भारतीय अर्थव्यवस्था 4 की बजाय 2 पहियों पर चल रही

punjabkesari.in Sunday, Jul 23, 2023 - 04:40 AM (IST)

भारतीय रिजर्व बैंक का अधिकृत पत्र मूल्य स्थिरता के बारे में है, हालांकि यह सतत् विकास के उद्देश्य के लिए अपने अधिकृत पत्र को अपनाने में अन्य केंद्रीय बैंकों में शामिल हो गया है। इसलिए यह तब मददगार साबित होता है जब आर.बी.आई. अर्थव्यवस्था के विकास के लिए एक रास्ता तैयार करता है। एक ऐसा रास्ता जो राजनीतिक लक्ष्यों पर केंद्रित मौजूदा सरकार द्वारा अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। 

उपलब्ध सभी जानकारी वैश्विक अर्थव्यवस्था और भारत में धीमी वृद्धि के दौर की ओर इशारा करती है। अर्थव्यवस्था की स्थिति पर आर.बी.आई. के बुलेटिन (1 जुलाई 2023) निबंध में वैश्विक अर्थव्यवस्था का जिक्र करते हुए स्वीकार किया गया है कि, ‘‘वैश्विक विकास की गति रुकी हुई प्रतीत होती है, विशेष रूप से विर्निर्माण निवेश तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर भी इसका असर दिखाई दे रहा है। मजबूत औद्योगिक तथा व्यापार नीतियों के माध्यम से आपूर्ति शृंखलाओं की पुन: इंजीनियरिंग दिखाई पड़ती है। एक बार फिर से दुनिया के घटक अलग-अलग राह पर चल पड़े हैं।’’ 

भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुलेटिन प्रगति और उपलब्धियों को सूचीबद्ध करता है जिसमें उन्नत बुनियादी ढांचा, डिजिटलीकरण, सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता, सेवाओं का निर्यात, अनुकूल जनसांख्यिकी, उत्साही बाजार इत्यादि शामिल है। प्रत्येक शीर्षक के तहत कुछ दावे सही हैं। बुलेटिन में आर्थिक गतिविधियों में क्रमिक नर्मी, उच्च बेरोजगारी दर, मनरेगा के तहत काम की मांग में बढ़ौतरी, विनिर्माण निर्यात में संकुचन, राजस्व खर्च में संकुचन, शुद्ध कर संग्रह में गिरावट, सी.पी.आई. (और खाद्य) मुद्रास्फीति में वृद्धि, घरेलू बांड और कार्पोरेट बांड पैदावार में वृद्धि और मुद्रास्फीति के खिलाफ अंतहीन लड़ाई को भी नोट किया गया है। 

हमेशा प्लस और माइनस होते हैं। मिश्रित तस्वीर के बावजूद भारत की जी.डी.पी. (स्थिर कीमतों पर) ने 2004-2009 की 5 साल की अवधि के दौरान 8.5 प्रतिशत और 2004 से लेकर 2014 की 10 साल की अवधि के दौरान 7.5 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर हासिल की। इसके विपरीत 9 वर्ष की अवधि (2014-2023) में प्रति वर्ष औसत विकास दर 5.7 प्रतिशत रही है। औसत विकास दर में आखिर गिरावट क्यों आई है? उदारीकरण और बाजारोन्मुख नीतियों के शुरूआती वर्षों में विकास दर को बढ़ावा मिलता है। वैश्विक वित्तीय संकट और महामारी से निपटने के लिए अमरीका और यूरोप में अपनाई गई अपरम्परागत मौद्रिक नीतियों का लाभ भारत जैसे विकासशील देशों को मिल रहा है। हालांकि सामान्य समय में संरचनात्मक कमियों और दूर करने के उपायों पर ध्यान दिया जाना ही उच्च आर्थिक विकास सुनिश्चित करेगा। मेरे विचार से वर्तमान सरकार ने अर्थव्यवस्था की कुछ बुनियादी कमजोरियों को नजरअंदाज किया है जिनमें से 4 निम्रलिखित हैं: 

स्टैंडर्ड    बच्चे जो स्टैंडर्ड ||       मूल गणित का              अंग्रेजी शब्दों को
  का स्तर (प्रतिशत)               पाठ पढ़ सकते हैं            पढऩा (प्रतिशत) 

|||     20.5                           25.9                           n.a

V      42.8                          25.6                           24.5 

V|||   69.6                          44.7                           46.7

 

