क्या प्रियंका के आने से कांग्रेस की ‘किस्मत’ बदल सकेगी

punjabkesari.in Friday, Feb 01, 2019 - 04:16 AM (IST)

2019 के आम चुनावों के लिए तेजी से बदलते राष्ट्रीय परिदृश्य के बीच प्रियंका गांधी के पूर्वी-उत्तर प्रदेश की महासचिव के तौर पर कांग्रेस में प्रवेश से 136 साल पुराने ऐतिहासिक संगठन के भाग्य में बदलाव आएगा। यह मेरा अनुमान नहीं है बल्कि जमीनी स्तर पर मेरे आकलन तथा 90 के दशक के अंत में रायबरेली में उनके चुनाव प्रचार के दौरान उनके साथ की गई निजी बातचीत के आधार पर है। तब मैं चंडीगढ़ में अंग्रेजी के एक दैनिक समाचार पत्र में था। मुझे याद है कि मैंने उनका स्वागत करते हुए कहा था कि मैं उनके पिता राजीव गांधी का एक मित्र हूं। उन्होंने एक बड़ी मुस्कुराहट दी और मुझसे उनके वाहन में आने के लिए कहा ताकि कुछ बातचीत कर सकें। 

निजी आकर्षण व मधुर व्यवहार
मैं एक घंटे से अधिक समय तक उनके साथ था और नजदीक से उनके निजी आकर्षण, गर्मजोशी, मधुर व्यवहार तथा सामान्य ग्रामीण लोगों के साथ बातचीत करने की उनकी क्षमता को देखा क्योंकि वह उनसे मिलने के लिए बीच-बीच में अपना वाहन रोक लेती थीं। वे मुख्य रूप से महिलाएं तथा युवा थे। वह उनसे हाथ मिलातीं और उनका हालचाल तथा समस्याओं के बारे में पूछतीं। संचार की उनकी स्वाभाविक कला में कुछ भी कृत्रिम नहीं था। वह लगातार लोगों से मिलतीं। चुनावी अखाड़े में यदि हम आज के वी.वी.आई.पीज, जिन्हें विशेष तौर पर जैड प्लस सुरक्षा मिली होती है, के साथ तुलना करें तो एक नौसिखिए के लिए यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी। 

अब जब उन्हें औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल कर लिया गया है, मैं प्रियंका के बारे में अपनी पहली अवधारणाओं को याद कर रहा हूं। मैं देख सकता था कि उन्होंने अभी भी वही आकर्षक व्यवहार अपना रखा है, जो देश की 2 बड़ी पाॢटयों भाजपा तथा कांग्रेस के चुनाव प्रचार के दौरान एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने की राजनीति में दुर्लभ है। मैं यह अवश्य कहूंगा कि युवा मतदाता आज आरोपों-प्रत्यारोपों की इस राजनीति से ऊब रहे हैं, जो आम तौर पर आधे झूठ, एक-चौथाई सच तथा जुमलेबाजी पर आधारित होते हैं। एक ऐसे देश में, जहां का राष्ट्रीय सिद्धांत ‘सत्यमेव जयते’ है, वहां रैली में एकत्र लोगों के बीच यह प्रचार का तरीका नहीं है। निश्चित तौर पर देर-सवेर सच जीतेगा लेकिन गुजरात तथा कर्नाटक के चुनाव प्रचार के दौरान हमारे नेताओं द्वारा जो कुछ किया जाता देखा उसने मुझे झकझोर दिया। 

कांग्रेस अब ‘छतरी’ नहीं रही
इससे पहले कि मैं धर्मनिरपेक्षता, साम्प्रदायिकता तथा बेकार के मुद्दों के नाम पर आज की हुल्लड़बाजी की राजनीति में राजनीतिक प्रियंका का आकलन करूं, मैं पिछले समय के दौरान कांग्रेस के उतार-चढ़ावों बारे बात करना चाहूंगा। किसी समय कांग्रेस सभी तरह के विचारों तथा विचारात्मक समूहों के लिए राजनीतिक छतरी उपलब्ध करवाती थी, जिसका श्रेय पार्टी के प्रबुद्ध नेतृत्व को जाता है। स्थिति अब नाटकीय रूप से बदल चुकी है। आज कांग्रेस एक अव्यवस्थित छतरी संगठन के रूप में उभरी है। जिसमें हितों का टकराव है और यह इतना अधिक हो रहा है कि पार्टी में प्रत्येक विभाजन के बाद इसे खुद को समयानुकूल पारिभाषित करना पड़ता है।

यह एक तथ्य है कि अधिकतर समय कांग्रेस एक व्यक्तित्व उन्मुक्त पार्टी रही है। आज कांग्रेस एक छतरी नहीं रही और इसलिए इसने अधिकतर लोगों का समर्थन गंवा दिया है। वर्तमान स्थितियों के लिए कांग्रेस को खुद को ही दोष देना होगा, विशेषकर सोनिया गांधी के नेतृत्व में। बहुत कुछ अब इस बात पर निर्भर करेगा कि आने वाले महत्वपूर्ण महीनों के दौरान राहुल तथा प्रियंका जैसे नए युवा नेताओं के साथ-साथ वरिष्ठ दिग्गज कैसा व्यवहार करते हैं। इस मामले में आने वाले चुनाव दिखाएंगे कि पार्टी नई दिल्ली तथा उसके आगे सत्ता के नए चैस बोर्ड पर कहां खड़ी है। 

राहुल बनाम प्रियंका नहीं
मुझे नहीं लगता कि यह कांग्रेस के तौर पर राहुल बनाम प्रियंका होगा। मैं नहीं समझता कि प्रियंका का राजनीति में प्रवेश उनके भाई के पी.एम. पद के लिए अग्रगामी के तौर पर अवसरों को नुक्सान पहुंचाएगा। हमें इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि राहुल गांधी ने खुद को पहले ही एक नेता के तौर पर स्थापित कर लिया है। अपनी पहले की घटिया कारगुजारी के बाद हाल ही में उन्होंने तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में अपने पहले चुनाव जीते हैं। यहां तक कि उन्होंने नरेन्द्र मोदी के गृह राज्य गुजरात और उससे पहले बिहार में भी अच्छी कारगुजारी दिखाई। जिस तरह से उन्होंने किसानों के संकट, युवाओं की बेरोजगारी, नोटबंदी तथा जी.एस.टी. के कारण व्यापारियों की दयनीय स्थिति जैसे कई लोकप्रिय मुद्दे उठाए, यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। अब उन्होंने गरीबों के लिए न्यूनतम आय की गारंटी की घोषणा की है, यदि 2019 के चुनावों में सत्ता में आते हैं। मैं उनके चुनावी वायदे के लिए प्रतीक्षा करूंगा। 

निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती बनने के लिए उन्हें अभी एक लम्बा रास्ता तय करना है। इस संदर्भ में मैं महसूस करता हूं कि प्रियंका अपने भाई के हाथ मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। सब इस बात पर निर्भर करता है कि वह खुद को किस तरह से पेश करती हैं। जैसा कि मैंने रायबरेली में देखा था, यदि वह अपना एक स्वाभाविक व्यवहार बनाए रखती हैं तो राजनीतिक रूप से वह एक ताकत बनेंगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कभी न समाप्त होने वाले कांग्रेस मुक्त भारत प्रचार की परवाह न करते हुए यह कांग्रेस के विकास में एक नया अध्याय जोड़ेगा।-हरि जयसिंह


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