नाराज नेता बना सकते हैं ‘भाजपा (वाजपेयी)’ नामक नई पार्टी

punjabkesari.in Sunday, Nov 15, 2015 - 02:15 AM (IST)

(त्रिदीब रमण ): पिछले 16-17 महीनों में मोदीमय हो गई भाजपा के कमल के प्रस्फुटन में अंतहीन सवालों की कडिय़ां अटक गई हैं, मोदी व शाह की आत्मुग्धतापूर्ण रवैये के विरोध में पार्टी के वरिष्ठ नेता एकजुट होकर एक नई पार्टी या मंच के गठन के बारे में गंभीरता से मनन कर रहे हैं। बिहार में भाजपा की ताजा और करारी हार ने इन असंतुष्ट नेताओं के मंसूबों को संजीवनी देने का काम किया है। 

लाल कृष्ण अडवानी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, शांता कुमार, अरुण शौरी, शत्रुघ्न सिन्हा, राम जेठमलानी जैसे पार्टी नेताओं को किंचित इस बात की पीड़ा है कि हाल के वर्षों में मोदी के अभ्युदय के बाद भाजपा अटल जी के आदर्शों से भटक गई है, सो 25 दिसम्बर को अटल जी के जन्मदिन के मौके पर ये नेतागण सामूहिक रूप से एक मंच पर आकर भारतीय जनता पार्टी (वाजपेयी) का गठन कर सकते हैं, अगर किसी राजनीतिक पार्टी के गठन में अड़चनें आईं तो इन बुजुर्ग नेताओं के नवप्रयास किसी मंच की शक्ल में भी सामने आ सकते हैं। 
 
अडवानी से जुड़े एक विश्वस्त सूत्र का दावा है कि बुजुर्ग नेताओं की इस पहल को अंदरखाने से संघ का भी समर्थन प्राप्त है, जो इसे मोदी के ऊपर एक प्रैशर ग्रुप की तरह देख रहा है। मोदी कैम्प की ओर से भी इन रूठे बुजुर्गों को मनाने की कवायद शुरू हो गई है, सूत्र बताते हैं कि इन्हें मनाने का जिम्मा मोदी ने अपने तीन विश्वस्तों जेतली, गडकरी और वेंकैया नायडू को सौंपा है, अनंत कुमार भी अपनी ओर से कुछ पहल करते दिख रहे हैं। पर इस बार नाराज बुजुर्गों को मनाना इतना आसान नहीं होगा।
 
नए साल में भाजपा का नया अध्यक्ष
भाजपा की बुजुर्ग-ब्रिगेड मोदी से कहीं ज्यादा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की कार्पोरेट कार्यशैली से नाराज है, सो उनकी सर्वप्रमुख मांग भी यही है कि अमित शाह को जाना होगा, वहीं फिलवक्त शाह को नरेंद्र मोदी ने अपनी नाक का सवाल बना रखा है, मोदी खेमे का तर्क है कि शाह ने अभी तक तो अपना कार्यकाल शुरू भी नहीं किया है, वह तो पूर्व पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के बचे हुए टर्म को ही अब तलक पूरा कर रहे हैं पर बिहार की ताजा हार ने शाह के सियासी भविष्य पर ग्रहण लगा दिया है। 
 
अब तो संघ भी कहीं न कहीं इस राय को अहमियत देता हुआ दिख रहा है कि शाह के जाने से ही पार्टी में चल रही इस असंतोष की लहर पर ब्रेक लगेगी, नहीं तो पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की दुहाई देकर असंतोष के स्वर आने वाले दिनों में और भी बलवती हो सकते हैं। सनद रहे कि शाह का मौजूदा अध्यक्षीय टर्म दिसम्बर में पूरा हो रहा है, सो दुनिया की इस सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी को उसका नया अध्यक्ष जनवरी 2016 में मिल सकता है। 
 
शाह की जगह कौन ?
अब सवाल उठता है कि अगर अमित शाह की रुख्सती का फरमान जारी होता है तो फिर पार्टी का अगला अध्यक्ष कौन होगा? वैसे भी भाजपा के अंदर यह एक मान्य परम्परा रही है कि उसका सिरमौर संघ ही तय करता आया है। अमित शाह को भी अध्यक्ष बनवाने में संघ करीबी नितिन गडकरी की एक महत्ती भूमिका रही है। सूत्रों की मानें तो इस वक्त संघ के जेहन में बस दो ही नाम चल रहे हैं-राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी। 
 
सूत्र बताते हैं कि बिहार के चुनावी नतीजों के तुरंत बाद जब राजनाथ संघ प्रमुख मोहन भागवत से मिले तो उन्होंने अमित शाह को लेकर अपनी नाराजगी भागवत से दर्ज करा दी, राजनाथ का कहना था कि पार्टी के अधिसंख्यक नेताओं की राय में शाह के साथ काम करना आसान नहीं। 
 
पर अगर शाह को जाना भी पड़ा तो कैम्प मोदी राजनाथ की अध्यक्षीय पारी के लिए शायद ही सहमत हो, ऐसे में नितिन गडकरी एक सर्वमान्य चेहरा बनकर उभर सकते हैं। 
 
पर गडकरी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि गडकरी अपने मंत्रीय अवतार में खुश हैं, न तो वे अपना विभाग छोडऩा चाहते हैं और न ही संगठन की सेवा में जाना चाहते हैं। अगर गडकरी राजी नहीं हुए तो अगला नंबर जे.पी. नड्डा का लग सकता है, पर स्वयं मोदी अगले अध्यक्ष के तौर पर मनोहर पारकर का चुनाव चाहेंगे क्योंकि वे उनके लिए अमित शाह नंबर दो की भूमिका में आसानी से अवतरित हो सकते हैं।
 
