भाजपा नए गठबंधन सहयोगियों की तलाश में

punjabkesari.in Sunday, Feb 11, 2018 - 03:04 AM (IST)

कोई सप्ताह भर पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के नई दिल्ली के मोतीलाल नेहरू रोड स्थित आवास पर भाजपा के हैवीवेट नेताओं का जमावड़ा जुटा था। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि इस अति महत्वपूर्ण बैठक में शिरकत करने के लिए स्वयं अमित शाह मौजूद थे, शाह के अलावा राजनाथ सिंह, अरुण जेतली व स्वयं नितिन गडकरी इस बैठक की शोभा बढ़ा रहे थे। 

सूत्र बताते हैं कि यह बैठक इस बात को लेकर आहूत थी कि भाजपा के चेहरे-मोहरे में फिलवक्त जो तनाव दिख रहा है, पार्टी के जमीनी स्तर के कार्यकत्र्ताओं में जो किंचित निराशा व्याप्त हो रही है, उसे दूर करने के क्या उपाय हों? पार्टी में किस हद तक संगठनात्मक बदलाव किए जाएं और मोदी सरकार की उपलब्धियों को कैसे जनता के बीच लाया जाए? सूत्र बताते हैं कि दरअसल शाह एक ऐसा वर्क-प्लान तैयार करना चाहते थे ताकि इस सप्ताह की समाप्ति पर जब पी.एम. को अपने पार्टी सांसदों को संबोधित करना है तो उनका एजैंडा क्या हो? इस बैठक की महत्ता बस इसी एक बात से समझी जा सकती है कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह को बैठक के दिन से ऐन पहले अपने विभागीय कार्य से 3 दिनों के लिए दिल्ली से बाहर जाना था, पर उन्हें अपने कार्यक्रम रद्द कर दिल्ली में ही बने रहने को कहा गया। 

सूत्र बताते हैं कि इस बैठक में एन.डी.ए. के सहयोगी दलों की बदली भूमिकाओं को लेकर भी चिंता जाहिर की गई। बिहार में उपेंद्र कुशवाहा नाराज हैं, तो यू.पी. में ओम प्रकाश राजभर, महाराष्ट्र में शिवसेना अपने वोट बैंक की खातिर नाराज हुई जाती है, तो आंध्र में चंद्रबाबू नायडू को एक मोटा पैकेज चाहिए, अकालियों की नाराजगी समझ में आती है कि उन्हें एक बेहद मामूली-सा मंत्रालय दिया गया है जिससे उनकी दुकान चल नहीं पा रही है, वाजपेयी के जमाने में कभी एन.डी.ए. के घटक दलों की संख्या 22 तक जा पहुंची थी, एन.डी.ए. जब चुनाव में गया तो घटक दलों की संख्या घट कर मात्र 6 रह गई थी। अब यही चिंता मोदी जी के दूतों को सता रही है, जिन बड़े नेताओं को पार्टी शहंशाह पूछ नहीं रहे थे, अब उनकी राय ले रहे हैं, मौसम बदले न बदले, हवा का रुख जरूर बदल रहा है। 

राहुल की राहगीरी
अपनी अध्यक्षीय ताजपोशी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी किंचित बदले-बदले से नजर आते हैं, वह कभी सैंट्रल हॉल में निपट अकेले होते थे, आज वह सैंट्रल हॉल में जहां होते हैं पत्रकारों का मजमा लग जाता है। पिछले दिनों अपने पसंदीदा पत्रकारों की भीड़ से घिरे राहुल चुटकियां ले रहे थे कि कैसे उन्होंने इस दफे गुजरात चुनाव में मोदी-शाह की जोड़ी को नाकों चने चबवा दिए। बातों-बातों में इस सरकार में संघ के बढ़ते हस्तक्षेप की बात करने लगे, फिर यह बताने लगे कि भारत जैसे देश में संघ जैसी संस्थाओं का भविष्य क्या है? तभी वहीं पास से गुजर रही सोनिया ने जब राहुल को बेबाकी से पत्रकारों से बात करते देखा तो वह भी आ गईं। 

