जैसा मोदी ‘चाहते हैं’ सब कुछ वैसा हो रहा है

punjabkesari.in Sunday, Jul 26, 2015 - 01:21 AM (IST)

(त्रदीब रमण): यह बात कोई साल भर पहले की है जब नरेंद्र मोदी ताजा-ताजा दिल्ली के निजाम पर काबिज हुए ही थे, तब चतुर सुजान मोदी ने अपना मास्टर स्ट्रोक चलते हुए भाजपा शासित चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अपनी कैबिनेट में शामिल होने का न्यौता दिया। तब मनोहर पार्रिकर ने सोचने के लिए थोड़ा वक्त मांगा था, पर बाद में उन्होंने मोदी कैबिनेट ज्वाइन कर ली, शिवराज सिंह चौहान तब इस आफर से खासे तिलमिलाए थे क्योंकि अडवानी कैम्प तब भी उन्हें प्रधानमंत्री पद का उपयुक्त उम्मीदवार मानता था। शिवराज ने अपना पीछा छुड़ाते हुए मोदी से कहा कि वे इस ऑफर पर विचार करेंगे, पर अपनी ओर से उन्होंने मोदी के समक्ष यह भी साफ कर दिया था कि फिलहाल मध्य प्रदेश छोडऩे का उनका कोई इरादा नहीं है। 

रमण सिंह मौनी बाबा बन कर रह गए, उन्होंने अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी, सिर्फ वसुंधरा राजे ही थीं जिन्होंने मोदी के इस प्रस्ताव को सीधे तौर पर ठुकरा दिया, उनकी प्रतिक्रिया थी-‘‘सवाल ही नहीं उठता।’’ जबकि मोदी ने अपने इन काबिल साथियों के लिए उनका मंत्रालय भी सोच रखा था, शिवराज को वे ग्रामीण विकास, वसुंधरा को रक्षा, पाॢरकर को संचार और डा. रमण सिंह को कृषि मंत्रालय देना चाहते थे। अब विधि का विधान देखिए-सिर्फ एक साल में इन चारों के भाग्य का चक्र कहां घूम कर आया है। पार्रिकर तो मोदी मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ा रहे हैं, शेष तीनों के लिए आगे की राह कांटों भरी है।
 
धुल रहा है संसद का मानसून सत्र
संसद का मानसून सत्र पूरी तरह से धुलने की कगार पर है, खासकर प्रधानमंत्री मोदी के इस जुमले के बाद कि सरकार सदन में विपक्ष से मुकाबले को तैयार है, इसके बाद विपक्षी दलों ने और त्यौरियां चढ़ा ली हैं। संसद का मौजूदा सत्र 13 अगस्त तक चलना है, पर एक सप्ताह बाद भी सदन में कामकाज का कोई माहौल नहीं बन पाया है। भाजपा की ओर से उनका क्राइसिस मैनेजमैंट ग्रुप सक्रिय है, सरकार चाहती है कि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के साथ एक कामकाजी रिश्ता तो बने, यही वजह है कि सदन के अंदर स्वयं प्रधानमंत्री सोनिया गांधी के पास चल कर उनके अभिवादन के लिए गए, पर उन्हें वहां से कोई माकूल जवाब नहीं मिला। 
 
सरकार सदन में सात नए बिल लाना चाहती है और पहले से पैंडिग चल रहे 10 विधेयकों को पास करवाना चाहती है। विपक्ष के हंगामों के चलते सरकार के कई महत्वाकांक्षी विधेयकों  का भविष्य अधर में लटक गया है।
 
सुषमा से मित्रता को न विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कथित तौर पर संसद सत्र शुरू होने से पहले अपनी पुरानी मित्र अंबिका सोनी से बात की और उनके समक्ष अपना पक्ष रखा। कांग्रेस की बैठक में सोनी ने राहुल से कहा कि सुषमा के मामले में पार्टी को किंचित नरमी बरतनी चाहिए क्योंकि बतौर नेता प्रतिपक्ष सुषमा ने कई मामलों में कांग्रेस का साथ दिया था। अंबिका सोनी की इस राय से गुलाम नबी आजाद भी इत्तेफाक रखते थे पर राहुल के तेवर कुछ और ही थे। उन्होंने तल्ख लहजे में अपने सीनियर नेताओं से कहा कि हम यहां राजनीति करने के लिए हैं, मित्रता करने के लिए नहीं और आप लोगों की इसी सोच ने कांग्रेस को 44 की गिनती पर पहुंचा दिया है।
 
भाजपा व मोदी की कुंडली
इस 14 जुलाई से भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की कुंडली में कुछ बड़े बदलाव परिलक्षित हुए हैं, अगर भाजपा की कुंडली की बात करें तो इस 14 जुलाई से गुरु सिंह राशि में विराजमान हो गया है, गुरू जहां बैठे हैं वह उस भाव को कमजोर करने वाले हैं, यानी आगे अब भाजपा की राहें इतनी आसान नहीं। आने वाले चुनावों में भी भाजपा को काफी पसीना बहाना पड़ेगा। अगर बात प्रधानमंत्री की कुंडली की करें तो 14 जुलाई से गुरु मोदी की कुंडली में दशम भाव में आए हैं, इससे इस बात की ङ्क्षचता उभरती है कि आगे मोदी को विशेष परिश्रम करना होगा, इससे इस बात के संकेत भी मिलते हैं कि मोदी अब जितना पराक्रम करेंगे उस अनुपात में उन्हें  उतना पारितोषिक नहीं मिलेगा। ऐसा दावा एक प्रमुख भारतीय ज्योतिष एस. चांद उर्फ महेश चंद्र त्यागी का है। 
 
