BMW, Audi या Mercedes केवल 5-10 लाख में... जानें सेकंड-हैंड बाजार में कैसे होती है इन लग्जरी कारों की सस्ती बिक्री
punjabkesari.in Saturday, Dec 27, 2025 - 12:31 PM (IST)
नेशनल डेस्क : जब सड़क किनारे या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर 5 से 10 लाख रुपये में BMW, Audi या Mercedes जैसी लग्जरी कारें बिकती नजर आती हैं, तो पहली नजर में यह किसी सपने जैसा लगता है। आखिर जिन कारों की नई कीमत कभी 50 लाख से 1 करोड़ रुपये तक रही हो, वे इतनी सस्ती कैसे मिल सकती हैं? सोशल मीडिया पर ऐसी कई रील्स और विज्ञापन देखने को मिलते हैं, जो कम कीमत में लग्जरी कार खरीदने का दावा करते हैं। लेकिन इसके पीछे एक ऐसी सच्चाई छिपी है, जिसे जानना बेहद जरूरी है।
सेकंड हैंड लग्जरी कारों की छुपी कहानी
अक्सर इन कारों को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल होता है कि वे किन हालातों से गुजर चुकी हैं। कई कारें गंभीर एक्सीडेंट का शिकार रह चुकी होती हैं, कुछ का ढांचा कमजोर हो चुका होता है और कुछ में बड़े मैकेनिकल बदलाव किए जा चुके होते हैं। पुरानी कारों का बाजार बाहर से जितना चमकदार दिखता है, अंदर से उतना ही जटिल और जोखिम भरा हो सकता है।
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IDV क्या होती है और क्यों है अहम
हर कार का इंश्योरेंस होता है और इसके साथ तय होती है IDV (Insured Declared Value)। यह कार की वह कीमत होती है, जिसके आधार पर बीमा कंपनी नुकसान की भरपाई करती है। हर साल कार की IDV घटती जाती है। अगर कार का नुकसान IDV के करीब या उससे ज्यादा हो जाए, तो बीमा कंपनी उसे टोटल लॉस घोषित कर देती है और मालिक को पूरी IDV राशि दे देती है।
जब लग्जरी कार एक्सीडेंट में हो जाती है टोटल लॉस
लग्जरी कारों की मरम्मत बेहद महंगी होती है। BMW, Audi या Mercedes जैसे ब्रांड्स के पार्ट्स और रिपेयरिंग का खर्च लाखों में पहुंच जाता है। कई बार एक्सीडेंट के बाद रिपेयर का अनुमान कार की IDV के बराबर या उससे ज्यादा हो जाता है। ऐसे में बीमा कंपनी कार को ठीक कराने की बजाय टोटल लॉस घोषित कर देती है।
टोटल लॉस के बाद कार कहां जाती है?
आम धारणा है कि टोटल लॉस कारें सीधे कबाड़ में चली जाती हैं, लेकिन हकीकत अलग है। बीमा कंपनियां ऐसी कारें खास वेंडर्स को बेच देती हैं। ये वेंडर्स कार को IDV के लगभग 50–60% दाम में खरीद लेते हैं और फिर उसे दोबारा चलने लायक बनाने का काम शुरू होता है।
कैसे दोबारा 'जिंदा' की जाती है कार
वेंडर्स इस्तेमाल किए गए पार्ट्स, रिफर्बिश्ड कंपोनेंट्स और लोकल फैब्रिकेशन के जरिए कार को फिर से खड़ा कर देते हैं। कई बार ऐसी कारें भी सड़क पर दौड़ने लगती हैं, जिन्हें अधिकृत सर्विस सेंटर मरम्मत के लायक नहीं मानते।
फिर होती है यूज्ड कार बाजार में एंट्री
रीबिल्ड होने के बाद ये कारें यूज्ड कार डीलर्स को बेची जाती हैं और वहां से ग्राहकों तक पहुंचती हैं। इस तरह कभी 80 लाख रुपये की कार कुछ सालों में 25–30 लाख या इससे भी कम कीमत पर बिकने लगती है। पुराने मॉडल्स की कीमत तो 5–10 लाख रुपये तक आ जाती है।
सबसे बड़ा खतरा खरीदार के लिए
अक्सर खरीदार को यह जानकारी नहीं दी जाती कि कार कभी टोटल लॉस थी। कागजात, री-रजिस्ट्रेशन और अलग-अलग राज्यों के ट्रांसफर के जरिए कार की पुरानी हिस्ट्री छिपा दी जाती है। बाहर से कार नई जैसी लगती है, लेकिन अंदर से उसकी मजबूती और सुरक्षा पर सवाल रहते हैं।
बाजार में पारदर्शिता की कमी
ऑटो सेक्टर से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि यूज्ड कार बाजार अभी भी काफी हद तक अव्यवस्थित है। गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कारों को कम लागत में ठीक कर बेचना आम बात है, जिससे ग्राहक को बड़ा जोखिम उठाना पड़ता है।
इंश्योरेंस और रिकॉर्ड भी हमेशा सच नहीं बताते
अगर एक्सीडेंट के बाद इंश्योरेंस क्लेम नहीं किया गया या रिकॉर्ड अपडेट नहीं हुआ, तो हादसे की जानकारी सिस्टम में दिखाई ही नहीं देती। ऐसे में खरीदार पूरी सच्चाई जान ही नहीं पाता।
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सेकंड हैंड कार खरीदते समय क्या सावधानी रखें
विशेषज्ञों के मुताबिक, पुरानी कार खरीदते समय कुछ बातों पर खास ध्यान देना चाहिए:
- कार की सर्विस हिस्ट्री जरूर जांचें
- RC, इंश्योरेंस और लोन की स्थिति साफ हो
- किसी FIR या कानूनी मामले की पुष्टि करें
- इंजन और चेसिस नंबर का मिलान करें
- भरोसेमंद और सर्टिफाइड प्लेटफॉर्म से ही खरीदारी करें
