SC ने सरकार से जवाब मांगा जेलों में कैदियों पर खर्च होने वाली रकमों में भारी अंतर क्यों

punjabkesari.in Thursday, Feb 23, 2017 - 12:29 AM (IST)

भारत में 1400 से अधिक जेलें होने के बावजूद वहां अपराधियों की लगातार बढ़ रही भीड़ को संभालना कठिन हो रहा है। इनमें लगभग 3,66,781 कैदियों की क्षमता है जबकि वहां 4,19,623 से अधिक कैदी रह रहे हैं। 

‘प्रिजन स्टेटिस्टिक्स ऑफ इंडिया’ के अनुसार 2010 से 2015 के बीच 5 वर्षों में जेलों में सजा काटने वाले कैदियों पर खर्च 50 प्रतिशत बढ़ गया है परंतु कैदियों पर खर्च की एक समान राष्ट्रीय नीति न होने के कारण विभिन्न जेलों में कैदियों पर खर्च की जाने वाली राशियों में भारी अंतर है। उदाहरण स्वरूप बिहार में एक कैदी पर प्रति वर्ष 83,000 रुपए, नागालैंड में  65,468, पंजाब में 16,669 और राजस्थान में मात्र 3000 रुपए ही खर्च किए जाते हैं जिस पर सुप्रीमकोर्ट ने घोर आश्चर्य व्यक्त किया है। 

जेलों में कैदियों की अमानवीय स्थिति पर एक केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश एम.बी. लोकुर ने गृह मंत्रालय को देश की जेलों के हिसाब-किताब की जांच व ‘कैग’ की मदद से 31 मार्च तक हिसाब-किताब की पड़ताल का ‘माड्यूल’ तैयार करने को कहा है। सुप्रीमकोर्ट ने यह भी कहा है कि ‘‘यह जानना जरूरी है कि जेल प्रशासन कैदियों पर खर्च बुद्धिमतापूर्वक कर रहा है या नहीं।’’ 

प्रत्येक राज्य को इस बारे उठाए पग की सूचना गृह मंत्रालय को देने, गृह मंत्रालय को जेल स्टाफ का ट्रेङ्क्षनग मैनुअल तैयार करने और रिफ्रैशर कोर्स शुरू करने के आदेश भी दिए गए हैं। आज भारतीय जेलें कैदियों की अधिक भीड़, स्टाफ की कमी और लापरवाही, बुनियादी ढांचे के अभाव और जेल स्टाफ तथा दुर्दांत कैदियों की मिलीभगत से सुधार घर की बजाय अपराध घर बन कर रह गई हैं। इसे देखते हुए सुप्रीमकोर्ट द्वारा गृह मंत्रालय को जेलों में कैदियों पर खर्च की पड़ताल करवाने के आदेश से जेलों में कैदियों की देखभाल संबंधी त्रुटियों को दूर करने में मदद मिलेगी, परंतु इतना ही काफी नहीं। 

जेलों में स्टाफ एवं बुनियादी ढांचे की कमी दूर करने, सुरक्षा प्रबंध मजबूत करने, कैदियों और स्टाफ का गठबंधन तोडऩे व जेलों में कैदियों की भीड़ घटाने के लिए नई जेलें बनाने की भी आवश्यकता है।    


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