त्यागी का यह भी दावा है कि जब 7 अप्रैल 2016 को विक्रमी संवत् बदलेगा तो भारत समेत दुनिया के अन्य मुल्कों की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखा जा सकेगा। 21 मार्च, 2015 से 7 अप्रैल 2016 तक शनि राजा के और मंगल मंत्री के रोल में आसीन रहेंगे, इससे काफी सियासी हलचल देखी जा सकेगी। एस. चांद के मुताबिक 2014 के आम चुनावों में जब भाजपा को अपार सफलता मिली थी, उस समय भाजपा की कुंडली में गुरु दूसरे घर में कर्क राशि में था, मिथुन इसका लग्र था, जो भाजपा का सबसे अच्छा दौर था। 2 नवम्बर 2014 को शनि जब वृश्चिक राशि में विराजमान हो गए तो भाजपा की कुंडली में अष्टम भाव में दोनों ग्रहों में गुरु व शनि की दृष्टि थी, इसके चलते ही दिल्ली चुनाव में भाजपा की इतनी बुरी गत हुई।
 
दून साथियों की लंदन पार्टी 
दून स्कूल के प्रोडक्ट पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेसी नेता आर.पी.एन. सिंह ने पिछले दिनों अपने स्कूल के पूर्व साथियों के लिए लंदन में एक शानदार पार्टी रखी। इसके लिए तकरीबन 125 एल्यूमनी को न्यौता भेजा गया, इत्तेफाक से उस वक्त वसुंधरा राजे के सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह भी लंदन में मौजूद थे। 
 
सनद रहे कि दुष्यंत भी दून स्कूल से ही पढ़े-लिखे हैं। आर.पी.एन. के ज्यादातर स्कूली मित्रों की चिंता इस बात को लेकर थी कि कहीं उन्होंने पार्टी में दुष्यंत को तो नहीं आमंत्रित कर दिया है, नहीं तो मीडिया में खामख्वाह बात का बतंगड़ बन जाएगा। दुष्यंत इस पार्टी में आए और देर तक रुके पर पार्टी में शामिल होने वाले आर.पी.एन. के स्कूली दिनों के मित्रों की संख्या में खासी कटौती हो गई, बामुश्किल 30-35 लोग ही इस पार्टी में पहुंच पाए।
 
ममता का लंदन दौरा
मां, माटी, मानुष का राग अलापने वाली ममता बनर्जी को भी विदेशी निवेश के नाम पर दल-बल के साथ विदेश घूमने का चस्का लग गया है। सिंगापुर के अपने बहुचॢचत दौरे के बाद दीदी इस 26 जुलाई से 30 जुलाई के बीच अपने दल-बल के साथ लंदन दौरे पर रवाना हो चुकी हैं। ममता ने अपनी इस ब्रिटेन यात्रा को मिशन लंदन का नाम दिया है, ममता की इस लंदन यात्रा के सूत्रधार बने हैं आई.टी.सी. ग्रुप के वाई.सी. देवेश्वर और ए.पी.जे. ग्रुप के करण पॉल। ममता के साथ 50 सदस्यीय उद्योगपतियों का एक समूह भी लंदन की यात्रा पर है, इसके अलावा 11 लोगों का एक कल्चरल ग्रुप भी है। 
 
यू.के.- इंडिया बिजनैस काऊंसिल और फिक्की की एक मीटिंग में ममता प्रिंस एंड्रयू से भी मिलने वाली हैं और उन्हें इस बात के लिए आश्वस्त करने वाली हैं कि पश्चिम बंगाल में निवेश करना व्यावसायिक रूप से कैसे फायदेमंद हो सकता है।
 
मोदी पर आक्रामक कांग्रेस
मानसून सत्र में कांग्रेस की रणनीति बनाने का जिम्मा पहले गुलाम नबी आजाद को मिला था, पर बाद में राहुल ने बागडोर स्वयं अपने हाथों में संभाल ली। गुलाम नबी आजाद बाकायदा काफी होमवर्क करके आए थे और उन भाजपा नेताओं, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों की एक पूरी फेहरिस्त तैयार करके लाए थे कि सदन के अंदर किस तरह का आक्रमण होना चाहिए। बैठक में मौजूद राहुल अपनी एक नई रणनीति लेकर सामने आए। राहुल का कहना था कि भ्रष्टाचार में चाहे जो भी भाजपा नेता लिप्त हो, कांग्रेस को अपनी तोप का मुंह मोदी की ओर रखना चाहिए। राहुल का मानना था कि अगर हमला सीधा मोदी पर होगा तो इससे पूरी भाजपा बिलबिला जाएगी और पार्टी के कई नेता मीडिया में अनाप-शनाप बोलेंगे, इससे जनता के बीच कांग्रेस को अपनी बात रखने का मौका मिल जाएगा।
           

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