दिल्ली चुनाव परिणाम : राजनीति में ‘नई मानसिकता’ की शुरूआत

punjabkesari.in Saturday, Feb 21, 2015 - 03:55 AM (IST)

(शांता कुमार) दिल्ली चुनाव का परिणाम देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों की करारी हार ही नहीं है, भारतीय राजनीति में एक बहुत बड़ी नई मानसिक सोच की शुरूआत भी है। देश की राजधानी में एक बिल्कुल नई पार्टी द्वारा 2 बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों का इस प्रकार का सफाया एक असाधारण घटना है।  एक तरफ से दूसरी तरफ सब लोगों के दिल में ऐसी एक लहर चली कि मुश्किल से तीन भाग्यशाली विधायक ही बच पाए।

कांग्रेस तो एक परिवार के पिंजरे में कैद है। इतने बड़े देश की इतनी पुरानी और इतनी बड़ी पार्टी एक परिवार से बाहर जाएगी नहीं और इसी कारण अब उसका कोई भविष्य नजर नहीं आता। यदि भाजपा ने ईमानदारी से समीक्षा और आत्म-निरीक्षण किया तो उसके बढ़ते रथ को कोई रोक नहीं सकता और यदि नहीं किया तो यह चुनाव उसके लिए एक खतरनाक चेतावनी सिद्ध होगा।

सच्चाई यह है कि आम गरीब आदमी गरीबी, बेरोजगारी व आर्थिक विषमता की पीड़ा के कारण धैर्य खो चुका है। इसी कारण कुछ इलाकों में कुछ अति गरीब लोगों ने हाथ में बन्दूक लेकर नक्सलवाद का रास्ता चुन लिया है। बड़े-बड़े वायदे करके सरकारें सत्ता में आईं पर सारे वायदे किसी ने पूरे नहीं किए। विकास हुआ पर सामाजिक न्याय नहीं हुआ। एक तरफ अमीरी चमकती रही और झोंपड़ी में गरीबी सिसकती रही।

कांग्रेस तो भ्रष्टाचार में पूरी तरह डूब गई। भाजपा भी सत्ता में आने पर कहीं-कहीं भ्रष्टाचार से समझौता करती रही। मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाला चर्चा में है। भाजपा के सैंकड़ों नेता जेल जा चुके हैं। मैं एक प्रदेश का प्रभारी था। सरकार हमारी थी। एक सरकारी अधिकारी मुसीबत में था।  संबंधित मंत्री से उसका तबादला करने के लिए कहा-उसे कहा गया कि तुम्हारी  सिफारिश तो बहुत बड़ी है परन्तु यह काम 5 लाख से कम नहीं होता, तुम से केवल 2 लाख ही लेंगे। 2 लाख की राशि लेकर उसका तबादला कर दिया गया। सारे तथ्यों की पुष्टि करने के बाद मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष जी के पास गया था और कहा था कि या तो उस मंत्री को तुरन्त हटाएं या मुझे प्रभारी के पद से मुक्त कर दें लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस संबंध में मेरे एक मित्र कहने लगे-जनता अब सब से निराश हो गई है और आजकल यह कहती है -‘‘हम को तो जो भी दोस्त मिले बेवफा मिले।’’

लोकसभा चुनाव में भ्रष्टाचार से दुखी जनता जागी। राष्ट्रीय स्तर पर एक जुझारू उदीयमान नेता नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में विकल्प केवल भाजपा दिखा तो अभूतपूर्व बहुमत दे दिया लेकिन जहां भाजपा के अलावा कोई और विकल्प दिखा वहां उसे भी सहयोग दिया। पंजाब में हमारी सरकार कई आरोपों के घेरे में थी। बहुत कुछ भ्रष्टाचार में डूबा था। वहां नई आप पार्टी को बिना किसी संगठन के 24 प्रतिशत वोट और 4 सीटें दे दीं। हमारे एक राष्ट्रीय नेता हार गए। लोगों के सामने चुनाव बड़े चोर और छोटे चोर के बीच हो गया। मुझे डर है कि कहीं ‘आप’ की अगली सरकार पंजाब में न बने। केन्द्र की सरकार बनते ही बहुत निर्णय, घोषणाएं तथा भाषण होने लगे-हम नेताओं के हाथ में झाड़ू दिया गया, अखबारों में फोटो छपे परन्तु गंदगी वैसे की वैसी रही। नारे उपहास बनने लगे। निराशा और बढ़ी तथा दिल्ली में एक चौंकाने वाली हार हो गई। 

