भाजपा अब ‘अजेय’ नहीं रही

punjabkesari.in Monday, Dec 30, 2019 - 01:53 AM (IST)

24 दिसम्बर 2019 को झारखंड चुनाव के नतीजों के बाद कई समाचारपत्रों में 2 मानचित्र प्रकाशित हुए। 2018 में भाजपा ने देश के 28 राज्यों में से 21 पर शासन किया। 2019 के अंत तक यह गिनती सिकुड़ कर 15 रह गई। 2018 में भाजपा ने भारत की 69.2 प्रतिशत जनसंख्या पर तथा 2019 के अंत तक  देश के 76.5 प्रतिशत क्षेत्र पर शासन किया।  अब यह गिनती 42.5 प्रतिशत (जनसंख्या) तथा 34.6 प्रतिशत (क्षेत्र) रह गई है। भारत के बड़े राज्यों (जिनकी लोकसभा में सीटें 20 तथा उससे ज्यादा हैं) में भाजपा के पास पार्टी के मुख्यमंत्रियों की गिनती 3 है जिसमें कर्नाटक, गुजरात तथा उत्तर प्रदेश राज्य शामिल हैं। अन्य 3 बड़े राज्य जैसे आंध्र प्रदेश, बिहार तथा तमिलनाडु एन.डी.ए.के  अधीन ही हैं। मगर वह कितनी देर तक एन.डी.ए. के करीब रहेंगे, इस पर अनिश्चितता बनी हुई है। 

सदमा और भय 
लोकसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत के बाद राजनीतिक पार्टियों  के भीतर सदमा और भय था। भाजपा के पास 303 सीटें तथा सहयोगी दलों के साथ 353 सीटें थीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह  अपने जीवनकाल के दौरान दोनों ही चरम सीमा पर थे। वहीं विपक्षी पार्टियां किसी कोने में पीछे हट कर छिपी बैठी थीं। मोदी तथा शाह ने निर्मम शासकों की तरह अपने चरित्र को सुदृढ़ बनाने के लिए कोई कमी नहीं छोड़ी। उन्होंने एक के बाद एक शक्तिशाली उपाय से पर्दा हटाया जिसके  माध्यम से वह यह संदेश देना चाहते थे कि वह पूर्व के शासकों की तरह हैं और जिनका लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र को बनाना ही था। 

वह सबसे पहले तीन तलाक के अपराधीकरण का बिल लेकर आए। न तो कांग्रेस, न ही किसी अन्य पार्टी ने तीन तलाक का विरोध किया। उन्होंने तो केवल उस खंड का विरोध किया  जो पति को जेल में डालने के लिए था। फिर उसके बाद वह असम में घातक एन.आर.सी.को लेकर आए जिसने 19,06,657 लोगों को गैर नागरिकों अथवा राज्य रहित लोगों के तौर पर छोड़ दिया। 5 अगस्त 2019 को भाजपा ने भारत के संविधान के ऊपर अभूतपूर्व वार किया। भाजपा सरकार ने कश्मीर घाटी के 7.5 मिलियन  लोगों को अनिश्चितकाल के लिए घेरे में रखा। जम्मू-कश्मीर राज्य को विखंडित कर दिया गया तथा 3 क्षेत्रों को 2 केन्द्रीय शासित प्रदेशों तक सीमित कर दिया गया। भारतीय गणराज्य के ऊपर अंतिम आघात नागरिकता संशोधन विधेयक के तौर पर आया जिसे 72 घंटों के अंतराल के भीतर स्वीकार तथा अधिसूचित कर पास करवा दिया गया। 

प्रतिरोध की शुरूआत 
यह सब लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए नेताओं का कार्य नहीं था। यह तो धौंस जमाने जैसा कार्य था। डिक्शनरी में धौंस का व्याख्यान जबरदस्ती या फिर गालियां देने की धमकी के तौर पर किया जाता है या फिर यूं कहें कि आक्रामक तौर पर किसी पर हावी होना या फिर उसे भयभीत करना भी धौंस जमाने जैसा होता है। धौंस जमाने वाले व्यक्ति किसी का परामर्श नहीं मानते। न ही वे लोग विरोधी विचार से सहमत होते हैं। असहमति उनको बर्दाश्त नहीं होती और न ही वे अपने आपको गलत मानते हैं। धौंस जमाने वाले तभी सफल होते हैं यदि आप अपना आत्मसमर्पण इसके आगे कर देते हैं। मुझे डर है कि एन.डी.ए. 2 के पहले 6 माह में विपक्षी दलों के साथ क्या घटा। 