जब अपनी रौ में राहुल संघ के बारे में बोलते गए तो मां सोनिया ने उन्हें टोका कि ‘हमें अपनी बात कहनी चाहिए, हम दूसरों के बारे में बात क्यों करें?’ मां ने टोका तो एक पल के लिए राहुल ठहरे, ठिठके, मां की ओर नजर भर कर देखा, फिर से बोलना शुरू कर दिया। सोनिया को अपने बेटे का यह नया आत्मविश्वास अच्छा लगा। फिर राहुल ने सामने बैठे राजदीप सरदेसाई से कहा, ‘‘आप मीडिया वाले किससे डरते हो, खुलकर अपनी बात क्यों नहीं कहते, आप राफेल डील पर सवाल क्यों नहीं करते?’’ इधर राहुल की बैठक खत्म हुई और उधर शाम 4 बजे की नियमित प्रैस ब्रीफिंग में रणदीप सुर्जेवाला ने राफेल डील का मुद्दा उछाल दिया।

शो मैन शाह
क्या भाजपा में दो पॉवर सैंटर बनते जा रहे हैं? नहीं तो कल तक अपने मन की बात प्रधानमंत्री से कहने-करने को बेताब केंद्र के मंत्रीगण मोदी के आगे-पीछे परिक्रमा लगाया करते थे। अब मोदी सरकार के मंत्री पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से मिलकर उनके समक्ष अपने कामकाज का निवेदन प्रस्तुत कर लिया करते हैं। चुनांचे जब संसद चल रही होती है तब भी आप अनेक प्रभावशाली मंत्रियों को संसद भवन के कमरा नंबर 6 के आसपास कदमताल करते देख सकते हैं। अब आप जानना चाहेंगे कि क्या यह कमरा नंबर 6 अमित शाह का है? नहीं जनाब, यह कमरा शाह के एक विशेष अनुयायी पीयूष गोयल का है, जहां नियम से शाह पॉवर लंच करते नजर आ सकते हैं। जिन मंत्रियों की क्लास लगनी होती है अथवा जिन पर शाह अपनी अनुकंपाओं का उद्गार व्यक्त करना चाहते हैं, इस पॉवर लंच में उन्हें भी आमंत्रित कर लिया जाता है और शाह के समक्ष अपना पक्ष रखने के बाद तो मंत्रीगण अक्सर खाने की बात भूल जाते हैं। 

कमल के कद्रदान 
पवन सुत की जय। राज्यसभा में माहौल जब भी सत्ता पक्ष के खिलाफ उफान मार रहा होता है, ऊपर वाला उनके बचाव में संसदीय नियमों की भी ऐसी-तैसी करने में पीछे नहीं हटता। उस रोज भी ऊपरी सदन का माहौल गर्म था, तृणमूल कांग्रेस हंगामे पर उतारू, तेलगूदेशम ने भी आंध्र पैकेज को लेकर नोटिस दिया हुआ था। सभापति वेंकैया नायडू जैसे ही 11 बजे सदन में आए, मामले की नजाकत भांपते हुए 2 बजे तक सदन स्थगित कर दिया, यानी प्रश्नकाल और शून्यकाल दोनों ही इसकी बलि चढ़ गए, जबकि 1 घंटे से ज्यादा एक बार में सदन स्थगित करने की परंपरा नहीं है। 

इसके बाद जब उप-सभापति कुरियन ने मैदान संभाला तो कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद ने आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा, ‘सदन तो नियम के मुताबिक चलना चाहिए।’ इस पर कुरियन ने कहा, ‘यह फैसला चेयरमैन का है, आपको जो कहना है उनसे जाकर कहिए।’ तब तक विपक्षी नेताओं को भी सभापति का मैसेज आ गया कि जिसे भी दिक्कत है वह उनके चैंबर में आकर बात कर ले। इस पर टी.एम.सी. के डेरेक ओ ब्रायन अड़ गए, ‘मामला सदन का है, तो बात भी सदन में ही होगी।’ अंत में वेंकैया को इन नेताओं को बमुश्किल समझाना पड़ा कि वह बार-बार का व्यवधान नहीं चाहते थे, इसीलिए एक ही साथ 2 बजे तक के लिए सदन को स्थगित कर दिया, पर तब भी विपक्षी नेता नियम की बात को लेकर अड़े रहे। 