कम श्रम भागीदारी दर और उच्च बेरोजगारी :भारत की कामकाजी उम्र की आबादी (15 वर्ष और अधिक)। कुल  आबादी का लगभग 61 प्रतिशत होने का अनुमान है यानी 840 मिलियन। 2036 के बाद इसमें गिरावट आएगी। प्रसिद्ध जनसांख्यिकीय लाभांश का जीवनकाल छोटा है। सबसे बड़ी समस्या श्रम भागीदारी दर (एल.पी.आर.) है। जून 2023 में यह 40 प्रतिशत से नीचे गिर गई (चीन की एल.पी.आर. 67 प्रतिशत के मुकाबले)। महिला एल.पी.आर. 32.8 प्रतिशत पर बदतर है। कामकाजी उम्र की 60 प्रतिशत आबादी (पुरुष और महिलाएं) और 67.2 प्रतिशत महिलाएं काम क्यों नहीं कर रही हैं या रोजगार की तलाश में क्यों नहीं है? अब एल.पी.आर. पर 8.5 प्रतिशत की बेरोजगारी दर लागू करें। 15 से 24 वर्ष की आयु की बेरोजगारी दर 24 प्रतिशत है। आपको उपयुक्त मानव संसाधनों की विशालता का अंदाजा हो जाएगा। यदि 60 प्रतिशत लोग काम करने में सक्षम या इच्छुक नहीं हैं तो जीवन प्रत्याशा में वृद्धि और शिक्षा के प्रसार का कोई मतलब नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था 4 में से 2 पहियों पर चल रही है। 

शिक्षा की गुणवत्ता : शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ए.एस.ई.आर.) एक राष्ट्रव्यापी घरेलू सर्वेक्षण है जो अन्य बातों के अलावा ग्रामीण भारत में बच्चों के सीखने के परिणामों को भी शामिल करता है। यहां ए.एस.ई.आर. 2022 लगभग सभी ग्रामीण जिलों तक पहुंचा। यहां पढऩे, अंक गणित और अंग्रेजी में सीखने के स्तर पर निष्कर्षों का सारांश दिया गया है : 

राज्यों के बीच भी भारी भिन्नताएं हैं। भारत में स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष 7 से 8 वर्ष हैं। यदि संख्यात्मकता और साक्षरता में हमारे बच्चों के सीखने के यह परिणाम हैं तो हम अपने बच्चों को कैसे पढ़ाएं और उन्हें ऐसी नौकरियों की जिम्मेदारियों को लेने के लिए कौशल प्रदान करें जिनके लिए उच्च स्तर की शिक्षा और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता होती है? 

कृषि में कम उत्पादकता : आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार भारत में चावल की उपज 2718-3521 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर थी जबकि गेहूं की उपज 3507 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर थी। चीन की प्रति हैक्टर उपज (2022) कथित तौर पर 6500 किलोग्राम चावल और 5800 किलोग्राम गेहूं थी। भारत चावल और गेहूं का निर्यातक बन गया है। इससे आत्मसंतुष्टि उत्पन्न हो सकती है। आगे चलकर जलवायु परिवर्तन, शहरों की ओर पलायन, शहरीकरण, पानी की उपलब्धता और बढ़ती इनपुट लागत का मतलब यह होगा कि यदि खेती एक सार्थक और लाभदायक गतिविधि बनी रहनी चाहिए तो प्रति हैक्टेयर उत्पादकता बढऩी चाहिए। 

मुद्रास्फीति और ब्याज दरें : भारतीय उद्योग उच्च मुद्रास्फीति, उच्च ब्याज दरों (उधार देने के कथित जोखिम के कारण) और उच्च टैरिफ के बीच जीवित रहने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहा है। इन सभी से सख्ती से निपटा जाना चाहिए और इन्हें कम किया जाना चाहिए। आपने अपने माननीय प्रधानमंत्री या संबंधित मंत्रियों को इन संरचनात्मक कमियों पर बोलते हुए कब सुना? शायद कभी नहीं। क्या हम चाहते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था 7.5 प्रतिशत की अधिक दर से बढ़े ताकि हम एक मध्यम आय वाला देश बन सकें या क्या हम 5.6 प्रतिशत की दर से आगे बढऩा चाहते हैं और यह दावा करना चाहते हैं कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है?-पी. चिदम्बरम


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