भारतीय सेना में अभी युद्ध सेवाएं देने से वंचित महिलाएं

punjabkesari.in Monday, Feb 10, 2020 - 12:26 AM (IST)

भारतीय सेना 1992 से महिलाओं को बतौर अधिकारी भर्ती कर रही है। फिलहाल 14 लाख सशस्त्र बलों के 65,000 अधिकारियों के कैडर में से थल सेना में 1500, वायुसेना में 1600 और नौसेना में 500 ही महिलाएं हैं परंतु जहां वायुसेना में वे बतौर फाइटर पायलट युद्ध में हिस्सा ले सकती हैं तथा नौसेना में भी उन्हें बतौर नौसैनिक तैनात करने की तैयारी चल रही है, वहीं सेना में महिलाओं की तैनाती केवल ‘नॉन-कॉम्बैट’ अर्थात गैर-युद्ध पदों पर ही की जाती है, जहां वे डॉक्टर, नर्स, इंजीनियर, सिग्नलर, एडमिनिस्ट्रेटर तथा वकील के रूप में अपनी सेवाएं देती हैं। गत वर्ष से उनकी भर्ती सेना पुलिस में भी जवान के तौर पर होने लगी है। 

महिलाओं ने युद्धस्थलों पर सैनिकों का उपचार किया है, विस्फोटकों से निपटी हैं तथा बारूदी सुरंगों को हटाने से लेकर संचार स्थापित करने जैसे कार्य किए हैं। महिला अधिकारियों को सेना में 20 वर्ष की सेवा का स्थायी कमिशन भी दिया जाने लगा है अर्थात वे सभी तरह के कार्य कर रही हैं परंतु उनका युद्ध में भाग लेना मना है। 

गत मास सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से महिलाओं को कॉम्बैट भूमिकाओं में तैनात नहीं करने की सेना की ओर से लगी आधिकारिक पाबंदी को हटाने पर विचार करने को कहा था, परंतु हाल ही में सरकार ने अपने उत्तर में कहा है कि महिलाएं ग्राऊंड कॉम्बैट रोल में सेवा देने के लिए उपयुक्त नहीं हैं क्योंकि सैनिक अभी ‘महिला अफसरों की कमांड को स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं’ और महिलाओं के साथ मातृत्व, बच्चों की देखभाल जैसी चुनौतियां भी हैं। सैन्य इतिहासविद् श्रीनाथ राघवन के अनुसार, ‘‘यह दावा अप्रत्याशित तथा पिछड़ी सोच का प्रतीक है, जो औपनिवेशवादी शासकों की इस सोच से मेल खाता है कि भारतीय सैनिक भारतीय महिला कमांडरों को स्वीकार नहीं करेंगे।’’ 

विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भारतीय सेना में महिलाओं की भागीदारी महज 3.8 प्रतिशत है जो वायुसेना में 13 तथा नौसेना में 6 प्रतिशत है। ‘दिल्ली इंस्टीच्यूट ऑफ पीस एंड कंफ्लिक्ट स्टडीज’ की रिसर्चर आकांक्षा खुल्लर के अनुसार सेना में महिलाओं के लिए दरवाजे खुले तो हैं परंतु बहुत सीमित स्तर पर। हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा में लिंगभेद से जुड़ी सोच बहुत गहरी है जिसकी पैठ उच्च स्तर तक है। सी.डी.एस. जनरल बिपिन रावत के अनुसार मातृत्व अवकाश एक बड़ा मुद्दा है। महिलाओं को अधिक प्राइवेसी तथा सुरक्षा की जरूरत होती है और भारत अभी कॉम्बैट में ‘शहीद महिलाओं के ताबूतों’ को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि महिलाओं को जूनियर सैनिकों की नजरों से ‘बचाने’ की  भी जरूरत है। उनकी इन टिप्पणियों पर काफी हो-हल्ला भी हुआ था। 

गौरतलब है कि जैसे ही इसराईली सेना का गठन हुआ तो उसने महिलाओं को युद्ध में हर तरह की सेवा देने का अधिकार दे दिया था। अमरीका तथा ब्रिटेन जैसे देशों में यह अधिकार काफी कठिनाई से दिया गया था। बेशक, कुदरती रूप से महिलाओं का शारीरिक बल पुरुषों से कम है परंतु जो महिलाएं सभी प्रशिक्षणों में खरी उतर सकें, उन्हें इससे वंचित रखना कहां तक उचित है? अब समय है कि महिलाओं को सेना में पुरुषों के समान ही हर भूमिका में सेवाएं देने के अवसर दिए जाएं, जहां वे अन्य क्षेत्रों की ही तरह अपने गुणों तथा प्रतिभा के बल पर स्वयं को साबित कर सकें।


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