क्या राहुल को ‘आराम करने के लिए’ यही समय मिला

punjabkesari.in Friday, Feb 27, 2015 - 04:15 AM (IST)

(कल्याणी शंकर) क्यो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी गलत कारणों से पहले पृष्ठ की सुर्खियों में हैं? गांधी राजवंश के उत्तराधिकारी ने संसद के महत्वपूर्ण बजट सत्र की पूर्व संध्या पर गायब होने का विकल्प चुनकर एक बार फिर ऐसा किया, जब उनकी पार्टी के सदस्य आशा कर रहे थे कि वह मोदी सरकार पर हमलों का नेतृत्व करेंगे। राहुल गांधी आम तौर पर विदेश जाते हैं और उन्होंने कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को भी मिस किया है। जैसे कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की विदाई पार्टी अथवा पार्टी की 130वीं जयंती आदि। हैरानीजनक बात यह है कि पार्टी ने सार्वजनिक घोषणा की कि उन्होंने आराम करने के लिए  छुट्टी की है।

यदि गांधी आराम के लिए कोई अन्य समय चुनते तो वह इन सभी आलोचनाओं से बच सकते थे।कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने सही कहा है कि यह विचार बुरा नहीं था, पर समय सही नहीं था। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस अचानक आराम के रहस्यको लेकर अपने तमतमाए चेहरों को छिपा नहीं पा रहे।

इस रहस्यमयी विश्राम को लेकर कई विचारधाराएं हैं। पहली यह कि राहुल पार्टी का पूरा नियंत्रण चाहते हैं, जो समझ से परे है। आखिरकार वह गत 10 वर्षों से ‘अध्ययनरत’ हैं। इसका अर्थ यह है कि वह अपनी खुद की टीम बनाना चाहते हैं, यह बात भी समझ में नहीं आती। गांधी इतने शक्तिशाली हैं कि जब भी वह कुछ चाहते हैं, पा लेते हैं। मगर ऐसा नियंत्रण पाने से उन्हें क्या चीज रोक रही है? संभवत: लोकसभा चुनावों में पार्टी की सर्वाधिक घटिया कारगुजारी के कारण वह जहाज का कप्तान बनने से हिचकिचा रहे हैं। पुराने कांग्रेसी अभी भी सोनिया गांधी के नेतृत्व में विश्वास करते हैं, जबकि दिग्विजय जैसे कुछ अन्य राहुल गांधी के पक्ष में हैं।

दूसरी यह कि राहुल गांधी विरोध के रास्ते पर हैं और मुद्दे पर जोर देने के लिए छुट्टी का रास्ता उनका अपना तरीका है। उनकी प्रमुख समस्या पुराने कांग्रेसियों के साथ काम करने की है, जिनमें से कुछ कम्प्यूटर के महारथी नहीं हैं, जबकि गांधी का कार्यालय केवल ई-मेल्स तथा एस.एम.एस. पर चलता है। मगर अपनी दादी इंदिरा गांधी  के विपरीत, जिन्होंने जुंडली से छुटकारा पा लिया था, राहुल में राजनीतिक समझ अथवा अपनी दादी जैसी राजनीतिक परिपक्वता नहीं है। जो भी गांधी परिवार को जानता है, उसे यह भी पता है कि मां-बेटा एक-दूसरे के कितने करीब हैं। दरअसल आलोचक आम तौर पर सोनिया पर यह आरोप लगाते हैं कि राहुल से संबंधित चीजों में वह पार्टी अध्यक्ष से ज्यादा मां की भूमिका में होती हैं। इसलिए जब कुछ कर दिखाने की नौबत आती है, तो सोनिया अपने बेटे का दबाव अपने ऊपर ले लेती हैं।