भाजपा कभी जनसंघ के रूप में मूल्यों की राजनीति के लिए जानी जाती थी। ईमानदार समर्पित कार्यकर्त्ता और मूल्यों की राजनीति के कारण ही कुछ न होने पर भी जनता ने इतना समर्थन दिया कि चलते-चलते विश्व की एक बड़ी पार्टी बन गई। मुझे 1951-52 के दिन भी याद हैं। 19 वर्ष की आयु में जब मैं युवा साथियों के साथ कश्मीर आन्दोलन में 8 महीने जेल में रहा था तो हमारी क्या सोच थी। केवल देशभक्ति और समर्पण उस समय के जनसंघ के कार्यकत्र्ता की प्रेरणा थी। 1977 में सत्ता में आने पर भी काफी कुछ संभाल कर रखा था परन्तु धीरे-धीरे ‘सब चलता है’, के नाम पर भ्रष्टाचार से समझौते होने लगे, सहन किए जाने लगे। कहीं-कहीं ईमानदार समॢपत कार्यकर्त्ता पीछे धकेले गए। कुछ न करते हुए आगे बढ़ते दिखने के प्रबंधन में अकुशल नेता पदासीन होने लगे। यह स्थिति अभी तक कम है पर शुरू हो गई है।

एक बार दीन दयाल उपाध्याय जी को पूछा गया कि यदि जनसंघ में भ्रष्टाचार आ जाए तो क्या करेंगे। उत्तर था-कभी आएगा नहीं और यदि आ ही गया तो हम जनसंघ को भंग करके नई पार्टी बनाएंगे। उसके बाद मुझे याद है अटल जी अपने अंदाज में दोनों हाथ उठा कर कहते थे-‘‘है कोई माई का लाल जो मेरी पार्टी के किसी नेता पर उंगली उठाए।’’ भीड़ सहमति में तालियां बजाती रहती थी और अब मैंने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष जी को मंच पर कहते सुना -‘‘दूध के धुले तो हम भी नहीं रहे परन्तु हम बाकियों से अच्छे हैं’’। मैं जनसंघ के समय से पार्टी से जुड़ा हूं। मूल्यों की राजनीति में इस अवमूल्यन को देख कर मन बहुत दुखी होता है। उस समय के वे सब समर्पित कार्यकर्त्ता याद आते हैं जो आज की पार्टी व सत्ता के नींव के पत्थर बन कर चले गए।

दिल्ली के चुनाव ने यह भी संदेश दिया है कि आम गरीब आदमी अपने लिए राहत की बात सुनना चाहता है। झुग्गी-झोंपड़ी के गरीब ने जब प्रधानमंत्री के 10 लाख रुपए के सूट की बात सुनी तो उस पर उसका असर हुआ। जिन लोगों को दो वक्त की सूखी रोटी नहीं मिलती उन्हें प्रधानमंत्री द्वारा 10 लाख रुपए का सूट सचमुच बहुत वेदना दे गया होगा। बधाई देता हूं प्रधानमंत्री जी को कि अब उस सूट की नीलामी कर रहे हैं परन्तु दुख इस बात का है कि सूट की नीलामी से पहले दिल्ली में वोटों की नीलामी हो चुकी है।

‘घर वापसी’ और धार्मिक उन्माद के भाषणों से प्रबुद्ध नागरिकों पर बहुत बुरा असर पड़ा। लोकसभा चुनाव में कई जगह अल्पसंख्यक समुदायों के वोट मिले थे पर दिल्ली में वे पूरी तरह दूर हो गए। प्रबुद्ध समझदार हिन्दुओं को भी ये सारी बातें अच्छी नहीं लगीं। इन तथाकथित हिन्दू नेताओं को एक बात याद रखनी चाहिए कि हिन्दू मानसिक रूप से मतावलम्बी नहीं हैं, आधुनिक भाषा में सैक्युलर है। इस दृष्टि से प्रमुख हिन्दू नेता भाई परमानन्द, वीर सावरकर व स्वामी कृपात्री जी भी हिन्दू राजनीतिक दल बनाने में सफल न हुए। भारतीय जनसंघ में एक व्यापक दृष्टिकोण व उसी को राष्ट्रवाद के नाम पर अपनाया तो देश की राजनीति में एक महाशक्ति बनी। कुछ हिन्दू नेता भाजपा को हिन्दू महासभा बनाना चाहते हैं।

