भाजपा के मिशन पंजाब का ‘श्रीगणेश’, हो सकती है बड़ी ‘सेंधमारी’

punjabkesari.in Friday, Dec 03, 2021 - 05:37 AM (IST)

पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शिरोमणि अकाली दल (बादल) के बड़े नेता एवं राष्ट्रीय महासचिव मनजिंदर सिंह सिरसा के भारतीय जनता पार्टी में जाने के साथ ही अटकलें लगाई जा रही हैं कि पंजाब के कई और बड़े सिख नेता भाजपा में दाखिल हो सकते हैं। 

शिरोमणि अकाली दल के कई बड़े नेता, आधा दर्जन से अधिक विधायक भी भगवा पार्टी में जाने के इच्छुक बताए जा रहे हैं। सियासी हलकों में चल रही खबरों पर यकीन करें तो अकाली दल के पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा का भी नाम चल रहा है। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी से नाराज चल रहे एक मात्र सांसद भगवंत मान को भी साधने की कोशिश भाजपा कर रही है। 

भारतीय जनता पार्टी ने मनजिंदर सिरसा को अपनी पार्टी में दाखिल करके एक तरह से मिशन-पंजाब का श्रीगणेश कर दिया है। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी को कमजोर दिखाने की है, ताकि पंजाब के लोग इसे कांग्रेस के सामने चुनौती के रूप में गंभीरता से लें।  

इस बात का अंदाजा सुखबीर सिंह बादल को भी हो गया है। यही कारण है कि सिरसा के जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने दावा किया कि सिरसा जेल जाने का दबाव नहीं झेल पाए और भाजपा में शामिल हो गए। सुखबीर एक तरह से अपने पार्टी कैडर को यह संदेश देना चाहते हैं कि सिरसा अपने खिलाफ चल रहे केसों की वजह से परेशान होकर पार्टी छोड़ गए हैं, लेकिन अकाली दल जुझारू नेताओं की पार्टी है और हमें भाजपा के इस दबाव को झेलना है। 

वहीं, श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने भी दावा किया है कि सिरसा ने उन्हें फोन किया था और लग रहा था कि वह अपने खिलाफ चल रहे केसों को लेकर परेशान थे और इसलिए जेल और भाजपा में से उन्होंने भाजपा को चुन लिया...। 

एस.जी.पी.सी. दिल्ली कमेटी के लिए बदलेगी नया चेहरा : मनजिंदर सिंह सिरसा के भाजपा में शामिल होने के साथ ही अब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एस. जी.पी.सी.) कोटे की एक सीट से अकाली दल द्वारा किसी अन्य नेता को मौका दिए जाने की उम्मीद है। मौजूदा समय में चल रहे नामों में तख्त श्री पटना साहिब कमेटी के अध्यक्ष अवतार सिंह हित और पंजाबी विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति डा. जसपाल सिंह का नाम सामने आ रहा है। हालांकि डा. जसपाल सिंह इस जिम्मेदारी को संभालने से पहले ही इन्कार कर चुके हैं। इस सूरत में किसी अन्य चेहरे का भी दांव लग सकता है। इसके लिए कमेटी गलियारे में एक नाम जसविंदर सिंह जौली का भी चर्चा में है, जो अल्पसंख्यक मामलों के चेयरमैन हैं और पार्टी एवं कमेटी को कई बार मुसीबतों से बचाने में कामयाब रहे हैं। अब देखना होगा कि सुखबीर बादल किसको मौका देते हैं। 

गुरुद्वारा कमेटी के लिए अध्यक्ष चुनना होगी चुनौती : मनजिंदर सिंह सिरसा ने बेशक दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमेटी को अलविदा कह दिया है, लेकिन माना जा रहा है नई कमेटी के गठन में उनकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। शिरोमणि अकाली दल के पास वर्तमान में 29 सदस्य हैं, माना जाता है कि इनमें से आधे से ज्यादा सिरसा के साथ हैं। ऐसे में अकाली दल द्वारा नई कमेटी का नया अध्यक्ष चुनना चुनौती भरा होगा। 

सिरसा रिमोट कंट्रोल से दिल्ली कमेटी को अपने हाथ में रखना चाहेंगे, साथ ही कोशिश करेंगे कि किसी तरह से उनका कोई समर्थक कमेटी में दबदबा बनाकर रखे। इस बात का एहसास अकाली दल के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका को भी है। यही कारण है कि उन्होंने सिरसा के जाने पर कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी। बहुत ही सूझबूझ से सिरसा का बचाव किया और खिलाफ में एक शब्द भी नहीं बोला। न ही भाजपा नेताओं पर ही कोई टिपप्णी की। इसलिए यह माना जा रहा है कि सिरसा की सरपरस्ती आने वाली नई कमेटी पर रहेगी, बशर्ते सदस्य टूट कर विपक्षी दलों का हिस्सा न बन जाएं। 

पंजाब चुनाव में सिरसा का हो सकता है इस्तेमाल : दिल्ली में नगर निगम चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी को सिख चेहरे के रूप में मनजिंदर सिंह सिरसा का मिलना बड़ी सफलता मानी जा रही है। वहीं दूसरी ओर यह भी माना जा रहा है कि भाजपा सिरसा को पंजाब भेजकर विधानसभा चुनाव में नया दांव खेल सकती है। सिरसा पहले से ही पंजाब के चुनावों में हिस्सा लेते रहे हैं और अकाली खेमे में उनकी अच्छी पकड़ भी रही है। सिरसा पंथक सियासत में अच्छी पकड़ रखते हैं और देश-दुनिया में पंथक मुद्दों को लेकर लड़ते रहे हैं। वह जट सिख भी हैं, जिनकी भाजपा को जरूरत भी महसूस हो रही थी। 

और अंत में... :  दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान सिरसा हर समय चौंकाने वाले फैसले लेने के लिए जाने जाते रहे हैं। चाहे गुरुद्वारा रकाबगंज परिसर में कोविड केयर सैंटर बनाना हो या कश्मीर की सिख लड़की को दिल्ली लाकर नौकरी देना, उनके इन फैसलों से विरोधी हैरान भी थे। विरोधियों ने सिरसा को हटाने के लिए केंद्र सरकार से कई बार चुगली भी की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब सिरसा खुद केंद्र की सत्ताधारी पार्टी का हिस्सा बन चुके हैं। अचानक हुए सियासी घटनाक्रम से विरोधी नेता हैरान, परेशान और स्तब्ध हैं...।-दिल्ली की सिख सियासत सुनील पांडेय
 


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