चीन द्वारा एक आतंकवादी को समर्थन देना वाजिब नहीं

punjabkesari.in Wednesday, Nov 15, 2017 - 02:21 AM (IST)

यह एक परिचित कवायद है। अरुणाचल प्रदेश में भारत के शासन का चीन विरोध करता है। दूसरी ओर, भारत इस विरोध को नजरअंदाज करता है और इस पूर्वोत्तर राज्य को अपना मानता है। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के अरुणाचल प्रदेश दौरे से चीन नाराज है। हालांकि इससे पहले जब दलाईलामा वहां गए थे, तो ज्यादा शोर मचा था। 

चीन और भारत सीमा की वास्तविक रेखा को लेकर शायद ही कभी सहमत हुए हों। पेइचिंग ने 1962 में आक्रमण कर दिया जब भारत ने अपने इलाके वापस लेने की कोशिश की। हालांकि इस बार भारत ने डोकलाम के गतिरोध के समय अपनी ताकत दिखाई। चीन को अपनी फौज वर्तमान सीमा के भीतर ले जानी पड़ी। तनातनी के बाद सितम्बर में ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लेने गए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तनाव को कम किया। इस यात्रा का सकारात्मक पक्ष यह है कि दोनों देशों ने आतंकवादियों से लडऩे का निश्चय दोहराया लेकिन यहां भी चीन ने अपना रवैया दिखाया। इसने फिर से कुख्यात मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को रोक दिया। उसे दंडित नहीं किया जा सका। चीन और पाकिस्तान की मजबूत हो रही दोस्ती भारत के लिए चिंता का विषय है। 

ज्यादा समय नहीं हुआ जब चीन ने अरुणाचल से जाने वाले भारतीयों के वीजा को नत्थी करना शुरू कर दिया था। चीन यह दर्शाना चाहता था कि यह एक ‘‘अलग क्षेत्र’’ है जो भारत का हिस्सा नहीं है। नई दिल्ली ने इस अपमान को खामोशी से सहन कर लिया। अतीत में चीन ने अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा दिखाने वाले नक्शों को बिना विरोध के स्वीकार कर लिया था। याद दिलाने की बात है कि विवाद अरुणाचल और चीन के बीच के एक छोटे-से क्षेत्र को लेकर था। अरुणाचल प्रदेश की स्थिति पर शायद ही सवाल खड़ा किया गया था।

चीन के लिए तिब्बत वैसा ही है जैसा भारत का कश्मीर, जहां आजादी की मांग हो रही है। हालांकि एक अंतर है, दलाईलामा चीन के भीतर एक स्वायत्त दर्जा स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। कश्मीर आज आजादी चाहता है। शायद, एक दिन कश्मीरी उसी तरह दर्जा स्वीकार करने को तैयार हो जाएंगे। समस्या इतनी जटिल है कि एक छोटा-सा परिर्वतन भी बड़ी आपदा ला सकता है। यह जोखिम उठाया नहीं जा सकता है। मैं बोमडिला, जहां से दलाईलामा ने भारत में प्रवेश किया था, गया हूं। उनकी भूमि तिब्बत पर चीन ने कब्जा कर लिया था। इसने तिब्बत की संस्कृति भी नष्ट कर दी है। चीन ने साम्यवाद थोप दिया है और दलाईलामा तथा उनके बौद्ध मठों के प्रति जरा भी आदर नहीं दिखाया।

दलाईलामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा ने उस समय की याद ताजा कर दी जब चीन ने तिब्बत पर अधिकार नहीं किया था। भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस पर कोई आपत्ति नहीं की क्योंकि चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई के साथ उनके व्यक्तिगत संबंध थे। यह एक अलग कहानी है कि उन्होंने नेहरू से विश्वासघात किया और भारत पर आक्रमण कर दिया। चीन ने भारत की हजारों किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया और इसे खाली करने की कोई मंशा नहीं दर्शा रहा है। 

