मनुष्यों और पशुओं दोनों के लिए ‘समूह’ में रहना अच्छा

punjabkesari.in Wednesday, Feb 12, 2020 - 03:04 AM (IST)

चींटियां और मधुमक्खियां एक ऐसी प्रणाली की उदाहरण बन गई हैं जो केन्द्रीय नियंत्रण के बिना समन्वित हैं। बुद्धिमता केवल किसी प्रभुत्व वाले अग्रणी में ही नहीं होती, यह पूरे समूह में होती है। एक समूह में 2 प्रकार की बुद्धिमता संचालित होती है: अनुकूली जिसका अर्थ है व्यक्तियों और समूह के बीच परस्पर क्रिया से आने वाले निर्णय-जहां समूह एक संज्ञानात्मक इकाई के रूप में एक साथ काम करने वाले एजैंटों का जमावड़ा है। 

जीव स्वाभाविक रूप से प्रतिस्पर्धी हैं, फिर भी सहयोग व्यापक है। जीन जीनोम में सहयोग करते हैं, कोशिकाएं टिशुओं में सहयोग करती हैं और व्यक्ति समाजों में सहयोग करते हैं। परम्परागत रूप से जब मानव समाज आज जितने बड़े नहीं थे, वे छोटे परिवारों,कबीलों, इकाइयों में मनुष्यों के बीच स्वस्थ, स्थायी सामाजिक संरचनाएं बन गए थे और सदियों तक चले। इसके विपरीत जब मनुष्यों ने राष्ट्रों और साम्राज्यों में इकट्ठा होने का प्रयास किया है तो अंतहीन मुसीबतें, सत्ता-संघर्ष और अस्थिरताएं सामने आई हैं। 

मनुष्यों और पशुओं दोनों के लिए समूह में रहना अच्छा है क्योंकि निगरानी और रक्षा प्रदान करने के लिए कई और प्राणी होते हैं, प्रजनन आसान होता है, मदद उपलब्ध होती है, ऊष्मा बेहतर ढंग से बचाई जाती है, भोजन की तलाश करना आसान है। बच्चा सम्भालना, खिलाना, सोना, झुंड बनाना, लम्बे समय तक आराम करना और पलायन करना भी आसान हो जाता है। पशु एक-दूसरे के लिए परस्पर आकर्षण या सीमित संसाधनों के चलते ही इकटठे होते हैं। बार्क बीटल किसी गिरे हुए लॉग की छाल के लिए परस्पर आकर्षण और उनकी प्रजातियों के अन्य सदस्यों की गंध से भी इक्ट्ठे होते हैं। 

एक बार पशुओं का समूह बनने के बाद एक तंत्र कार्य करता है जो समूह में रहने को दक्ष बनाता है। कुछ पेड़ों पर रहने वाले समूहों में निम्फ ऐसी कम्पन का उपयोग करके शिकारी के खतरे का संदेश देती है जिसका मानव केवल इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों के साथ ही पता लगा सकता है। ईस्टर्न टेंट कैटरपिलर एक सामुदायिक तम्बू में रहते हैं जो उनके आकार में बढऩे के साथ बढ़ते हैं और वे उसमें और रेशम जोड़ते हैं। कॉलोनी के सदस्य वनस्पति से भोजन ढूंढने हेतु थोड़ी देर के लिए तम्बू को छोड़ते हैं और पीछा करने के लिए समूह के अन्य सदस्यों हेतु रासायनिक निशान छोड़ते हैं। क्लिफ अबाबील जैसे कॉलोनी के पक्षियों में असफल रहने वाले पक्षी अक्सर दूसरे पक्षियों को भोजन के साथ अपने घोंसले में लौटते हुए देखते हैं और भोजन मिल सकने वाले स्थलों का पता लगाने के लिए उनका पीछा करते हैं। लकड़बग्घे या भेडि़ए किसी जैबरा को मार डालने के लिए एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। 

लम्बे समय में सदस्यों के बीच स्थिर सामाजिक समूहों के परस्पर सम्पर्क अक्सर परोपकारी होते हैं। उदाहरण के लिए जब एक जमीनी गिलहरी पास में भेडि़ए की मौजूदगी के बारे में समूह के अन्य सदस्यों को चेतावनी देने के लिए खतरे का संकेत देती है, तो यह भेडि़ए का ध्यान आकर्षित करती है और स्वयं को खाए जाने की संभावना को बढ़ा देती है। इसी तरह, एक मादा मेर्कट प्रजनन नहीं करती है और इसके बजाय समूह के किसी अन्य सदस्य के बच्चों को खिलाती है। समय के साथ समूह में रहने वाले जीव नए व्यवहार को जन्म देते हैं। केवल मनुष्य ही नहीं हैं जो भाई-भतीजावाद में लिप्त हैं: वानर भी परिजनों को व्यवहार में प्राथमिकता देते हैं, बंदरों और मुर्गियों द्वारा समाजों में पदानुक्रम भी विकसित किए जाते हैं और पृथक जीव समूहों के भीतर गठबंधन बनाते हैं। इंसान के समान ही पशु भी समाज बनाते हैं। मछलियों के भी व्यवसाय के आधार पर समूह होते हैं। कोरल रीफ्स में बड़ी मछलियों के शरीर से परजीवी को हटाने के लिए क्लीनर मछली जिम्मेदार होती है।

