पाकिस्तान की तुलना में ‘भारत को चीन से अधिक खतरा’

punjabkesari.in Saturday, Jul 30, 2016 - 01:30 AM (IST)

‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा लगाने के बावजूद चीनी नेता शुरू से ही भारत पर टेढ़ी नजर रखते आए हैं। चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण करके हमारी 60 हजार वर्ग मील भूमि पर कब्जा कर रखा है और वह हमारे अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा जताता रहता है। दोनों देशों के बीच बेनतीजा बातचीत के अभी तक डेढ़ दर्जन के लगभग दौर हो चुके हैं।

 
हालांकि 2005 से ही दोनों देशों में सभी क्षेत्रों में विवाद समाप्त करने के लिए समझौता भी हो चुका है परन्तु भारत के प्रति बीजिंग की हठधर्मी और कुटिलता में कोई बदलाव नहीं आया। इसी को देखते हुए सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान की तुलना में भारत को चीन से अधिक खतरा है।
 
भारत को घेरने के लिए उसने 2008 में ही लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) के दूसरी ओर सैनिक चौकियां बनानी शुरू कर दी थीं और एल.ए.सी. के अंतिम छोर तक पक्की सड़कें भी वह बना चुका है। 
 
पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) में विकास गतिविधियों के नाम पर चीन अपनी पकड़ मजबूत बना रहा है। वहां झेलम व नीलम नदियों के किनारे केसरिया टैंट और मंडारिन भाषा में लगे दिशा सूचक बोर्ड इस बात का संकेत देते हैं कि वह पी.ओ.के. पर काफी हद तक अपना नियंत्रण स्थापित कर चुका है। 
 
‘न्यूयार्क टाइम्स’ के अनुसार पी.ओ.के. में कम से कम 15,000 चीनी सैनिक मौजूद हैं। चीन ने पाकिस्तान के गवादर में एक बड़ी नौसैनिक बंदरगाह के अलावा एल.ए.सी. के पार 2 मिसाइल भंडार भी बना लिए हैं।
 
भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के नाम पर अपने सस्ते और घटिया सामान से भारतीय बाजारों को पाट कर उसने हमारे छोटे और मध्यम उद्योगों को तबाह करने के लिए भी कमर कस रखी है जिस कारण सैंकड़ों भारतीय छोटे उद्योग बंद हो चुके हैं। भारत-चीन व्यापार का पलड़ा चीन के पक्ष में झुका होने से भारत की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है। 
 
सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिन विदेशी हस्तियों को सबसे पहले भारत निमंत्रित किया उनमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शामिल थे जो अपनी पत्नी के साथ सितम्बर, 2014 में भारत यात्रा पर आए।
 
इस दौरान श्री नरेन्द्र मोदी ने विशेष रूप से उनका आतिथ्य किया और उन्हें महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में भी लेकर गए। मई, 2015 में स्वयं श्री मोदी बीजिंग यात्रा पर गए और वहां भी चीनी नेताओं के साथ उनकी बातचीत को अत्यंत फलदायक बताया गया। 
 
इस तरह एक ओर भारतीय नेता चीनी नेताओं से संबंध सुधारने में जुटे रहे और दूसरी ओर चीनी नेता पर्दे के पीछे भारत को पटखनी देने में। चीन ने इस वर्ष इसका पहला उदाहरण संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध समिति में पाक आतंकी जकीउर रहमान लखवी को संरक्षण देने और जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने की भारत की कोशिश को नाकाम करके दिया।
यही नहीं चीन ने भारत की एन.एस.जी. सदस्यता प्राप्त करने की कोशिशों को भी नाकाम किया और अभी कुछ ही दिन पहले पी.ओ.के. के साथ लगी अपनी सीमा पर पाकिस्तानी सैनिकों के साथ सांझा सैनिक अभ्यास भी किया। 
 
 बातचीत का ढोंग रचने के साथ-साथ पर्दे के पीछे भारत की पीठ में छुरा घोंपने की नीति के अंतर्गत चीनी सेना लगातार भारतीय सीमाओं का अतिक्रमण करके भारतीय सरजमीं पर अपना अधिकार जता रही है।
 
अप्रैल, 2013 में चीनी सैनिक देपसांग घाटी में भारतीय सीमा में 25 कि.मी. अंदर तक घुस आए और वहां तम्बू तान कर एक चौकी बना कर एक बोर्ड पर लिख दिया  ‘‘यह चीन का इलाका है और आप चीन में हैं।’’
 
यह सिलसिला आज भी जारी है और इसका नवीनतम उदाहरण चीन ने 19 जुलाई को उत्तराखंड में चमौली जिले के बाराहोती में घुसपैठ करके दिया।  लोकसभा में विपक्ष द्वारा यह मामला उठाने पर रक्षा मंत्री मनोहर पाॢरकर ने बताया कि इसके संबंध में चीनी उच्चाधिकारियों के समक्ष आपत्ति दर्ज करवाई जा चुकी है तथा वर्ष में ऐसी 400-500 घटनाएं होती रहती हैं। 
 
कुल मिलाकर चीन द्वारा सीमा के पार अपनी सेनाएं लाने, भारत में सस्ता माल बेच कर भारतीय उद्योग-व्यवसाय को तबाह करने और बार-बार सीमा का अतिक्रमण करके भारत को उकसाने जैसी कोशिशों से स्पष्ट है कि चीनी नेताओं के इरादे ठीक नहीं तथा पाकिस्तान की तुलना में भारत को चीन से ही अधिक खतरा है।  

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