम संबंधी समस्याएं होंगी। ग्लोबल वाॄमग और जलवायु परिवर्तन के कारण स्थितियां, यदि कुछ भी हो, केवल बदतर हो सकती हैं। 

इसलिए, हमें मतदाताओं, प्रचारकों और, हमें चुनाव संचालन के प्रभारी अधिकारियों को नहीं भूलना चाहिए। अब समय आ गया है कि हम आम चुनावों के लिए मौसम के अनुकूल समय-सारणी प्रस्तावित करें। मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि यह विषय एक साथ चुनावों पर मेरी अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति के संदर्भ की शर्तों का हिस्सा नहीं था। चुनाव समय सारिणी के बारे में मेरा सुझाव समिति की सिफारिशों से अलग है और व्यक्तिगत क्षमता में दिया गया है। -राम नाथ कोविन्द  (पूर्व राष्ट्रपति) (साभार एक्सप्रैस न्यूज)


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