सरकार लद्दाख में विरोध प्रदर्शनों पर ध्यान दे

punjabkesari.in Thursday, Mar 21, 2024 - 05:41 AM (IST)

राष्ट्रीय राजधानी से दूर के स्थानों में उत्पन्न होने वाले मुद्दों को नजरअंदाज करने या कम प्राथमिकता देने की केन्द्र सरकार की प्रवृत्ति अतीत में बहुत हानिकारक साबित हुई है लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार ने कोई सबक नहीं लिया है जबकि मणिपुर  ‘डबल इंजन की सरकार’ के बावजूद लगभग 8 महीने से जल रहा है। चीन के साथ रणनीतिक रूप से संवेदनशील सीमा पर स्थित लद्दाख क्षेत्र में संभावित खतरनाक स्थिति पैदा हो रही है। 

भले ही सरकार और पूरे देश का ध्यान आगामी आम चुनावों पर केन्द्रित है लेकिन लद्दाख पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है, जहां स्थानीय निवासी आदिवासी क्षेत्रों को अतिक्रमण और शोषण से बचाने के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं। उनकी मांगों में लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा, संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना, स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों में आरक्षण और लेह और कारगिल क्षेत्रों के लिए एक संसदीय सीट शामिल है। 

लद्दाख की 95 प्रतिशत आबादी विशिष्ट जातीयता, संस्कृति और रीति-रिवाजों वाली आदिवासी लोगों की है। जहां लद्दाख के अधिकांश हिस्सों में बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म है, वहीं कारगिल और द्रास जैसे मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्र भी हैं। उनकी सबसे बड़ी चिंता जनसांख्यिकी में बदलाव और आदिवासी भूमि की सुरक्षा है। उन्हें आशंका है कि देश के अन्य हिस्सों से लोग उद्योग स्थापित करेंगे, व्यापार स्थापित करेंगे,  जमीनें खरीदेंगे, बाहर से लोगों को लाएंगे जिससे जनसांख्यिकीय परिवर्तन होगा और स्थानीय लोगों की नौकरियां खत्म हो जाएंगी।

इस महीने की शुरूआत में एक विशाल रैली के बाद, जोकि लद्दाख क्षेत्र में अब तक की सबसे बड़ी रैली है, एक सामाजिक कार्यकत्र्ता और इंजीनियर, सोनम वांगचुक; जो आमिर खान की फिल्म ‘3 इडियट्स के पीछे प्रेरणा थे’  ने अनिश्चितकालीन उपवास शुरू किया है जो आज 15वें दिन में प्रवेश कर गया है। केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग और औद्योगिक और खनन लॉबी से नाजुक लद्दाख के पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए दबाव बनाने के लिए वह अपने सैंकड़ों समर्थकों के साथ माइनस 12 डिग्री तापमान की ठंड में बैठे और सो रहे हैं। 

लद्दाखी लंबे समय से पूर्ववर्ती राज्य के जम्मू-कश्मीर क्षेत्र से अलग होने की मांग कर रहे हैं। 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, लद्दाख को जम्मू-कश्मीर क्षेत्र से अलग कर दिया गया और एक अलग केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। इस घोषणा का जनजातीय आबादी ने स्वागत किया लेकिन उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि उनके पास अभी भी निर्णय लेने या कानून लाने की शक्तियों की कमी है क्योंकि ऐसा करने की शक्ति जम्मू और कश्मीर सरकार से केन्द्र सरकार के पास स्थानांतरित हो गई है। लद्दाख में एक स्वायत्त पर्वतीय परिषद है लेकिन इस प्रावधान के कारण इसे शक्तिहीन कर दिया गया है कि किसी भी प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय सरकार द्वारा लिया जाएगा। और चूंकि लद्दाख अब एक केन्द्र शासित प्रदेश है इसलिए ये शक्तियां केन्द्र सरकार को स्थानांतरित कर दी गई हैं। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और उसके बाद जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के बाद, लद्दाख को बिना विधायिका के एक अलग केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में मान्यता दी गई थी।

आंदोलन का नेतृत्व कर रहे वांगचुक ने बताया कि भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2019 के अपने घोषणापत्र के साथ-साथ 2020 में लद्दाख हिल कौंसिल चुनाव में भी वादा किया था कि लद्दाख को आदिवासियों की तरह छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा प्रदान की जाएगी। देश के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में इलाकों को सुरक्षा दी गई है। उन्होंने कहा कि उद्योग, बांध और खनन स्थापित करके पहाड़ों का शोषण किया जा रहा है और उनका लक्ष्य लद्दाखी लोगों की आवाज को सुनना है ताकि औद्योगिक और खनन लॉबी का दबाव बेअसर हो और सरकार निष्पक्ष निर्णय ले सके। 

इस बीच कांग्रेस, भाजपा और  ‘आप’ के नेताओं ने लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया है। उन्होंने एक प्रस्ताव पारित कर कहा कि जब तक केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती तब तक वे चुनावों का बहिष्कार करेंगे। प्रदर्शनकारी अब 10,000 लद्दाखी चरवाहों और किसानों के बॉर्डर मार्च की योजना बना रहे हैं। जैसा कि सर्वविदित है कि चीन ने पहले ही इस क्षेत्र में भूमि के बड़े हिस्से पर अतिक्रमण कर लिया है और सीमा के करीब बुनियादी ढांचे का विकास भी कर रहा है। लद्दाखी आदिवासियों की आशंकाओं को प्राथमिकता के आधार पर संबोधित किया जाना चाहिए और अब समय आ गया है कि सरकार क्षेत्र में उभरती स्थिति पर ध्यान दे।-विपिन पब्बी
 


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