विश्व बैंक की रेटिंग में चीन के दबाव से हुई छेड़छाड़

punjabkesari.in Tuesday, Oct 12, 2021 - 04:15 AM (IST)

मक्कार चीन हर वे पैंतरे आजमा रहा है, जिनसे भारत को दुनिया में आगे बढऩे से रोका जाए। सीमा पर सैन्याभ्यास, एयरफील्ड बनाने की बात हो या भारतीय बाजारों में सेंधमारी कर भारत की अर्थव्यवस्था को नुक्सान पहुंचाने का उद्देश्य, सारे हथकंडे चीन अपना रहा है लेकिन इस बार चीन ने विश्व बैंक पर भारत के खिलाफ और अपने पक्ष में रिपोर्ट तैयार करने के लिए दबाव बनाया। 

चीन को इस बात का डर सताने लगा है कि उसे छोड़ कर कई विदेशी कंपनियां अब भारत और दूसरे देशों का रुख करने लगी हैं। चीन इस बात को हजम नहीं कर पा रहा कि उसके देश में बेहतरीन आधारभूत ढांचे और बाजार में तैयार माल पहुंचाने की उच्चतम गुणवत्ता वाली व्यवस्था के बावजूद विदेशी कंपनियां चीन से बाहर जा रही हैं और उनमें से बहुत-सी भारत में अपने नए प्लांट लगा रही हैं, जहां पर तुलनात्मक स्तर पर वे सुविधाएं मुहैया नहीं हैं।

हाल ही में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट, जिसे प्रकाशित नहीं किया गया, दिखाती है कि कौन से देश में व्यापार करना कितना आसान है। सुविधाओं के आधार पर उस देश को रेटिंग दी जाती है। पिछले कुछ समय से इस रेटिंग में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा था और चीन अपने पिछले कुछ वर्षों की रेटिंग के मुकाबले पिछड़ता जा रहा था। इससे चीन में आने वाली नई कंपनियों में वह उत्साह नहीं दिख रहा था जो वर्ष 2016 तक देखा गया था। नई विदेशी कंपनियों ने चीन में निवेश कम कर दिया था, जिसके बाद चीन ने यह नया पैंतरा चला। कहा जाता है कि इस खेल में चीन का साथ विश्व बैंक के अध्यक्ष दे रहे थे। 

विश्व बैंक की तैयार की गई वर्ष 2018 से 2020 तक की ईज ऑफ डूइंग बिजनैस रिपोर्ट में हेराफेरी का भी पता चला है। यह बात जून 2020 में रिपोर्ट की ऑडिटिंग शुरू होने के बाद तब सामने आई जब इस रिपोर्ट की आंतरिक जांच हुई, जो वॉशिंगटन की लॉ फर्म विल्मरहेल ने की थी। इसमें खुलासा हुआ था कि इन दो वर्षों की विश्व बैंक की रिपोर्ट के साथ छेड़छाड़ हुई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व बैंक के अंदरखाते चीन की रेटिंग बढ़ाने के लिए इसमें छेड़छाड़ हुई थी। इस रिपोर्ट में 4 देशों के आंकड़ों में हेराफेरी की गई थी, जिनमें चीन, अजरबैजान, सऊदी अरब और यू.ए.ई. शामिल थे। 

विश्व बैंक की रिपोर्ट के रोकने से भारत को नुक्सान हो रहा था क्योंकि इस बीच भारत की रेटिंग में तेजी से इजाफा हो रहा था। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 से 19 तक की रिपोर्ट में भारत का स्थान उन 10 देशों की सूची में शामिल था, जहां पर व्यापार करने के माहौल में बहुत तेजी से सुधार हो रहा था। वर्ष 2017 से 2019 की रिपोर्ट में भारत 100वें स्थान से बढ़ते हुए वर्ष 2019 में 63वें स्थान पर आ गया जो भारत के लिए एक बड़ी छलांग है।

भारत ने यह छलांग यूं ही नहीं लगाई, अक्तूबर में जारी इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत ने वर्ष 2018-19 में 59 रैगुलेटरी संशोधन जारी किए थे, जिनमें भारत में व्यापार शुरू करने, परमिट हासिल करने इंसॉल्वैंसी और सीमा पार दूसरे देशों, क्षेत्रों से व्यापार करने में जो पहले दिक्कतें और रुकावटें आ रही थीं, उन्हें दूर किया था। इसके साथ ही भारत ने अपनी धरती पर निवेश के लिए संशोधन कर एक बेहतर माहौल बनाया, जिससे भारत में देशी-विदेशी निवेश में बढ़ौतरी होने लगी। भारत का लक्ष्य वर्ष 2020 तक खुद को शीर्ष 50 देशों की सूची में पहुंचाना था। 

रिपोर्ट के अनुसार चीन ने जो धांधली की थी, उसका खुलासा इस बात से भी हुआ कि वर्ष 2017 में 31 अक्तूबर को जारी सूची में चीन 78वें स्थान पर था लेकिन इसी वर्ष 16 अक्तूबर को जारी अंतिम रिपोर्ट में चीन का स्थान 85वां था। इतने कम समय में चीन ने इतनी ऊंची छलांग कैसे लगाई? इससे यह खुलासा होता है कि अंतिम रिपोर्ट बनने के बाद चीन ने आंकड़ों से छेड़छाड़ की और अपने स्थान को कुछ पायदान ऊपर उठा दिया, जिससे दुनिया के सामने चीन एक बेहतर विकल्प के तौर पर सामने आए। एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व बैंक की सी.ई.ओ. क्रिस्टीना जॉर्जियेवा ने अपने मातहत स्टाफ पर दबाव बनाया था कि चीन की रिपोर्ट को बेहतर दिखाया जाए। इसके साथ ही विश्व बैंक के अध्यक्ष किम योंग जुंग पर भी चीन द्वारा दबाव बनाने की बात सामने आई है। इसके बाद विश्व बैंक की विश्वस्नीयता पर सवाल उठने लगे हैं।

यद्यपि भारत सरकार कारोबार और देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए लगातार कोशिश कर रही है। इसने जहां कॉर्पोरेट करों में कटौती कर कंपनियों को नए निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया है, वहीं टैलीकॉम के कुछ क्षेत्रों में सरकार ने 100 फीसदी विदेशी निवेश की अनुमति दी है। इसका असर भी देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक तौर पर देखने को मिला है। लेकिन चीन हमेशा भारत समेत दूसरे कई देशों की जड़ें खोदने में लगा हुआ है और वह भी सिर्फ अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए। शायद यही कारण है कि अब पूरी दुनिया चीन के खिलाफ हो गई है और चीन से किसी भी वस्तु का आयात करने, उसके साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने से परहेज कर रही है। वह दिन दूर नहीं, जब चीन विश्व में पूरी तरह अलग-थलग पड़ जाएगा और उसके लिए यह घातक साबित होगा।


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