प्रधानमंत्री ने इस संबंध में जो कल कहा यदि वह सब कुछ दिल्ली चुनाव से पहले कहा जाता तो शायद कुछ लाभ होता। मुझे तो घर वापसी की बात बिल्कुल समझ नहीं आई।  मैं उन हिन्दू नेताओं से कहना चाहता हूं कि पहले अपने घर को तो संभालें। पाखंड और कुरीतियां हिन्दू धर्म को लज्जित कर रही हैं।  प्रतिवर्ष हिन्दुओं में लाखों भ्रूण हत्याएं होती हैं। मन्दिर में देवी की पूजा, घरों में कन्या पूजा और नई जन्म लेने वाली कन्या की जन्म लेने से पहले हत्या। यह पाखंड प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।

कई जगह लिंग अनुपात इतना बिगड़ गया है कि विवाह के लिए लड़कियां नहीं मिल रही हैं। कुंवारों की संख्या बढ़ रही है। एक नया धंधा शुरू हो गया है। कुछ प्रदेशों से गरीब घरों की लड़कियां खरीदी जा रही हैं। कई जगह ये लड़कियां कुंवारों को बेची जा रही हैं। कुछ मन्दिरों में आज भी धर्म के नाम पर दलितों को प्रवेश नहीं दिया जाता। सैंकड़ों साल पहले जिन कारणों से अपने ही समाज में करोड़ों लोग मुस्लिम-ईसाई बने उन कारणों को आज भी ठीक नहीं किया जा रहा। केवल तलवार से ही धर्म परिवर्तन नहीं हुआ है। घर सुधर नहीं रहा और घर वापसी करने के लिए हम उतावले हो रहे हैं।

स्वामी विवेकानन्द ने इन सब पाखंडपूर्ण कुरीतियों का विरोध करते हुए यहां तक कहा था कि यदि यही हालत रही तो 100 साल बाद सब पागलखाने पहुंच जाएंगे। आज कई जगह वैसी स्थिति बनती दिख रही है।

आज के हिन्दू नेता यदि स्वामी विवेकानन्द को पढ़ लें तो घर वापसी जैसी व्यर्थ बातें समाप्त हो सकती हैं। शिकागो की धर्मसभा में स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि भगवान के मन्दिर में जाने के लिए कई रास्ते हैं। सभी को अपने-अपने रास्ते से जाने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि भारत के वेदान्त के अनुसार किसी को अपना धर्म बदलने की आवश्यकता नहीं है।

आज से एक सदी पहले गुलाम भारत का 30 वर्ष का एक युवा संन्यासी स्वामी विवेकानन्द शिकागो में भाषण देकर पूरी दुनिया को हिन्दू धर्म समझाने में सफल हुआ था परन्तु आज स्वतंत्र भारत के इतने संगठन और नेता अपने ही देश में हिन्दू धर्म को समझा नहीं पा रहे हैं।  इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इन समझाने वालों को स्वयं ही हिन्दू धर्म का कुछ भी पता नहीं है। हिन्दू धर्म पूजा पद्धति नहीं। उसकी केवल एक पुस्तक नहीं। किसी एक पैगम्बर ने उसको शुरू नहीं किया। हिन्दू धर्म पूजा पद्धति की नदियों का एक महासमुद्र है। इसीलिए भारत ने विश्वभर में सहनशीलता की एक मिसाल कायम की है। उस महासमुद्र को एक छोटी नदी में बदलने का प्रयत्न हिन्दू धर्म की मूल भावना का अपमान है।

भाजपा में आज भी बहुत कुछ सम्भला हुआ है। यद्यपि कुछ-कुछ खिसकने लगा है। आज भी संघ परिवार में चिंता है। समर्पित विचारवान नेता कार्यकर्त्ता हैं। लोकसभा चुनाव की सफलता ऐतिहासिक है एक सुनहरी अवसर है। शायद दोबारा न मिले।  बहुत कुछ किया जा सकता है। साहस व हिम्मत से नेतृत्व समीक्षा करें कुछ कड़े कदम उठाएं। किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार से कहीं भी रत्ती भर भी समझौता न करने का साहसिक निर्णय करें तो ‘परम वैभवमनेतुम एतत्स्वराष्ट्रम्’ का चिर संकल्प पूरा किया जा सकता है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News