‘रिक्लेमिंग द रिपब्लिक’ नामक मेनिफेस्टो लोकतंत्र को बचाने का आह्वान

punjabkesari.in Thursday, Feb 14, 2019 - 04:26 AM (IST)

पिछले सप्ताह लोकसभा चुनाव का पहला मैनिफैस्टो जारी हो गया। यह मैनिफैस्टो किसी पार्टी ने जारी नहीं किया, देश की दशा और दिशा पर चिंतित कई जाने-माने बुद्धिजीवियों और कार्यकत्र्ताओं ने मिलकर इस दस्तावेज को जारी किया है।

पूर्व न्यायाधीश ए.पी. शाह की अध्यक्षता में बने इस समूह में गोपाल कृष्ण गांधी, प्रशांत भूषण, प्रोफैसर प्रभात पटनायक, दीपक नायर, कृष्ण कुमार, जयति घोष, गोपाल गुरु के साथ अरुणा रॉय, हर्ष मंदर, पी. साईनाथ, ई.ए.एस. सरमा और इस लेखक जैसे कार्यकत्र्ता भी जुड़े थे। इस समूह ने हर विषय पर देश के अग्रणी विशेषज्ञों की राय ली और आज की परिस्थिति में हर प्रमुख मुद्दे पर क्या करना चाहिए, उन बिंदुओं का निरूपण किया। 

दस्तावेज का नाम है ‘रिक्लेमिंग द रिपब्लिक’ यानी गणतंत्र को बचाने और उस विरासत को दोबारा हासिल करने का आह्वान। इस सिलसिले में पहला काम होगा मौजूदा सरकार के हाथों पहुंची चोट और नुक्सान से उबरना, उसकी भरपाई करना लेकिन नुक्सान से उबरने का मतलब यह नहीं होता कि हम फिर से पुरानी टेक पर लौट आएं। ऐसे ठोस उपाय करने होंगे कि  हमारी लोकतांत्रिक राजनीति को फिर कभी कोई ऐसा नुक्सान न पहुंचा सके। इसी सोच के अनुकूल इस समूह ने देश के सामने कुछ खास सुझाव रखे हैं। 

लोकतांत्रिक आजादी की बहाली
सबसे पहली जरूरत है लोकतांत्रिक आजादी की बहाली। जैसे इंदिरा गांधी की एमरजैंसी के खात्मे के बाद 44वें संविधान संशोधन के जरिए लोकतंत्र विरोधी कानूनों को पलटा गया था, वैसे ही इस चुनाव के बाद ऐसे प्रावधानों को खत्म करना चाहिए, जिनका फायदा उठाकर मोदी सरकार ने व्यक्ति की निजी आजादी के पर कतरने और राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं को धमकाने के लिए दुरुपयोग किया। इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) तथा 499 (आपराधिक मानहानि), अवैधानिक गतिविधि निवारक कानून तथा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम शामिल हैं। 

भविष्य में कोई सरकार मीडिया के साथ खिलवाड़ न कर सके, इसलिए अभिव्यक्ति की आजादी के लिए एक मीडिया फ्रीडम बिल बने, इसमें अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी हो और तमाम किस्म के मनमाने प्रतिबंधों, जैसे रेडियो से समाचार के प्रसारण की प्री-सैंसरशिप, मनमाने तरीके से किए जा रहे इंटरनैट शटडाऊन आदि पर रोक लगे। ऐसा कानून हो, जिससे धार्मिक अल्पसंख्यकों तथा वंचित वर्गों पर  ङ्क्षहसा और नफरत की बिनाह पर होने वाले अपराधों में सरकारी अधिकारियों की संलिप्तता होने पर उन्हें सख्त सजा मिले। 

कृषि व बेरोजगारी के मुद्दे
देश का मैनिफैस्टो सिर्फ मोदीराज की भूल का सुधार नहीं हो सकता। यह चुनाव शायद पहला लोकसभा चुनाव होगा जिसमें गांव, खेती, किसान और बेरोजगारी के मुद्दे केन्द्र में रहेंगे। इसलिए इस मैनिफैस्टो के सबसे महत्वपूर्ण प्रस्ताव अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए आॢथक नीति के निर्माण से जुड़े हैं। यह मैनिफैस्टो सभी नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा तथा बुनियादी सेवा मुहैया करने की योजना पेश करता है। इसके अन्तर्गत सबको शिक्षा, स्वास्थ्य, मातृत्व संबंधी देखभाल तथा बच्चों की शुरूआती देखभाल समेत बेहतर गुणवत्ता की अन्य सेवाएं मुहैया कराई जाएंगी। ग्रामीण क्षेत्र में राशन की दुकान से सबको खाद्यान्न के साथ मोटा अनाज, दाल तथा तेल भी मुहैया कराया जाए, सभी बुजुर्गों को 5,000 रुपए प्रतिमाह पैंशन दी जाए। मनरेगा योजना का शहरों में भी विस्तार कर हर व्यस्क व्यक्ति को साल में कम से कम 150 दिनों का रोजगार हासिल हो। 

