कांग्रेस ने ‘हिमाचल बचाओ’ अभियान शुरू कर धारा 118 पर फिर छेड़ी बहस

punjabkesari.in Wednesday, Aug 21, 2019 - 03:40 AM (IST)

बड़े क्षेत्रफल और छोटी आबादी वाले पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में एक बार फिर से विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल बचाओ अभियान की शुरूआत कर धारा 118 को लेकर राज्य की जनता के बीच फिर से बहस छेड़ दी है। इसकी शुरूआत हिमाचल निर्माता पूर्व मुख्यमंत्री स्व. डा. यशवंत सिंह परमार के 113वें जन्म दिवस पर उनके पैतृक निवास स्थान बागथन से की गई है।

नवम्बर में इंवैस्टमैंट मीट की तैयारियों को लेकर धारा 118 में किए जा रहे सरलीकरण के चलते विपक्ष बाहरी उद्योगपतियों द्वारा राज्य की जमीनों पर होने वाले कब्जे पर गंभीर है। विपक्ष का यह विरोध राज्य की तरफ आने वाले निवेश को प्रभावित भी कर सकता है। परन्तु विपक्ष ने सत्तारूढ़ भाजपा पर जो आरोप लगाए हैं उनको गौर से देखा जाए तो प्रदेश में रियल एस्टेट सैक्टर को पूरी तरह से खोल देना भी जायज नहीं है। 

वहीं चाय बागान की आड़ में सीङ्क्षलग का लाभ लेकर हजारों बीघा भूमि दबाकर बैठे धनाढ्य लोगों को पर्यटन की आड़ में छूट देने की सरकार की कोशिशों पर भी विपक्ष की नजर है। धारा 118 के विषय पर पहले भी प्रो.प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार इतनी घिर गई थी कि रियल एस्टेट को राज्य में बढ़ावा देने के चलते कांग्रेस का हिमाचल बचाओ अभियान उस वक्त भाजपा पर भारी पड़ गया था। वहीं पंजाब के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म होने की तुलना हिमाचल प्रदेश की धारा 118 से कर डाली है। उनका कहना है कि जिस तरह अब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 के हटने से देश का कोई भी नागरिक वहां जमीनें खरीद सकता है, वैसे ही अब हिमाचल प्रदेश से भी धारा 118 को खत्म कर देना चाहिए। उनके इस बयान से भी राज्य में धारा 118 पर छिड़ी बहस पर विपक्षी दल कांग्रेस ने यहां की भाजपा सरकार को घेरने की कोशिश की है। 

लोगों के पास कृषि योग्य केवल 12 प्रतिशत भूमि ही उपलब्ध 
पहाड़ी राज्य होने के नाते हिमाचल प्रदेश के कुल क्षेत्रफल 55673 वर्ग किलोमीटर में से 68 प्रतिशत वन क्षेत्र है और केवल 12 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि ही यहां के लोगों के पास उपलब्ध है। चारागाह और बंजर भूमि के रूप में प्रदेश के लोगों के अधिकार में करीब 10 प्रतिशत भूमि भी आती है। जबकि 10 प्रतिशत के करीब भूमि प्रदेश सरकार के पास मुख्यत: शामलात व चारागाह के रूप में उपलब्ध है। कृषि योग्य भूमि में से 1.3 प्रतिशत भूमि चाय बागान वाली है। इस प्रकार से देखा जाए तो राज्य के लोगों के पास केवल 22 प्रतिशत भूमि ही उपलब्ध है जो कि हर साल होने वाले विकास कार्यों से कम होती जा रही है। वहीं राज्य में तेजी से हो रहे निर्माण कार्यों के कारण कृषि योग्य भूमि भी कम होने लगी है। जिसका सीधा असर राज्य की जी.डी.पी. में कम होते जा रहे कृषि योगदान से देखने को मिलता है।

यही कारण था कि हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री रहे डा.यशवंत सिंह परमार ने अपनी दूरदर्शी सोच के चलते संविधान की धारा 371 का सहारा लेते हुए हि.प्र.भू सुधार अधिनियम 1972 में धारा 118 शामिल की। इस धारा के लागू होने के बाद से कोई भी गैर-कृषक हिमाचली राज्य में बिना सरकार की अनुमति से रिहायश से लेकर किसी व्यवसाय के लिए भूमि नहीं खरीद सकता है। लेकिन समय के साथ-साथ धारा 118 के प्रावधानों में संशोधन भी होते रहे हैं। परन्तु धारा 118 में 1998 के बाद हुए सभी संशोधनों को लेकर कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे से भिड़ती रही हैं। 

हजारों परिवार अभी भी गैर-कृषक 
हिमाचल प्रदेश में हजारों परिवार ऐसे हैं जो कि हि.प्र.भू सुधार अधिनियम 1972 के बनने से पहले से यहां रह रहे हैं। लेकिन उस वक्त उनके नाम कोई भी कृषि योग्य भूमि नहीं थी जिस कारण ऐसे परिवार आज तक गैर-कृषक के रूप में यहां रह रहे हैं। राज्य में निवेश को आकॢषत करने के लिए आज के दौर में जहां धारा 118 के सरलीकरण की बात हो रही है तो ऐसे हजारों परिवारों ने भी मुख्यमंत्री से मांग की है कि वह उनकी इस समस्या का भी स्थायी हल निकालें। हालांकि भाजपा-हिविकां गठबंधन की सरकार जब बनी थी तो पहली बार मुख्यमंत्री बने प्रो.प्रेम कुमार धूमल ने उस वक्त गैर कृषक हिमाचलियों की इस मांग का समाधान करने की कोशिश की थी। लेकिन तब उन पर सहयोगी दल हिविकां और विपक्षी दल कांग्रेस का विरोध भारी पड़ गया था।- डा.राजीव पत्थरिया 
 


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