पार्टी काडर पर टिका है भाजपा का ‘पिरामिड’

punjabkesari.in Wednesday, May 29, 2019 - 04:19 AM (IST)

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की संगठनात्मक रचना एक पिरामिड की तरह है जिसके निर्माण में ऊपर से नीचे तक असंख्य कार्यकत्र्ता लगे होते हैं। यह पिरामिड वर्षों की तपस्या का फल है। जनसंघ से भाजपा तक के एक ‘स्वणर््िाम काल’ तक पहुंचने में 5 पीढिय़ां गर्क हुई हैं, तब जाकर यह पिरामिड बना है। इसका आधार है ‘पन्ना प्रमुख’, जिसके पास 20 से 50 घरों की वोटों को चुनाव में सम्भालने की जिम्मेदारी होती है। 

फिर आता है वार्ड, उसके बाद ‘शक्ति केन्द्र’। एक बूथ पर 10 कार्यकत्र्ता काम पर लगे होंगे। कई शक्ति केन्द्रों को मिलाकर एक ‘मंडल’ और कई मंडलों को मिलाकर बनता है एक विधानसभा क्षेत्र, जिसका एक प्रभारी होता है। 9 विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर बनेगा एक संसदीय क्षेत्र, जिसका फिर एक प्रभारी। फिर प्रांत भर के संसदीय क्षेत्रों का एक अन्य प्रभारी। प्रांत रहेगा प्रांत के संगठन मंत्री के अधीन। यही रचना भाजपा की राष्ट्रीय स्तर तक रहेगी, जिसकी देखरेख राष्ट्रीय संगठन मंत्री करेगा। 

कार्याधिकारियों का जाल
मंडल से जिला, जिला से प्रांत और प्रांत से देश तक कार्याधिकारियों का एक जाल-सा। भाजपा का यह पिरामिड हर स्तर पर अपने काम के प्रति उत्तरदायी है। यही काडर भाजपा की पूंजी और शक्ति है। इसी काडर पर यह पिरामिड टिका है। भाजपा के इस ‘स्वॢणम काल’ में इस काडर के दो ध्वजवाहक, एक हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दूसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह। इन दोनों में है ‘किलिंग इंसिं्टक्ट’ कि भारत को परम वैभव तक ले जाना है। इसकी सीढ़ी है ‘सबका साथ, सबका विकास’। 2014 के चुनाव में उद्देश्य था भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिए एक दृढ़निश्चयी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाना और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 300 सीटों से पार ले जाना। लोकतांत्रिक ढांचे के अंतर्गत भाजपा के दुनिया में सबसे अधिक सदस्य हैं। आज संसद में सबसे अधिक सदस्य भाजपा के, देश में सबसे अधिक विधायक भाजपा के, पंचों-सरपंचों, ब्लाक समितियों तथा जिला परिषदों में सबसे ज्यादा, सबसे आगे भाजपा। नगर पंचायतों, नगर पालिकाओं व नगर निगमों में भाजपा का शासन। 

कांग्रेस के पास नेता थे, कार्यकत्र्ता नहीं
2019 के लोकसभा चुनावों में तो भाजपा ने सारे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। कांग्रेस जैसा राजनीतिक दल, जिसका कश्मीर से कन्याकुमारी तक और पूर्व से पश्चिम तक एकछत्र शासन हुआ करता था, आज उसे भाजपा ने ऐसी शर्मनाक स्थिति में पहुंचा दिया है कि देश के 17 प्रांतों में उसका एक भी सांसद जीत नहीं सका। क्यों? क्योंकि कांग्रेस के पास नेता थे, कार्यकत्र्ता नहीं थे। उसका देश भर में शासन तो था परंतु नीचे तक शासन सम्भालने वाला संगठन नहीं था। आज 2019 आते-आते कांग्रेस के पास नेता भी नहीं, कार्यकत्र्ता भी नहीं। 

राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष तो हैं लेकिन उनकी ‘बॉडी लैंग्वेज’ नेता वाली नहीं। आज कांग्रेस तो क्या, किसी अन्य राजनीतिक दल के पास भी मोदी का विकल्प नहीं है। कल्पना नहीं की जा सकती कि कोई प्रधानमंत्री एक लोकसभा चुनाव में 150 रैलियां कामयाबी से कर सकता है और थकानरहित मिले। ये दोनों नेता एक-दूसरे के पूरक और देश के विकास की ओर अग्रसर हैं। कोई राजनेता इनका मुकाबला करे भी तो कैसे। इसीलिए सारा काडर इनके एक इशारे पर खड़ा हो जाता है। इसके कार्यकत्र्ता अनुशासित तथा अच्छा व्यवहार करने वाले। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को तो हास्यास्पद स्थिति में पहुंचाया ही है परंतु बाकी विरोधी दलों को भी धूल चटा दी है। 

प्रधानमंत्री बनने के सपने लेतीं मायावती और ममता बनर्जी अपने-अपने राज्यों में पश्चाताप कर रही हैं। तेदेपा नेता चन्द्रबाबू नायडू अपने ही राज्य आंध्र प्रदेश में बेगाने बन गए हैं। ‘चले तो थे चौबे बनने दूबे से भी हाथ धो बैठे’ यानी मुख्यमंत्री का पद भी गंवा बैठे। हरियाणा में चौटाला परिवार का क्या हुआ, जिसकी कभी तूती बोलती थी। भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह के बेटे अजित सिंह यू.पी. से चुनाव हार गए। जम्मू-कश्मीर में पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती खुद चुनाव हार गईं। दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी ‘आप’ रसातल में चली गई। लोकसभा में ‘आप’ का इकलौता भगवंत मान ही बांसुरी बजाएगा। बिहार में लालू और तेजस्वी यादव की पार्टी राजद गुमनाम हो गई। कम्युनिस्ट लोकसभा की केवल 5 सीटों तक सिमट गए हैं। उन्होंने देश की नब्ज नहीं टटोली। केरल गया, बंगाल गया, त्रिपुरा गया। 

मोदी ने परिवारवाद खत्म किया, जातिवाद को धक्का दे दिया। यहां तक कि भारत के 92 मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में 45 सीटों पर भाजपा की विजय हुई। भाजपा सब समुदायों को साथ लेकर चलना चाहती है। यदि अन्य राजनेताओं या राजनीतिक दलों की करारी हार हुई है तो इसका कारण सिर्फ यही है कि उनका आधार ही नहीं है। कांग्रेस नेे 50 साल तक इस देश में अपने बुजुर्गों की कमाई हुई पूंजी से राज किया। पं. जवाहर लाल नेहरू एक चेहरा थे। इंदिरा गांधी एक करिश्माई नेता थीं, जब तक थे कांग्रेस चली। ऐसे नेता गए तो कांग्रेस भी चली गई। अब कोई थोड़ी-सी राजनीति जानने वाला भी कह देगा कि इतनी विशाल पार्टी को क्या राहुल गांधी चलाएंगे? कांग्रेस पिछली बार की 44 सीटों से अब केवल 52 सीटों तक पहुंच पाई है, क्या यह हैरानी की बात नहीं? दुख इस बात का है कि अमेठी से राहुल गांधी खुद हार गए। अब कांग्रेस 6 महीनों तक खुले मन से चिंतन करे। अपने धरातल को ढूंढे। 

भाजपा में नेताओं की सशक्त टीम
दूसरी ओर भाजपा में एक से बढ़कर एक नेताओं की सशक्त टीम। मोदी की वाकपटुता व अद्भुत कार्यशैली, मित्र-शत्रु की पूरी पहचान। संगठन की पाठशाला से गढ़ा गया व्यक्तित्व। भाजपा में हजारों कार्यकत्र्ता ऐसे हैं जिन्होंने सारा जीवन पार्टी को सर्मपित कर रखा है। ऊपर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वरदहस्त पार्टी के साथ। उन्होंने चुनाव से 6 महीने पहले ही देश में अभियान चलाया था कि 100 प्रतिशत वोटिंग करने के लिए समाज तैयार किया जाएगा। ऐसा हुआ भी। 85 प्रतिशत वोटिंग करवा जाना संघ की ही उपलब्धि है। जहां-जहां संगठन कमजोर था, वहीं भाजपा हारी। आइंदा यह कमजोरी भी नहीं रहेगी। एक दिन ऐसा आएगा कि सारे भारत में भाजपा का एकछत्र राज होगा। अन्य कोई विकल्प नहीं।-मा. मोहन लाल पूर्व ट्रांसपोर्ट मंत्री, पंजाब


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