हर ओर किशोर का शोर
कभी नरेंद्र मोदी के बेहद करीबियों में शुमार होने वाले व चुनावी रणनीतियां बुनने में माहिर प्रशांत किशोर को मोदी दरबार से बाहर का रास्ता दिखलाने में अमित शाह की एक महत्ती भूमिका मानी जाती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी को तूफानी जीत दिलवाने में प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीतियों का भी कमाल था, सूत्र बताते हैं कि साल 14 की ऐतिहासिक जीत के बाद किशोर अपने लिए कोई पारितोषिक के साथ-साथ यह भी चाहते थे कि मोदी उन्हें नवगठित नीति आयोग में जगह दे दें, तब तक परिदृश्य में शाह की एंट्री हो जाती है और किशोर को मोदी दरबार से धकिया दिया जाता है और वे चोटी खोल चाणक्य की तरह नीतीश कैम्प में इस संकल्प के साथ दाखिल होते हैं कि उन्हें शाह को जमीन दिखानी है और इसमें वे कामयाब भी होते हैं। 
 
बिहार विजय को अमलीजामा पहनाने के बाद सियासी हलकों में प्रशांत किशोर की पूछ बढ़ गई है। इस गुरुवार न सिर्फ वे अरुण शौरी से मिले, अपितु माना जा रहा है कि उनकी गुप्त मुलाकात कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से भी हुई। कहा जाता है कि ममता बनर्जी और नवीन पटनायक जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों ने भी प्रशांत किशोर को मिलने का न्यौता भेजा है। वहीं प्रशांत नीतीश कुमार से पहले ही यह वायदा कर चुके हैं कि आने वाले 2019 के लोकसभा चुनाव में वे नीतीश को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के लिए तमाम रणनीतियां बुनेंगे, वहीं नीतीश की ओर से भी प्रशांत से यह वायदा हुआ है कि वे जद (यू) के कोटे से उन्हें राज्यसभा में भेजेंगे यानी प्रशांत किशोर के अच्छे दिन आ गए हैं।
 
धर्मनिरपेक्षता की भेंट चढ़ता फ्रांस
पैरिस में हुए ताजा आतंकवादी हमलों के बाद फ्रांस के अंदर लगातार इस बड़े सवाल ने मुंह उठाना शुरू कर दिया है। यूरोप के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रों में शुमार होने वाले फ्रांस में कोई 47 लाख मुस्लिमों की आबादी है, जोकि वहां की कुल जनसंख्या का कोई 7.$5 प्रतिशत है। इसी वर्ष जनवरी में पैरिस में हुए शार्ली हेब्दो की घटना के बाद से फ्रांस सरकार लगातार इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ मुहिम चलाने में जुटी है। शार्ली हेब्दो की घटना के बाद फ्रांस की खुफिया एजैंसियों ने वहां की सीनेट को एक रिपोर्ट सौंपी थी, इस रिपोर्ट में यह अंदेशा व्यक्त किया गया था कि हालिया दिनों में तीन हजार से ज्यादा यूरोपियन नौजवान एक जेहादी के तौर पर आई.एस.आई.एस. के साथ जुड़ गए हैं, इनमें से आधे से ज्यादा नौजवान फ्रैंच हैं। 
 
रिपोर्ट में यह भी दावा हुआ है कि आई.एस.आई. एस. इन नौजवानों को सीरिया और ईराक लेकर भी गया था। अकेले फ्रांस में 1570 ऐसे लोग हैं जो फ्रांस सरकार की कड़ी निगरानी में हैं, माना जा रहा है कि इनका कनैक्शन सीरिया के साथ हो सकता है। फ्रांस की खुफिया एजैंसियों को यह भी अंदेशा था कि 200 से ज्यादा फ्रैंच जेहादी आई.एस.आई.एस. की ट्रेनिंग लेकर फ्रांस लौट आए हैं। हालिया दिनों में वहां डेढ़ सौ से ज्यादा कट्टरपंथियों को सलाखों के पीछे डाला गया है। वहां बुर्के पर आंशिक बैन लगाया गया है और वहां की बदली परिस्थितियों में इस्लामिक यूथ के समक्ष नौकरियों का संकट पैदा हो गया है, फ्रांस के कई विश्वविद्यालय उन्हें एडमिशन देने में भी सतर्कता बरत रहे हैं, ताजा आतंकी हमलों के बाद फ्रांस में अपने सैकुलर ताने-बाने से बाहर आने की छटपटाहट साफ देखी जा सकती है।
 
...और अंत में 
समझा जाता है कि भाजपा के असंतुष्ट बुुजुर्गों का सांझा बयान तैयार करने वाले अरुण शौरी ही थे, उन्हें प्रशांत किशोर से मिलने के बाद यह प्रेरणा प्राप्त हुई। वहीं पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को मनाने की कवायद के तहत मोदी के चाणक्य माने जाने वाले अरुण जेतली पहले मुरली मनोहर जोशी और बाद में लाल कृष्ण अडवानी से मिले। हालांकि मुलाकात का बहाना तो इन बुजुर्ग नेताओं को अपनी बेटी के विवाह का आमंत्रण देना था, सनद रहे कि इसी दिसम्बर में जेतली की वकील पुत्री का विवाह उन्हीं के लॉ-फर्म में काम करने वाले उनके एक साथी वकील से तय हुआ है। पर सूत्र बताते हैं अपनी पुत्री के विवाह का कार्ड देने के बहाने जेतली ने इन बुजुर्ग नेताओं के साथ संवाद के द्वार खोल दिए हैं और डैमेज कंट्रोल की बानगी पर इन बुजुर्गों की मांगों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने का आश्वासन भी दे डाला है।       
 

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