साम्प्रदायिक एकता की मिसाल पेश कर रहीं रामलीलाएं

punjabkesari.in Sunday, Oct 02, 2022 - 02:58 AM (IST)

विजय दशमी पर्व से पूर्व देश में शारदीय नवरात्र आरंभ होते ही रामलीलाओं के आयोजन शुरू हो जाते हैं, जिनमें सभी समुदायों के लोग उत्साहपूर्वक बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं। इन दिनों देश भर में खेली जा रही रामलीलाओं में भाग लेकर सभी धर्मों के कलाकार रामायण के विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से धार्मिक सौहार्द और भाईचारे का संदेश दे रहे हैं जिनका मानना है कि ‘‘प्रेम, दया, क्षमा, भाईचारा और मानव कल्याण, माता-पिता के आदेश का पालन आदि आदर्शों को अपना कर ही मानव और समाज का कल्याण हो सकता है।’’ 

* लखनऊ में ‘बख्शी का तालाब’ (बी.के.टी.) में लगभग 48 वर्षों से आयोजित होने वाली रामलीला में सभी मुख्य किरदार मुस्लिम कलाकार निभाते हैं। इस वर्ष अयोध्या में आयोजित रामलीला में बालीवुड अभिनेता रजा मुराद को ऋषि विश्वामित्र की भूमिका सौंपी गई है। सांसद एवं भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता मनोज तिवारी इस रामलीला में भगवान परशुराम तथा दिनेश लाल उर्फ ‘निरहुआ’ लक्ष्मण जी की भूमिका में हैं। अभिनेत्री शीबा खान इसी रामलीला में रावण की पत्नी मंदोदरी की भूमिका निभा चुकी हैं। 
* कुरुक्षेत्र में ‘लक्ष्मी रामलीला ड्रामाटिक क्लब’ द्वारा आयोजित राम लीला में गत 50 वर्षों से सिख समुदाय से सम्बन्धित कुलवंत सिंह भट्टी राम भक्त हनुमान की भूमिका निभाते आ रहे हैं जबकि अब पिछले कुछ समय से उनका पुत्र साहब सिंह भट्टी हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज की भूमिका निभाता है। 
* मिर्जापुर जिले के देवपुरा में ‘आदर्श रामलीला समिति’ के तत्वावधान में आयोजित की जाने वाली रामलीला में गांव के अनेक मुस्लिम भाईचारे के सदस्य विभिन्न भूमिकाएं निभाते हैं। 
* दिल्ली में द्वारका की ‘श्री रामलीला सोसायटी’ द्वारा आयोजित रामलीला में रंगमंच के कलाकार साहिल हुसैन मिथिला नरेश राजा जनक की भूमिका में हैं। वह इसमें राजा दशरथ के मंत्री सुमंत और रावण के छोटे भाई विभीषण की भूमिकाएं भी निभा चुके हैं।

ये तो चंद उदाहरण मात्र हैं, ऐसे कलाकारों की सूची काफी लम्बी है। यही नहीं मुस्लिम भाईचारे के सदस्य कलाकारों की रूपसज्जा, परिधान एवं पुतलों के निर्माण तथा गीत-संगीत आदि में भी भरपूर सहयोग देते हैं। वास्तव में राम लीला के आयोजकों द्वारा भगवान श्री राम जी के बाल्यकाल से लेकर युवा-दशरथ द्वारा अनजाने में श्रवण कुमार के वध, सीता स्वयंवर, वनवास, सीता जी का हरण, हनुमान जी द्वारा लंका दहन, लंका पर श्री राम द्वारा चढ़ाई तथा कुम्भकर्ण, मेघनाद आदि के वध के साथ अंतिम दिन रावण वध के प्रसंग को प्रस्तुत किया जाता है।

हर आयु वर्ग के लोग रामलीला के कार्यक्रम देखने उत्साह से आते हैं। मुझे भी हाल ही में जालंधर में विभिन्न क्लबों की ओर से आयोजित रामलीलाओं को देखने का अवसर मिला। इनमें से एक क्लब के कलाकारों द्वारा मंचित रामलीला में राजा दशरथ द्वारा अनजाने में श्रवण कुमार वध का भावपूर्ण दृश्य और उसके माता-पिता का विलाप, जो कह रहे थे कि अब उन्हें पानी कौन पिलाएगा और पुत्र शोक में करुण क्रंदन करते हुए प्राण त्यागते देख मन द्रवित हो उठा। बदलते समय के साथ-साथ रामलीलाओं की पेशकारी में भी विस्तार हो रहा है तथा इनमें आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से ये पहले से अधिक आकर्षक और तकनीकी दृष्टि से उन्नत हो गई हैं।

देश के गौरवशाली अतीत की जानकारी देने के साथ ही रामलीलाएं बड़ी संख्या में इनके साथ जुड़े विभिन्न व्यवसायों के लोगों की आजीविका का साधन भी बन गई हैं। यहां तक कि रामलीला आयोजन स्थलों के आसपास लगने वाली रेहडिय़ों आदि वाले भी विभिन्न वस्तुएं बेच कर अपनी रोजी-रोटी का प्रबंध कर लेते हैं। इन रामलीलाओं ने बड़ी संख्या में देश को कलाकार, लेखक, निर्देशक और तकनीशियन भी दिए हैं। इससे स्पष्ट है कि विश्व भर में रामलीलाओं के आयोजक लोगों को भगवान श्री राम की लीलाओं से परिचित कराने के साथ ही कला और संस्कृति की भी सेवा कर रहे हैैं।

हम आशा करते हैं कि जब तक हमारे देश में रामलीलाओं का मंचन होता रहेगा, तब तक विभाजनकारी शक्तियां हमारे भाईचारे के पारंपरिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने में सफल नहीं हो सकेंगी। भाईचारे के बंधन मजबूत होते रहेंगे और सदा ही असत्य पर सत्य की और दुर्भावना पर सद्भावना की विजय होती रहेगी।-विजय कुमार


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