पंजाब कांग्रेस तथा सरकार के बीच ‘सब अच्छा नहीं’

punjabkesari.in Friday, Aug 23, 2019 - 01:19 AM (IST)

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह तथा उनके कुछ खासम-खास मंत्री, विधायक तथा अन्य नेता चाहे जितनी मर्जी छाती ठोंक कर यह दावा करें कि पंजाब कांग्रेस तथा सरकार दोनों में सब अच्छा है मगर हकीकत बिल्कुल इसके विपरीत है। इस आंतरिक तथा बाहरी उथल-पुथल का ताजा उदाहरण यह है कि 2 अगस्त को पंजाब विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने से पहले ही मंत्रियों सहित कई नेताओं ने कुछ मुद्दों पर पूछताछ न होने के कारण अपनी सुगबुगाहट दिखाई। परिणामस्वरूप मुख्यमंत्री को एक बैठक में सबकी पीठ पर हाथ फेर कर दुलार करना पड़ा। 

बात फिर भी नहीं बनी। जैसे गीला उपला सुलगता है, वैसे ही यह हालत जारी रही और मुख्यमंत्री ने सत्र की समाप्ति के बाद सब मंत्रियों तथा विधायकों को रात्रि भोज पर बुलाकर भविष्य में सब कुछ ठीक होने का भरोसा दिलाया। बताया जाता है तथा रिपोर्टें गवाह हैं कि इन दोनों बैठकों में अधिकतर खुल कर बोले। मूल मुद्दा यह था कि विधायकों की मंत्री तथा अफसरशाही नहीं सुनती और आगे मंत्रियों की मुख्यमंत्री नहीं सुनते। कुल मिलाकर शुरू से ही अफसरशाही भारी है, जो आज भी है। 

मुख्यमंत्री चाहे मंत्रियों तथा विधायकों को नमक खिलाकर राहत महसूस करते हों, सही मायनों में बात अभी भी नहीं बनी। अब भी पार्टी तथा सरकार दोनों में बौखलाहट जारी है और इसका एक केन्द्र बिन्दू कुछ मंत्रियों व विधायकों द्वारा बादलों के विरुद्ध अढ़ाई-पौने तीन साल बाद भी कोई एक्शन न लेना है, बल्कि पहले बेअदबी कांड के विरुद्ध जस्टिस रणजीत सिंह की रिपोर्ट और फिर बाद में एस.टी.एफ. का गठन करके समय पास किया जा रहा है। दूसरी ओर सुखबीर बादल कैप्टन सरकार को सीधी चुनौती दे रहा है कि उन पर कोई हाथ डाल कर दिखाए। 

बादल तथा नवजोत सिंह सिद्धू 
अब ये सब कुछ हो भी उस समय रहा है जब कैप्टन सरकार के अस्तित्व में आने के समय पंजाब के बहुत से विधायकों तथा कुछ मंत्रियों का मूल एजैंडा यह था कि बादलों को बेअदबी कांड तथा अन्य कई कारनामों के कारण जेल में डाला जाए। इन मंत्रियों में नवजोत सिंह सिद्धू प्रमुख थे। उनकी बादलों के विरुद्ध बयानबाजी कोई नई नहीं बल्कि उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू के बादल सरकार में मुख्य संसदीय सचिव होने की हैसियत के समय से ही थी। कैप्टन को क्योंकि नई-नई सत्ता मिली थी और वह भी 10 वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद, इसलिए तब उन्होंने इस एक्शन के लिए हामी भरी तो जरूर लेकिन कुछ दबी जुबान में। शायद उन्होंने अपने सुखदायी भविष्य का अनुमान लगाया हो। वह यह कि बादलों के साथ यूं ही लड़ाई क्यों मोल लेनी है। पंजाब में गत लम्बे समय से अब तक ‘उत्तर काटो मैं चढ़ां’ के अनुसार एक बार अकाली सत्ताधारी बनते हैं तथा दूसरी बार कांग्रेसी। हालांकि दोनों पक्षों ने सत्ता में रहते एक-दूसरे को जलील करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

कैप्टन ने अपनी पहली सरकार के समय बाप-बेटे प्रकाश सिंह बादल तथा सुखबीर बादल दोनों को जेल में डाल दिया था, वहां से वे बड़े नेता बन कर निकले। जब 2007 में बादल सरकार बनी तो उसने कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को कुछ केसों में ऐसा उलझाया कि मुख्यमंत्री बन कर भी वह अभी तक इससे बाहर नहीं निकल सके। स्पष्ट है कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह अब बादल परिवार के साथ इस तरह की मुश्किल में उलझना नहीं चाहते। मुख्यमंत्री की यही नीति आज बहुत से विधायकों तथा मंत्रियों को अखरती है और वे किसी न किसी बहाने इस मुद्दे को उठा लेते हैं। 