चिंपैंजी कुशल सैन्य अभियान चलाते हैं। युगांडा में चिंपैंजियों के एक समुदाय पर 10 साल के अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि अक्सर चिंपैंजी नर के समूह अपने क्षेत्र और पड़ोसी कबीले की भूमि के बीच की सीमा की तरफ से उत्तर की ओर बढ़ते हैं। वे चुपके से जंगल में एक लाइन में चलेंगे, व्यावहारिक रूप से कोई खाना न खाते हुए या बिल्कुल भी सामाजिक न होते हुए। वे सावधानी से दूसरे कबीले के जीवों के संकेतों की तलाश करेंगे। जब वे अपनी भूमि पर उत्तरी कबीले के किसी सदस्य को पाते थे तो वे उसे तुरंत मार डालते थे। पैटर्न का विश्लेषण करने के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि चिंपैंजी युद्धरत थे। वे जमीन के लिए लड़ रहे थे और बहुत संगठित तरीके से ऐसा कर रहे थे। तंजानिया में शोधकत्र्ताओं ने एक गृहयुद्ध देखा जब नाराज चिंपैंजियों का एक वर्ग बड़े समूह से अलग हो गया। अगले 5 वर्षों में अलग हुए समूह ने मूल झुंड को अचानक, अच्छी तरह से सोच-समझ कर किए गए हमलों से नष्ट कर दिया। 

बंदर हमेशा एक-दूसरे को संवारने में लगे रहते हैं, लेकिन परोपकारी समूह की गतिविधियों से अधिक जूं को फर से बाहर निकालना उनकी मुद्रा है। उदाहरण के लिए मादा यौन संबंधों के लिए संवरने का व्यापार करती है। शोधकत्र्ताओं ने देखा कि मादाएं 8 मिनट संवारे जाने के बदले किसी के साथ यौन क्रिया में शामिल हुईं। यह प्रणाली आपूर्ति और मांग के नियम का पालन करती है-जब आसपास कम मादाएंं थीं, तो यौन क्रिया के लिए कीमत 16 मिनट संवारे जाने तक बढ़ गई थी। केवल यौन क्रिया के लिए ही संवारे जाने का आदान-प्रदान नहीं किया जाता है। मादा बंदर अन्य फायदों के बदले में भी यह कार्य करती हैं (उदाहरण के लिए, एक विशेष समय हेतु अपने शिशुओं को रखने के लिए)। जब वैज्ञानिकों ने एक वेलवेट बंदर को दूसरे बंदरों के लिए सेब की पेटी खोलने के लिए प्रशिक्षित किया तो जल्द ही वह समूह में सबसे अच्छा तैयार किया गया बंदर बन गया (बंदरों के एक समुदाय में ‘अमीर’ बंदर की पहचान इससे होती है कि उसकी फर कितनी अच्छी लगती है)। फिर उन्होंने उसी काम को करने के लिए एक और बंदर को प्रशिक्षित किया। निश्चित रूप से  पहले बंदर को तैयार करने के लिए मिलने वाला फायदा आधा हो गया। 

ओर्कास एक-दूसरे को सब कुछ सिखाते हैं-गायन से लेकर, नए खाद्य पदार्थ खाने से मछली पकडऩे तक। कनाडा के मरीन लैंड में ओर्का व्हेल में से एक ने पक्षी पकडऩे की एक शानदार विधि विकसित की: वह कुछ मछलियों को ले जाएगी, उन्हें चबाएगी और फिर उन्हें पानी की सतह पर चारे के रूप में थूक देगी। जब कोई पक्षी आसान भोजन के लिए नीचे कूदेगा तो व्हेल झपट कर उस पक्षी को खा जाएगी। जल्द ही, अन्य ओर्कास ने भी ऐसा करना शुरू कर दिया। कटलफिश अनुशासन में रहती हैं। वे एक ही समय में विभिन्न चीजों को पूरा करने के लिए अपने शरीर को अलग-अलग पैटर्न में विभाजित कर सकती हैं। इसके शरीर के आधे हिस्से की बनावट किसी सखा को आकर्षित करने के लिए बनाई गई हो सकती है, जबकि दूसरे आधे हिस्से की बनावट शिकारियों से खुद को छुपाने के लिए पूरी तरह से अलग हो सकती है। वे कोरल या एलगी के रूप में खुद को छिपाने के लिए आकार बदलने की रणनीतियां अपनाती हैं। 

समूहों में रहने वाले अधिकांश मानव भयभीत होने पर दूसरों के कल्याण को भूल जाते हैं और जीवित बचे रहने के लिए किसी भी तरीके को अपनाते हैं। यही कारण है कि जब आग लगने के दौरान भगदड़ मच जाती है और भागने की हड़बड़ी में लोग दूसरे लोगों को कुचल देते हैं। भेड़ें भी यही करती हैं। चूंकि भेड़ों के पास शिकारियों से बचाव के सीमित साधन होते हैं इसलिए उनका मुख्य रक्षा तंत्र सहज रूप से झुंड में रहना और खतरे से भागना है।-मेनका गांधी


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News