तिब्बत विश्वासघात की एक और कहानी है। यह सच है कि तिब्बत पेइचिंग की प्रभुता के अंदर था लेकिन यह माना जाता था कि इसकी स्वायत्तता का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। प्रभुता का अर्थ किसी सरकार का राजनीतिक नियंत्रण होता है। इसका अर्थ उस राज्य को अपने में शामिल करना नहीं होता है। जब भारत ने तिब्बत पर चीन की प्रभुता स्वीकार की, तो उस समय वह उसका हिस्सा भी नहीं था। चीन ने नेहरू के साथ फिर विश्वासघात किया, जब उसने ल्हासा में दलाईलामा का रहना असंभव कर दिया। सबसे बड़ा विश्वासघात 8 साल बाद 1962 में हुआ जब चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। भले ही दलाईलामा की यात्रा ने तिब्बत को लेकर संदेह नहीं पैदा किए हों, लेकिन इसने पेइङ्क्षचग की ओर से किए गए विलय पर एक बार फिर बहस शुरू कर दी। चीन ने इस यात्रा को उकसावा बताया। इसने चेतावनी दी कि दलाईलामा की यात्रा दोनों देशों के बीच सामान्य संबंधों को प्रभावित करेगी।

डोकलाम से यह और तेज हो गया। इसके बावजूद, भारत अपनी जगह कायम रहने में सफल रहा। वास्तव में, भारत के साथ चीन की समस्या की जड़ें भारत-चीन सीमा का अंग्रेजों की ओर से किया गया निर्धारण है। चीन मैकमोहन लाइन को मानने से इंकार करता है, जो अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा दर्शाती है। इस क्षेत्र में होने वाली हर गतिविधि को चीन शक से देखता है। विरोध के बावजूद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण का ‘‘विवादग्रस्त’’ क्षेत्र का दौरा यही दर्शाता है कि नई दिल्ली संघर्ष के लिए तैयार है, अगर यह सामने आता है। उस समय पहाड़ों पर युद्ध के लिए भारतीय सैनिकों के पास जूते नहीं थे। अब भारत को एक शक्ति माना जाता है। ऐसा लगता है कि चीन भारत को तब तक उकसाता रहेगा जब तक भारत अपना धैर्य न खो दे। जब युद्ध नहीं करना है तो यही एक विकल्प रह जाता है। भारत के सामने यह स्थिति है कि बिना संघर्ष के इसका जवाबी प्रहार कैसे करे? 

पेइचिंग भारत के साथ ‘हिन्दी-चीनी, भाई-भाई’ वाला परिदृश्य वापस लाना चाहता है। नई दिल्ली चीन पर विश्वास नहीं कर सकती, खासकर उस समय, जब वह भारत को चारों ओर से घेर रहा हो। चीन ने नेपाल को बहुत बड़ा कर्ज दिया है। चीन के निर्देश पर श्रीलंका बंदरगाह बना रहा है। बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना खुश हैं कि चीन उन्हें खुश करने की कोशिश कर रहा है। सभी को यह समझना चाहिए कि भारत को अब यूं ही नहीं लिया जा सकता है। युद्ध के अलावा, भारत के पास और भी विकल्प हैं। ताईवान तुरूप का पत्ता है, जो चीन की बहस की शुरूआत करा सकता है। 

आतंकवाद का मामला हरदम उपस्थित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक चीनी नेता से इस पर सहमत हुए कि आतंकवाद पर दोनों देशों की सांझा ङ्क्षचता है। चीन में रहने वाले मुसलमानों की आबादी का एक हिस्सा जोर दिखाने लगा है। इस बगावत को चीन के नेता नजरअंदाज कर रहे हैं, लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि चीन के मुसलमान जो कर रहे हैं, उसे दूसरे देशों के मुसलमानों का समर्थन मिला हुआ है। फिर भी चीन को गैर-मुस्लिम देशों की मदद मिलेगी क्योंकि वे आतंकवाद को मुस्लिम संकीर्णतावाद के हृदय के रूप में देखते हैं।-कुलदीप नैय्यर


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News