तीसरी यह कि राहुल सुबक रहे हैं जब से लोकसभा चुनावों में पटखनी मिली और पुराने कांग्रेसियों व नए कांग्रेसियों मेें उठा-पटक शुरू हुई है। लोकसभा चुनावों के दौरान उन्हें दरकिनार कर दिया गया क्योंकि राहुल के पास चुनाव प्रचार के साथ-साथ अधिकतर उम्मीदवारों के चुनाव का जिम्मा था। वास्तव में यह कहना बेवकूफी होगी कि राहुल के पास शक्ति नहीं है अथवा पुराने कांग्रेसी उनके विचारों पर अमल नहीं करते। अधिकतर कार्यों में उनका काम करने का अपना तरीका है। अधिकतर राज्य इकाइयों के अध्यक्ष उनके द्वारा चुने हुए हैं। वह चाहते थे कि लोकसभा चुनावों के दौरान निचले स्तर के प्राथमिक नेता उम्मीदवारों को चुनें, मगर यह असफल रहा। वह युवा कांग्रेस तथा एन.एस.यू.आई. में चुनावों के साथ प्रयोग कर रहे थे, मगर सफल नहीं हुए।

पुराने कांग्रेसियों तथा राहुल की जुंडली के बीच प्रभुत्व की लड़ाई अब चरम पर पहुंच गई है। पुराने कांग्रेसी अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं और बिना लड़े हथियार डालना नहीं चाहते। जहां सोनिया गांधी राहुल की टीम में पुराने तथा नए कांग्रेसियों के मिश्रण की सलाह देती हैं, वहीं युवा गांधी को इससे आपत्ति है।

चौथी यह कि राहुल गांधी को हमेशा एक अनिच्छुक राजनीतिज्ञ के तौर पर देखा जाता है, जो राजनीति छोडऩा चाहते हैं। संभवत: उन्हें एहसास हो गया होगा कि वह 24&7 राजनीतिज्ञ नहीं बन सकते, छुट्टी केवल पार्टी को उनकी निकासी के लिए तैयार करने हेतु है। यह विचारधारा  कुछ अधिक ही बढ़ा-चढ़ा कर कही गई है, क्योंकि उन्हें आत्ममंथन की जरूरत नहीं है, वह केवल अपनी मां को भरोसे में लेकर जा सकते हैं।

पांचवीं यह कि राहुल गांधी की आलोचना से ध्यान हटाने के लिए यह एक सोची-समझी रणनीति है। संभवत: मां-बेटे ने यह निर्णय लिया है कि मुकाबला करने की बजाय पीछे हटना ही बेहतर है और फिलहाल जनता से दूर रहना ही अच्छा होगा। यह बात भी गले नहीं उतरती, क्योंकि राहुल को एक अच्छे सांसद के तौर पर नहीं जाना जाता और यहां तक कि वह नियमित रूप से सदन में नहीं आते।

इनमें से कोई एक या सबका मिश्रण हो सकता है। किसी ने भी संसद के इतिहास में किसी सदस्य को आराम के लिए छुट्टी लेते नहीं सुना। आखिरकार एक सामान्य सांसद के तौर पर भी उनके कुछ कत्र्तव्य हैं और सांसद आम तौर पर छुट्टी पर या अनुपस्थित नहीं होते, जब तक कि वे बीमार न हों अथवा कोई अन्य बाध्यता न हो। सोनिया गांधी ने संभवत: एक मां के तौर पर उन्हें राजनीति में शामिल किया होगा, मगर पार्टी प्रमुख होने के नाते उन्हें एक शानदार पुरानी पार्टी के एक महत्वपूर्ण कार्याधिकारी को ऐसी सुविधा नहीं देनी चाहिए थी।

आंतरिक समस्याएं जो भी हों, कांग्रेस को खोया हुआ विपक्षी दल का स्थान प्राप्त करने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। कांग्रेस का अप्रैल में होने वाला सत्र एक ऐसा अवसर हो सकता है तथा गांधियों को इस मौके को गंवाना नहीं चाहिए। संभवत: छुट्टी के बाद राहुल एक 24&7 व्यावहारिक राजनीतिज्ञ के  तौर पर वापसी  करें और पार्टी की कमान संभालें। पार्टी को नया रूप देने की जरूरत है। क्योंकि हालिया चुनावों में साबित हो गया है कि कांग्रेस की पुराने तरीके की कार्यशैली उन्हें वोट नहीं दिला सकती।

पार्टी को आकांक्षावान वर्ग को साथ लेकर आगे बढऩा होगा और ‘हम शासन करने के लिए जन्मे हैं’ का बर्ताव भी भुलाना होगा। एक बार राहुल लौट आएं, कांग्रेस को भी खुले दिल से आत्ममंथन करना चाहिए।


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