प्रतिरोध की ज्वाला का पहला चिन्ह पश्चिम बंगाल में देखने को मिला। वहां की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने इसका जवाब वैसे ही दिया जैसा उन्होंने भाजपा से पाया। महाराष्ट्र चुनावों में राकांपा प्रमुख शरद पवार के नेतृत्व में भी भाजपा को पीछे धकेलने का अपना दृढ़ संकल्प दिखाया गया। नतीजों के बाद पवार ने प्रतिरोध तथा राजनीतिक उधेड़बुन के संयुक्त प्रयास से भाजपा को पहली प्रमुख हार दी। इसी समय नागरिकता संशोधन बिल  पर संसद के माध्यम से बुल्डोजर चला दिया गया। इसके बाद देशभर में छात्रों ने प्रदर्शन किए और उनका आंदोलन फूट पड़ा। महाराष्ट्र की सफलता तथा  नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ प्रदर्शन के घटनाक्रमों ने झारखंड के चुनावों में झामुमो तथा कांग्रेस के राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं में जान फूंक दी। एक पखवाड़े के भीतर (12 दिसम्बर से लेकर 24 दिसम्बर) पूरा राष्ट्र इन धौंस जमाने वालों के खिलाफ पूरी जान लगाकर खड़ा हो गया। यहां से देश किस ओर जा रहा है? मोदी के पास 4 वर्ष तथा 5 माह का कार्यकाल शेष बचा है। इसलिए दिल्ली में बदलाव की आशा लगाई जा रही है। कुछ समीक्षकों के अनुसार लोगों का प्रतिरोध मोदी को अपने क्रम में बदलाव लाने के लिए धकेलेगा। मेरे विचारों में मोदी को अपनी कार्य प्रणाली में बदलाव के लिए धकेलने का मतलब राज्य विधानसभा के चुनावों के परिणाम से है, जोकि 2020 तथा 2021 में होने हैं। 

2020 : जनवरी-फरवरी में दिल्ली के चुनाव अक्तूबर-नवम्बर में बिहार के चुनाव 2021 : फरवरी-मार्च में जम्मू-कश्मीर के चुनाव। अप्रैल-मई में असम, केरल, पुड्डुचेरी, तमिलनाडु तथा पश्चिम बंगाल के चुनाव। उपरोक्त सूचीबद्ध प्रत्येक राज्य में  भाजपा को हराया जा सकता है। गृहमंत्री अमित शाह ने ऐसी कल्पना कर रखी है कि भाजपा एक अजेय राजनीतिक मशीन है। भाजपा के पास  शक्ति है तथा इसके पास पैसे का बल भी है। मगर भाजपा जिन राज्यों में  सत्ताधारी पार्टी है वहां पर यह सभी राजनीतिक पाॢटयों, गुटों, असंतुष्टों, विरोधी उम्मीदवारों तथा सरकार विरोधी लहर से भी त्रस्त हुई है।

पिछले 2 माह में भाजपा हरियाणा में कमजोर हुई, महाराष्ट्र में इसको नकारा गया तथा झारखंड में इससे सत्ता छीन ली गई। यह सफलता आगे की ओर कदम बढ़ा सकती है यदि गैर भाजपा पाॢटयां अगले  कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में अपनी जीत सुनिश्चित कर लें। इसका अभिप्राय: यह होगा कि मिसाल के तौर पर  असम, केरल तथा पुड्डुचेरी में कांग्रेस तथा तमिलनाडु में द्रमुक को जोर लगाना होगा। वहीं बिहार तथा पश्चिम बंगाल में भी विशेष कार्य क्षमता दिखाई जाए। वर्तमान हालातों को देखते हुए उपरोक्त राज्यों में भाजपा की जीत निश्चित नहीं लग रही। अंतिम लक्ष्य तो 2024 के लोकसभा चुनाव को भेदना होगा। 2024 से पहले हिन्दू राष्ट्र की युक्ति को किसी भी प्रकार से रोकना होगा और 2024 तक भारतीय संविधान को बचाना होगा जैसा कि इब्राहिम लिंकन ने 1865 में अमरीका में कर दिखाया था।-पी. चिदम्बरम


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News