तमिलनाडु विधानसभा में हिंसा ने दिलाई एम.जी.आर. की पत्नी के शपथ ग्रहण की याद

punjabkesari.in Sunday, Feb 19, 2017 - 10:44 PM (IST)

कहावत है कि इतिहास खुद को दोहराता है परंतु जरूरी नहीं है कि उसकी मात्रा तथा तरीका पहले जैसा ही हो। शनिवार को तमिलनाडु विधानसभा में जो कुछ हुआ उसकी तुलना उसी से की जा सकती है जो जयललिता तथा उनका साथ दे रहे 33 विधायकों ने एम.जी.आर. (तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. एम.जी. रामचंद्रन) की पत्नी जानकी रामचंद्रन द्वारा सदन में बहुमत साबित करने का प्रयास करने पर किया था।

पहले यह समझना जरूरी है कि शनिवार 18 फरवरी, 2017 को विधानसभा में क्या हुआ।अन्नाद्रमुक के पलानीसामी तथा शशिकला धड़े के लोग सदन के पटल पर बहुमत साबित करने और अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए खड़े हुए तो द्रमुक के सदस्य अपने नेता एम.के. स्टालिन के नेतृत्व में न केवल स्पीकर पर कागज फैंकने लगे, उन्होंने उनके साथ धक्का-मुक्की की और उनकी कमीज भी फाड़ डाली।

इसके बाद द्रमुक के इन सदस्यों ने विधानसभा की सुरक्षा में तैनात मार्शलों के साथ भी धक्का-मुक्की की, उन पर हाथ उठाया और फिर वे सब सदन में फर्श पर बैठ गए। पुलिस को बुला कर स्टालिन तथा उनके समर्थकों को विधानसभा से निकाल कर उनकी कारों तक ले जाया गया। 3 बजे तक सदन को 2 बार स्थगित करने के बाद स्पीकर ने पलानीसामी के नेतृत्व वाले शशिकला धड़े को सदन में बहुमत साबित करने के लिए आमंत्रित किया और तब जाकर बहुमत साबित करके पलानीसामी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बन सके।

इसी प्रकार जब 28 जनवरी, 1988 को जानकी रामचंद्रन की सरकार के बहुमत प्रस्ताव को वोटिंग के लिए सदन में पेश किया गया था तो वहां अप्रत्याशित हिंसाशुरू हो गई थी। जयललिता ने अन्नाद्रमुक  के अपने 30 विधायकों को इंदौर के एक होटल में रखा। बहुमत साबित करने वाले दिन जैसे ही ए.आई.डी.एम.के. विधायक  विधानसभा में दाखिल हुए तत्कालीन स्पीकर पांडिया ने उन्हें सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया।

इसी के साथ वहां हिंसा शुरू हो गई जिस दौरान सदस्यों ने एक-दूसरे पर माइक और पेपरवेट फैंकने शुरू कर दिए। जब कोई चीज स्पीकर के पास आकर गिरी तो वह बगैर कोई घोषणा किए अपने चैम्बर में लौट गए। तब पहली बार स्टील के हैल्मेट पहने पुलिस वालों ने सदन में प्रवेश करके सदस्यों पर लाठी चार्ज कर दिया।

पूर्व नियोजित ङ्क्षहसा का उस समय जो उद्देश्य था और वही अब भी था। क्या इसका उद्देश्य मात्र उसी प्रकार नए सिरे से चुनाव करवाना है जिस प्रकार जानकी को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाए जाने के बावजूद सदन में ङ्क्षहसा के बाद राज्यपाल ने नए चुनावों के लिए सदन को भंग कर दिया था?एम.के. स्टालिन को इस सारे घटनाक्रम के बीच चर्चा में आने और राज्य को नए चुनावों में धकेलने का एक अवसर दिखाई दे रहा है परंतु यह दुख की बात है कि उनके इस खेल ने महाबलीपुरम के एक रिसोर्ट में शशिकला द्वारा विधायकों को कैदियों की तरह रखने के विरुद्ध उपजे जन आक्रोश को नेपथ्य में धकेल दिया है।

परंतु इस बार इलैक्ट्रानिक तथा सोशल मीडिया के चलते जनमत अधिक मुखर है। कुछ विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं ने तो अपने विधायकों को चेतावनी तक दे डाली है कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र से दूर ही रहें। स्टालिन और उसके विधायकों के विरुद्ध भी जन आक्रोश भड़का हुआ है कि आखिर कानून के बनाने वाले लोग किस प्रकार कानून को तोडऩे वाले बन जाते हैं।

ऐसे कौन से कानून बनाए जाएं कि जनप्रतिनिधि मर्यादित व्यवहार करें? क्या विधायक को वापस अपने निर्वाचन क्षेत्र में जाकर अपने मतदाताओं से किसी संवैधानिक संकट के मामले में फतवा लेना चाहिए या मत संग्रह जैसी कोई प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए? नि:संदेह इससे राजस्व पर बोझ पड़ेगा लेकिन यह प्रक्रिया नए सिरे से चुनाव करवाने की तुलना में सस्ती पड़ेगी।

इसके अतिरिक्त यह भी विचारणीय है कि इस प्रकार के अवसरों पर सदन की कार्रवाई की लाइव कवरेज और प्रैस द्वारा कवरेज क्यों नहीं की गई जबकि इसके सर्वथा विपरीत मौजूदा मामले में शनिवार को मीडिया को ऑडियो के बगैर केवल संपादित विजुअल ही दिए गए। 
क्या विश्वास मत के लिए गुप्त मतदान के लिए अनुमति नहीं होनी चाहिए? तमिलनाडु 80.33 प्रतिशत साक्षर है और महाराष्ट्र के बाद दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला राज्य है लेकिन इसकी राजनीति अब भी व्यक्ति पूजा के गिर्द ही घूमती है।


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