सच तो यह है कि नवजोत सिंह सिद्धू ने इस मुद्दे को लोकसभा में सीधा ही यह कह कर उठा लिया कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह अकालियों के साथ दोस्ताना मैच खेल रहे हैं। एक तो बेअदबी कांड को लेकर रणजीत सिंह की रिपोर्ट से कुछ नहीं निकला और न ही एस.टी.एफ. में से, बल्कि जैसे एस.टी.एफ. के सदस्य आपस में ही उलझ पड़े, उसने बादलों के साथ दोस्ताना मैच के सबूत और पुख्ता कर दिए। बाकी रहती कसर हरसिमरत कौर बादल और सुखबीर बादल, परनीत कौर की चुनावों में विजय ने पूरी कर दी। 

अधिकतर लोगों का मानना है कि एक ओर अकाली महारानी परनीत कौर को पटियाला से जितवाने में मददगार हुए हैं, इसलिए उन्होंने अपना कमजोर उम्मीदवार सुरजीत सिंह रखड़ा खड़ा किया। दूसरी ओर हरसिमरत कौर की टक्कर में भी अपना कमजोर उम्मीदवार विधायक राजा वङ्क्षडग़ खड़ा किया तथा कुछ इसी तरह की हालत फिरोजपुर से सुखबीर बादल को जिताने के लिए की गई। बादल परिवार के दोनों सदस्यों की जीत से बड़ी हैरानी यह है कि यदि ये पंजाब की बाकी सीटों में से एक भी नहीं जीत सके तो ये दो सीटें बड़े अंतर से कैसे जीत गए? यह दलील आम लोगों के मन को भी लगती है कि अकाली दल को इन चुनावों में वोटरों ने बिल्कुल मुंह नहीं लगाया, फिर भी मियां-बीवी बड़ी शान से जीत गए। 

मुख्यमंत्री का बादलों के प्रति नरम रवैया
वास्तव में पार्टी विधायकों तथा मंत्रियों व मुख्यमंत्री के बीच पार्टी और सरकार स्तर पर सब अच्छा न होने के चाहे छोटे-छोटे कई अन्य कारण भी हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री का बादलों के प्रति नरम रवैया रखना है। यह धीरे-धीरे पहले की बजाय अधिक स्पष्ट होने लगा है। कई मंत्री तथा विधायक तो कुछ कारणों से इस मुद्दे की ओर से लगभग कन्नी ही काटने लगे हैं। शायद सुख-सुविधाओं तथा पूछताछ के कारण, लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू ने इसके विरुद्ध पूरी तरह से झंडा उठाए रखा, हालांकि बेगानों ने तो उसे लपेटना ही था, अपनों ने भी, विशेषकर उन लोगों ने भी ऐसा घेरा डाला जो कल तक इस मुद्दे पर उनके साथ खड़े थे। अब मिलजुल कर उसके मंत्रिमंडल से बाहर जाने के लिए रास्ता तैयार कर दिया। आज देखने को चाहे नवजोत सिंह सिद्धू अकेला नजर आता हो, मगर एक बात पक्की है कि केन्द्र में पैर न जमा सकने के बावजूद कांग्रेस हाईकमान उसकी पीठ पर खड़ी है। यह सूरत-ए-हाल निकट भविष्य में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के लिए संकट पैदा कर सकती है। 

अब आम आदमी पार्टी (आप) ने भी कैप्टन तथा बादलों के दोस्ताना मैच का झंडा उठा लिया है। ‘आप’ के एच.एस. फूलका ने तो अपना इस्तीफा ही बेअदबी कांड के कारण दिया है और उन्होंने पंजाब के कई विधायकों को इस्तीफे देने के लिए कहा है। भगवंत मान ने तो कैप्टन को चुनौती दी है कि हालात ऐसे बन रहे हैं कि वह बादलों तथा पंजाब में से किसी एक को चुन लें। कुल मिलाकर इस समय तूफान से पहले वाली शांति बनी हुई है।

दूसरी ओर कैप्टन पहले दिन से ही किस्मत का धनी है। 2017 में जब सरकार बनी तो केन्द्र में तब कांग्रेस का कुछ बोलबाला था, कैप्टन ने 10 वर्ष बाद अकालियों से सत्ता छीनी थी, इसलिए हाईकमान उसकी कुछ शर्तें सहती रही है। अब जब केन्द्र में पार्टी की हालत और पतली हो गई है और कैप्टन ने लोकसभा में 4 के मुकाबले 8 सीटें जीत कर दी हैं तो उसकी और चढ़त हो गई है। हाईकमान फिलहाल उसे बहुत कुछ कहने के मूड में नहीं। हां, कल को यदि नवजोत सिंह सिद्धू ने अमृतसर में रह कर मोर्चा सम्भाल लिया और दूसरे, यदि पार्टी तथा सरकार से असंतुष्ट दर्जन विधायकों ने भी सिद्धू का हाथ थाम लिया तो बीबी राजिन्द्र कौर भट्ठल वाला इतिहास भी दोहराया जा सकता है।-शंगारा सिंह भुल्लर
 


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