यूरोपीय देश अमरीका से अब पहले जैसी सुरक्षा की आशा नहीं कर सकते

punjabkesari.in Thursday, Jul 12, 2018 - 04:31 AM (IST)

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प लगभग 18 माह पूर्व जब से सत्ता में आए हैं अपने प्रशंसकों तथा विरोधियों के लिए एक पहेली बने हुए हैं। कई समीक्षकों की राय में उनकी कारगुजारी-घरेलू तथा विदेश नीति मोर्चे, दोनों पर, यदि अराजक नहीं तो गड़बड़ी वाली रही है। उनके द्वारा किए जाने वाले ट्वीट्स के कारण स्थितियां और भी कठिन बन गईं जब उन्होंने उसी दिन या एकाध दिन के बाद उसके विपरीत ट्वीट कर दिया। बहुत से समीक्षकों के अनुसार उनका कोई एजैंडा नहीं है और वे रोजमर्रा के आधार पर एक राष्ट्रपति के तौर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। 

यद्यपि अब यह स्पष्ट है कि डोनाल्ड ट्रम्प की वास्तव में एक प्रशासनिक विचारधारा है। उनका उद्घाटनी भाषण, जो उनके द्वारा दिया गया सर्वाधिक सशक्त तथा सुसंगत था, इस बात का स्पष्ट सबूत था। हालांकि अधिकतर मुख्यधारा वक्ताओं, अमरीका तथा विदेशों में, ने उन्हें ‘विभाजनकारी’ बता कर खारिज कर दिया था और खुद ट्रम्प का उस शानदार भाषण के बाद से व्यवहार अनोखा था। हालांकि अब यह स्पष्ट है कि उसकी और अधिक निकटता से जांच की जरूरत थी, जितनी कि की गई। यहां उनके भाषण के एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण पैरा का उल्लेख करना उचित होगा। 

‘‘कई दशकों तक हमने अमरीकी उद्योग की कीमत पर विदेशी उद्योग को प्रफुल्लित किया है। अन्य देशों की सेनाओं को सहायता तथा छूट दी, जबकि हमारी खुद की सेना में दुखद कमी आ रही थी। हमने अन्य देशों की सीमाओं की रक्षा की जबकि अपनी खुद की सीमाओं की रक्षा करने से इंकार कर दिया और विदेशों में खरबों डालर खर्च किए जबकि अमरीका का आधारभूत ढांचा निराशाजनक स्थिति में गिर रहा था।’’ इसी परिदृश्य में अब ट्रांस अटलांटिक एलायंस में दरारें उभरने लगी हैं, जिनकी समीक्षा करके समाधान करने की जरूरत है। नए राष्ट्रपति के सबसे पहले कार्यों में से एक था अमरीका के यूरोपियन सहयोगियों को नोटिस भेजना कि वे खुद की सुरक्षा पर अपनी ओर से अधिक खर्च करें। 

ट्रम्प ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान घरेलू तथा विदेशी (यूरोपियन) लोगों को यह घोषणा करके चौंका दिया कि नाटो अब प्रचलित नहीं रह गया है। यद्यपि उस घोषणा को उस समय उतना महत्व नहीं दिया गया जितने कि वह हकदार थी और उसे चुनावी भाषणबाजी बता कर नजरअंदाज कर दिया गया और उनके सत्ता में आने के बाद वैश्विक नेताओं ने उसे भुला दिया मगर ट्रम्प ने नहीं भुलाया। एक समय जर्मन सैन्यवाद के पुन: उभरने का वास्तविक डर था और ऐसा दिखाई देता था कि खुद जर्मन इससे डरे हुए थे। राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन तथा उनके प्रशासन के सामने एक ही समाधान था कि वे जर्मनी तथा बाकी यूरोप को जर्मन सैन्यवाद तथा सोवियत संघ के तथाकथित खतरे से सुरक्षा प्रदान करें। हालांकि खतरे के प्रति अमरीकी अवधारणाएं अब बदल गई हैं, विशेषकर 9/11 के बाद। 

मध्य-पूर्व अब इस्लामिक आतंकवाद के केन्द्र में परिवर्तित हो गया है और उनका मुख्य लक्ष्य अमरीका दिखाई देता है। सीरियाई संकट ने स्थिति को और भी पेचीदा बना दिया है जिस कारण प्रवासियों के हजूम मध्य-पूर्व से इस ओर चल पड़े। अब सारे अमरीका में ये प्रश्र उठाए जा रहे हैं कि अकेले ट्रम्प ही नहीं बल्कि यूरोपियनों को सीरियन संकट का समाधान ढूंढने के लिए अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। क्या उनकी सेनाओं को अपनी सीमाओं की सुरक्षा नहीं करनी चाहिए? ट्रम्प के अमरीका ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यूरोपियन उस तरह की सुरक्षा की आशा नहीं कर सकते जैसे कि अमरीका उन्हें गत 7 दशकों के दौरान उपलब्ध करवाता आ रहा था। नाटो तथा सामान्य रूप से यूरोप के लिए अपनी बेबाक टिप्पणियों से ट्रम्प ने खराब संदेश दिए हैं जिन्होंने एक भौगोलिक विभाजन पैदा कर दिया है, जो पहले ही कुछ समय से प्रकट हो रहा था।-पुरुषोत्तम भट्टाचार्य


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Pardeep

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