किसानों को एक निश्चित आमदनी और कर्ज-मुक्ति की गारंटी दी जाए। किसानों को सी2 लागत के ऊपर कम पर कम से कम 50 प्रतिशत लाभकर मूल्य मिले। सभी किसानों की एक बार सम्पूर्ण कर्ज-मुक्ति हो, साथ ही राष्ट्रीय कर्ज राहत आयोग बनाया जाए। प्राकृतिक आपदा के संकट से किसानों को समय रहते उबारा जाए। खेती-किसानी में इस्तेमाल होने वाली चीजों की कीमत कम की जाए और मवेशियों की खरीद-बिक्री पर दबंगई के जरिए आयद की गई तमाम बाधाएं खत्म की जाएं। जो सुविधाएं भू-स्वामी किसान को दी जा रही हैं, वही सुविधाएं पट्टेदार किसान, बटाईदार किसान, महिला किसान, आदिवासी किसान, भूमिहीन किसान तथा पशुपालक किसान को भी दी जाएं। 

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में बुनियादी सुधार का प्रस्ताव इस मैनिफैस्टो में है। स्वास्थ्य सेवा पर सरकारी खर्च बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के 3 प्रतिशत तक किया जाए। बीमा की बजाय हर स्तर पर सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत बनाया जाए। सस्ती जैनरिक दवाओं को उपलब्ध करवाया जाए। एक की बजाय दो आशा कर्मी हर गांव में हों। सरकारी स्कूलों में पर्याप्त मात्रा में धन दिया जाए और पर्याप्त संख्या में अध्यापक बहाल हों। यह सुनिश्चित किया जाए कि हर स्कूल पूरी तरह से शिक्षा के अधिकार कानून के अनुसार  चले। शिक्षा के अधिकार कानून का दायरा बढ़ाकर 16 साल की उम्र तक किया जाए और उसमें बच्चे को शुरूआती उम्र में दी जाने वाली शिक्षा को भी शामिल किया जाए। सरकारी विश्वविद्यालयों को सकल घरेलू उत्पाद का 1 फीसदी हिस्सा अलग से आबंटित किया जाए। सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तबके के विद्याॢथयों को दी जा रही फैलोशिप में दस गुणा इजाफा हो। 

दीर्घकालिक प्रस्ताव
इसके अलावा यह दस्तावेज कई दीर्घकालिक प्रस्ताव भी पेश करता है। पर्यावरण की संरक्षा के मकसद से एक स्वतंत्र तथा शक्ति-सम्पन्न पर्यावरण आयोग बने। प्राकृतिक गैस तथा तेल का राष्ट्रीयकरण हो और समुदायों को प्राकृतिक संसाधन का मालिक माना जाए। संसद, विधानसभा, न्यायपालिका तथा पुलिस में महिलाओं का कम से कम एक तिहाई प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए संविधान तथा कानून में संशोधन किया जाए। मैला उठाने और सीवर में उतारने की अमानवीय व्यवस्था के खात्मे के लिए राष्ट्रीय मिशन चले। भ्रष्टाचार-निवारक अधिनियम में हुए प्रतिगामी संशोधन को खत्म किया जाए। 

पारदर्शी रीति से लोकपाल की स्थापना की जाए। निगरानी की संस्थाओं जैसे सी.बी.आई., सी.वी.सी., सी.ए.जी. की स्वायत्तता सुनिश्चित की जाए। सूचना के अधिकार की व्यवस्था को मजबूत बनाया जाए। जजों के चयन के लिए स्वतंत्र न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना हो, न्यायिक परिवाद (कम्पलेंट) के लिए स्वतंत्र आयोग बने। प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश में वर्णित सात दिशा-निर्देशों के मुताबिक पुलिस सुधार किया जाए। इलैक्टोरल बॉन्ड सहित हाल के समय में चुनावी चंदे से जुड़े कानूनों में किए गए तमाम प्रतिगामी बदलावों को वापस लिया जाए। चुनावों की फंङ्क्षडग के लिए एक नैशनल इलैक्शन फंड की स्थापना हो। 

इस दस्तावेज की एक विशेषता यह है कि इसमें सिर्फ मांग ही नहीं की गई है, बल्कि हर प्रस्ताव को पूरा करने की व्यवस्था और उसके संसाधनों की उगाही के लिए वित्तीय रणनीति भी सुझाई गई है। एक महत्वपूर्ण सुझाव यह है कि 10 करोड़ रुपए से ज्यादा की सम्पत्ति पर 1 प्रतिशत सालाना सम्पत्ति टैक्स, एक बार 20 प्रतिशत का उत्तराधिकार टैक्स लगाकर सरकार के साधन बढ़ाए जाएं। क्या देश की पार्टियां और मीडिया इस सकारात्मक प्रस्ताव पर गौर करेगा? या कि यह चुनाव भी तू-तू मैं-मैं, आरोप-प्रत्यारोप के शोरोगुल में डूब जाएगा।-योगेन्द्र यादव


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