थोरियम घोटाला सामने लाया जाना चाहिए
punjabkesari.in Saturday, May 11, 2024 - 05:37 AM (IST)

11 मई को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भारत के न्यूक्लियर ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी देशों की पांत में आने से राष्ट्रीय टैक्नोलॉजी दिवस की शुरुआत हुई। अटल जी ने अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के दबाव के बावजूद, पोखरण में न्यूक्लियर परीक्षण को सफल बनाने में वैज्ञानिकों के कंधे पर हाथ रखकर ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि दुनिया देखती रह गई।
विज्ञान और टैक्नोलॉजी पसंदीदा विषय होने से और इस क्षेत्र में लेखन और फिल्म निर्माण करने से सोच का वैज्ञानिक होना स्वाभाविक है। ध्यान आया कि यह भी घोटालों से अछूता नहीं रह पाया। 242 लाख करोड़ का थोरियम घोटाला हो गया और किसी के माथे पर शिकन तक नहीं। सत्य यह है कि अगर यह न हुआ होता तो देश अब तक सुपरपॉवर बन चुका होता। जब डॉक्टर भाभा जैसे वैज्ञानिक की दुर्घटना में मृत्यु नहीं, हत्या हो सकती है तो वैज्ञानिकों की अवहेलना मामूली बात है। यू.पी.ए. सरकार अपने कार्यकाल में घोटालों के नाम से जानी जाती थी। इन्हीं में एक था थोरियम घोटाला। उसे कैसे, किसने और क्यों बाहर नहीं आने दिया, यह जांच का विषय होना चाहिए था। इस तकनीकी विषय को सामान्य नागरिक समझ नहीं पाया और सब कुछ गहरी गर्त में दब गया।
पहले बस इतना समझना काफी है कि थोरियम एक ऐसा खनिज भंडार है, जो न्यूक्लियर संसार की जरूरतें पूरी करता है। हमारे सभी रिएक्टर, संयंत्र, अंतरिक्ष यान और बहुत से दूसरे कामों में ऊर्जा यानी शक्ति या ईंधन का इस्तेमाल होता है जो थोरियम से आसानी से मिल जाता है। हम दुनिया के एक तिहाई से भी अधिक स्रोत के मालिक हैं। नागरिकों के लाभ की बात करें तो इससे प्रति वर्ष 500 गीगावॉट बिजली अगले 400 वर्षों तक पैदा की जा सकती है। इससे संचालित होने वाले प्लांट से निरंतर बिजली मिल सकती है, चाहे वह कोई भी इलाका हो।
समुद्री तटों की बहुमूल्य रेत : थोरियम कहीं और नहीं, हमारे जो समुद्री तट हैं, बीचेज हैं, जहां हम सैर-सपाटे के लिए जाते रहते हैं, वहां जो रेत है, यह उसमें से निकलता है। हरेक जगह नहीं, तमिलनाडु और केरल में सबसे अधिक और उसके बाद आंध्र, कर्नाटक और ओडिशा में मिलता है। इसका नियंत्रण भारत सरकार का संस्थान एटॉमिक एनर्जी विभाग करता है। इसकी रखवाली और प्राप्त करने की व्यवस्था करता है। निजी कंपनियों से करार होता है कि वे इस रेत को विभाग के पास जमा कराएंगी, वे न इसे बेच सकती हैं, न कहीं किसी और को दे सकती हैं तथा दूसरे देशों को तो किसी भी कीमत पर नहीं।
थोरियम घोटाला : अब शुरू होता है घोटाला। तमिलनाडु के शहर तिरुनेलवेली के एक व्यापारी और उससे जुड़े लोगों को यह ठेका दिया जाता है। इस कंपनी ने एक कण जितना भी थोरियम मिला रेत विभाग में जमा नहीं कराया और बंदरगाहों, विशेषकर तूतीकोरिन से विदेशों को स्मगल कर दिया। 2002-2012 के बीच 2.1 मिलियन टन मोनटाइज़्र नामक खनिज गायब हो जाता है, जिसमें से थोरियम निकलता है। यह 2,35,000 टन थोरियम के बराबर है। एटॉमिक एनर्जी विभाग आंखें बंद कर लेता है और खरबों रुपए का भंडार तस्करी के जरिए चीन, जापान, कोरिया, फ्रांस पहुंच जाता है। तस्कर अरबपति और देश कंगाल, नागरिक उज्जवल भविष्य की आस लगाए बैठे रह जाते हैं।
उल्लेखनीय है कि पंडित नेहरू, जो देश को विज्ञान के आधार पर विकसित करना चाहते थे, जिन्होंने औद्योगिक प्रगति के लिए सी.एस.आई.आर. तथा अन्य वैज्ञानिक संस्थाओं का गठन किया और जो भारत की खनिज संपदा के बारे में जानते थे, उन्होंने इस खनिज के निर्यात पर बैन लगा दिया था। विडंबना देखिए, केंद्र की यू.पी.ए. सरकार और कांग्रेसी नेतृत्व इस खनिज के निर्यात से पाबंदी हटा देता है। सी.एस.आई.आर. के कहने पर भाभा एटॉमिक संस्थान के निदेशक इस तस्करी के बारे में पता करने व्यापारी के ठिकानों पर जाते हैं, तो उन्हें अंदर घुसने तक नहीं दिया जाता क्योंकि उसका ग्लोबल नैटवर्क है।
एन.डी.ए. सरकार व्यापारी और उसके एक साथी तथा पर्यावरण मंत्रालय के एक भ्रष्ट अधिकारी पर मुकद्दमा चला पाती है। जिन लोगों को देशद्रोह के जुर्म में फांसी होनी चाहिए थी, उन्हें 3 वर्ष और सरकारी अफसर को 5 वर्ष की जेल होती है। वास्तविकता यह कि यदि यही थोरियम देश में होता तो न ऊर्जा की कमी होती, न औद्योगिक क्षेत्र में पिछड़ते, शिक्षा संस्थान आधुनिक, किसान और कारीगर, मतलब सभी का जीवन संवर जाता। आज राष्ट्रीय टैक्नोलॉजी दिवस के सरकारी आयोजनों के बीच इस घोटाले पर भी नजर पड़ जाए तो देश कृतज्ञ होगा।-पूरन चंद सरीन