भाजपा की गिनती कम
पूर्व केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र गवर्नर बनने के लिए बेसब्री से अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे, पर सूत्र बताते हैं कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व की ओर से उन्हें थोड़ा और इंतजार करने को कहा गया है क्योंकि लोकसभा में भाजपा सांसदों की गिनती तेजी से कम हो रही है, 2014 के आम चुनाव में जहां भाजपा के 283 सांसद लोकसभा में चुनकर आए थे, अब उनकी गिनती घटकर महज 274 रह गई है, अगर एन.डी.ए. के घटक दलों की संख्या न जोड़ी जाए तो बहुमत के लिए 272 का आंकड़ा जरूरी होता है। अभी 7 उप-चुनाव बाकी हैं, जिनमें गोरखपुर, फूलपुर और अररिया संसदीय क्षेत्रों के उप-चुनाव 11 मार्च को घोषित किए गए हैं। अन्य 4 सीटों के लिए अभी तारीखों का ऐलान होना है। अजमेर और अलवर लोकसभा सीट भाजपा कांग्रेस के हाथों गंवा चुकी है। बस राज्यसभा में भाजपा की सीटें बढऩे वाली हैं। 

न माने नायडू
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू केंद्रनीत मोदी सरकार से बेतरह नाराज हैं। वाजपेयी के जमाने से नायडू को मोटे आर्थिक पैकेज की आदत पड़ी हुई थी, मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी ऐसे मामलों में अपने साफ विचार रखते हैं। पिछले काफी समय से नायडू केंद्रनीत भाजपा सरकार के समक्ष यह मांग रख रहे थे कि आंध्र को पिछड़ा राज्य घोषित किया जाए और उसे एक विशेष पैकेज दिया जाए। पर भाजपा के रणनीतिकार इस मामले में कहीं ज्यादा चतुर सुजान हैं। सूत्र बताते हैं कि उन्होंने भीतरखाने से जगनमोहन रैड्डी से भी तार जोड़ रखे हैं और जगन की कमोबेश वही मांग है जो चंद्रबाबू चाहते हैं। भाजपा को लग रहा है कि पिछले कुछ समय से आंध्र में चंद्रबाबू की लोकप्रियता का ग्राफ  तेजी से नीचे गिरा है, ऐसे में अगर जरूरी हुआ तो अगले चुनाव में भाजपा चंद्रबाबू के बजाय जगन से भी हाथ मिला सकती है। यही चिंता है जो नायडू को खाए जा रही है और वह बेतरह भाजपा पर आगबबूला हो रहे हैं। 

...और अंत में 
अरुण जेतली एकबारगी पुन: मोदी सरकार में अपना सिक्का जमाने लगे हैं, महत्वपूर्ण मसलों पर वह अब शीर्ष नेतृत्व को सीधी राय देते हैं, अभी सुप्रीम कोर्ट के 4 न्यायाधीशों की प्रैस कान्फ्रैंस के संदर्भ में उन्होंने पी.एम. को सीधी, सटीक और लंबी रिपोर्टिंग की। इस मामले में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद से वह बाजी मार गए। दरअसल, प्रसाद को इस बात का इल्म न हो सका कि इतना कुछ होने वाला है। हालांकि कहा यह जा रहा था कि कानूनी मामलों में जेतली की इतनी दखल संघ को रास नहीं आ रही थी। शायद इसीलिए एक-एक कर उच्च पदों से जेतली विश्वासियों की छुट्टी हो गई। चाहे वह अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी हों या संजय जैन हों या फिर सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार, इन लोगों को जेतली से नजदीकियों का खमियाजा चुकाना पड़ा, पर एक बार फिर से ‘जेतली इज बैक।’-त्रिदीब रमण 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News