महिलाओं-बच्चों के विरुद्ध अपराध के मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए 1023 नई विशेष अदालतें

punjabkesari.in Wednesday, Sep 18, 2019 - 01:42 AM (IST)

सरकार द्वारा महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों में कमी के लाख दावों के बावजूद देश में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध यथावत जारी हैं और इनके थमने के कोई आसार दिखाई नहीं दे रहे। बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वालीे एक एन.जी.ओ. ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ के एक विश्लेषण के अनुसार भारत में गत 10 वर्षों में देश में अवयस्कों के विरुद्ध अपराधों में 500 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है : 

13 सितम्बर को बागपत में एक 24 वर्षीय युवक ने अपनी 3 वर्षीय रिश्ते की बहन से बलात्कार कर डाला। 13 सितम्बर को राजस्थान के बाड़मेर में 3 व्यक्तियों ने एक नाबालिग से सामूहिक बलात्कार किया। 13 सितम्बर को ही लुधियाना के भामिया खुर्द इलाके में एक व्यक्ति घर में सो रही एक श्रमिक की 6 साल की मासूम बेटी को उठाकर ले गया और उससे बलात्कार कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया। 

13 सितम्बर को बंगाल के मिदनापुर में एक मजदूर को अपने पड़ोस में रहने वाली 13 वर्षीय बच्ची से बलात्कार करने के आरोप में पकड़ा गया। 15 सितम्बर को हरियाणा के गुडग़ांव में एक 35 वर्षीय व्यक्ति को कुछ दिन पूर्व अपनी लिव-इन-पार्टनर की बहन को नींद की गोलियां खिलाकर उससे बलात्कार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। 16 सितम्बर को अमृतसर के थाना चाटीविंड के गांव में एक व्यक्ति ने अपनी 8 वर्षीय बेटी से बलात्कार कर डाला।  उक्त मात्र 4 दिनों के उदाहरणों से ही स्पष्टï है कि देश में किस कदर महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध यौन अपराधों का तूफान आया हुआ है और इसी कारण अदालतों में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध विभिन्न अपराधों के लम्बित मामलों की संख्या 1.66 लाख से भी अधिक हो चुकी है। 

इसी को देखते हुए तथा महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध के मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए न्याय मंत्रालय ने देश में 1023 विशेष त्वरित अदालतें (फास्ट ट्रैक अदालतें) गठित करने का निर्णय किया है जिनकी शुरूआत 2 अक्तूबर से कर दी जाएगी। इनमें से 389 अदालतें ‘यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम’ के अंतर्गत दर्ज मामलों की सुनवाई करेंगी जबकि शेष 634 अदालतें बलात्कार के मामलों या पॉक्सो कानून के मामलों की सुनवाई करेंगी। हर विशेष अदालत द्वारा हर तिमाही में 41-42 मामलों के हिसाब से प्रतिवर्ष ऐसे कम से कम 165 मामलों का निपटारा करने की आशा है। देश में विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों को देखते हुए 1023 विशेष अदालतें गठित करने का निर्णय समय की मांग के अनुरूप तथा पूर्णत: उचित है। आवश्यकता इस बात की है कि इन अदालतों को जल्द से जल्द कायम करके वहां मुकद्दमों के फैसलों का काम शुरू कर दिया जाए।—विजय कुमार   


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