सुरक्षा बलों के लिए ‘मौत का जाल’ बना जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग

punjabkesari.in Friday, Jul 01, 2016 - 12:07 AM (IST)

गत 25 जून को जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पाम्पोर इलाके में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सी.आर.पी.एफ.) के काफिले पर फिदायीन हमले की घटना के बाद ‘जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग 1-ए’ चर्चा में है। कश्मीर घाटी को जम्मू से जोडऩे वाला यह 300 किलोमीटर लम्बा राजमार्ग यहां से गुजरने वाले सुरक्षा बलों के वाहनों आदि पर आतंकवादियों द्वारा एक ही तरीके से किए गए अनेक हमलों का साक्षी है।

वैसे तो यह सारा राजमार्ग ही आतंकवादियों के निशाने पर आया हुआ है परंतु बीजबहेड़ा से दक्षिण कश्मीर में पाम्पोर तक की 35 कि.मी. लम्बी पट्टïी हमारे सुरक्षा बलों के लिए भारी सिरदर्द सिद्ध हो रही है। मात्र पिछले 7 महीनों में आतंकवादी इस 35 कि.मी. क्षेत्र में हमारे सुरक्षा बलों पर कम से कम 5 बार हमला करके हमारे एक दर्जन से अधिक लोगों को शहीद कर चुके हैं जो निम्र में दर्ज हैं

दिसम्बर, 2015 में राज्य पुलिस के 2 अधिकारी घायल किए। फरवरी, 2016 को 2 सी.आर.पी.एफ. के सदस्य मारे गए। 08 अप्रैल को सेना वाहन पर हमले में 2 सिविलियन मारे गए। 03 जून को बी.एस.एफ. पर हमले में 3 सुरक्षा कर्मी मारे गए। 25 जून को पाम्पोर में सी.आर.पी.एफ. के काफिले में आतंकी हमले में सी.आर.पी.एफ. के 8 सदस्य शहीद हुए। पाम्पोर के बाहरी इलाके में हुआ यह आतंकी हमला हाल ही के वर्षों में सबसे बड़ा आतंकी हमला था।

इस संबंध में एक वरिष्ठï पुलिस अधिकारी का कहना है कि दिसम्बर 2015 के बाद  हुए अनेक हमलों के बावजूद इस संवेदनशील पट्टïी पर सुरक्षा बलों में नाममात्र वृद्धि ही की गई है। सी.आर.पी.एफ. के इंस्पैक्टर जनरल नलिन प्रभात के अनुसार यह 35 कि.मी. लम्बी पट्टïी ‘मौत का जाल’ सिद्ध हो रही है,‘‘यहां राष्ट्रीय राजमार्ग, झेलम नदी और रेलवे ट्रैक एक-दूसरे को काटते हैं जिस कारण यहां आतंकवादियों के लिए सुरक्षा बलों को निशाना बनाना आसान है। इसके अलावा इस इलाके की स्थिति भी इस तरह के हमलों के लिए अनुकूल है।’’

‘‘बीजबहेड़ा व पाम्पोर के बीच सड़क के दोनों ओर अनेक ‘ओवर ग्राऊंड वर्कर्स’ (ओ.जी.वी., यानी आतंकवादियों के हमदर्दों के अर्थ में) हैं जो ऐेसे हमलों के समय आतंकियों की सहायता करते हैं।’’ इस राजमार्ग के आसपास के क्षेत्रों में लश्कर ने ऐसे समूहों का अच्छा नैटवर्क बना रखा है जो आतंकवादियों को सुरक्षा बलों की गतिविधियों की सूचना दे देते हैं। यहां ‘हिज्ब’ भी मौजूद है परंतु लश्कर अधिक सशक्त है।

कहा जाता है कि गत 25 जून के हमले में भी  दो पाकिस्तानी आतंकवादियों ने इन ‘ओ.जी.वी.’ की सहायता से ही हमला किया था। अत: भारत को इन ‘ओ.जी.वी.’ के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करनी होगी। उच्च पुलिस अधिकारियों का यह भी कहना है कि आतंकवादी घनी आबादी वाले इलाकों और इस पट्टïी पर ‘फोर लेङ्क्षनग’ का काम चलने के कारण यहां से गुजरने वाले सुरक्षा वाहनों की धीमी गति का भी लाभ उठाते हैं।

‘‘सुरक्षा बलों के किसी काफिले पर हमला करने के बाद पाकिस्तानी आतंकवादी उनके प्रति हमदर्दी रखने वालों की सहायता से बीजबहेड़ा और पाम्पोर के घनी आबादी वाले इलाकों में जा छुपते हैं।’’ ‘‘यही नहीं, किसी सुरक्षा काफिले पर हमला करने के बाद आतंकवादी यह अपेक्षा करते हैं कि इससे भारतीय जवान भड़क उठें और उनकी जवाबी गोलाबारी से निर्दोष लोग मारे जाएं। अत: सिविलियन इलाका होने के कारण हम आंख मूंद कर अंधाधुंध गोलीबारी नहीं कर सकते।’’

उकसाहट में आकर अंधाधुंध फायरिंग न करने की भारतीय नीति तो सही है पर आतंकी हमलों को रोकना भी उतना ही जरूरी है जिसके लिए हमारे रणनीति निर्धारकों को गंभीर ङ्क्षचतन-मनन करने की आवश्यकता है। ऐसा भारत में घुसने के आतंकवादियों के चोर रास्तों को प्रभावशाली ढंग से बंद करने, सघन पड़ताल द्वारा भारतीय क्षेत्र में मौजूद उनके हमदर्दों का पता लगा कर उनका नैटवर्क नष्टï करने, सुरक्षा बलों की संख्या अधिकतम बढ़ा कर उन्हें अत्याधुनिक हथियारों, बुलेट प्रूफ जैकटों, बख्तरबंद गाडिय़ों से लैस करने के साथ-साथ अपनी गुप्तचर प्रणाली को मजबूत करने और उसकी सूचनाओं पर गंभीरतापूर्वक अमल सुनिश्चित करने से ही संभव है।
   —विजय कुमार 

सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News