‘महामारी का असर’ लोग काम-धंधे बदलने को मजबूर

punjabkesari.in Sunday, Sep 20, 2020 - 04:23 AM (IST)

महामारी के प्रकोप से लोगों को बचाने के लिए लगाए गए विश्व व्यापी लॉकडाऊन से उद्योग-धंधे ठप्प हो जाने से समस्त विश्व में अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है जिससे भारत भी अछूता नहीं रहा। रोजगार छिन जाने और बंद हो जाने के कारण करोड़ों लोगों को अपने परिवारों को जिंदा रखने के लिए अपने काम-धंधे बदलने पड़े हैं और उन्हें फल, सब्जी, चाय, आइसक्रीम की रेहड़ी लगाने से लेकर मजदूरी करना और रिक्शा तक चलाना पड़ रहा है। 

* एल.एल.बी., एम.बी.ए. और पी.जी. डिप्लोमा इन साइबर सिक्योरिटी की शिक्षा प्राप्त ग्रेटर नोएडा के एक कालेज में असिस्टैंट प्रोफैसर ने नौकरी छिन जाने के बाद अब सब्जी और करियाने की दुकान खोल ली है। 
* इसी प्रकार बेरोजगार हुए कई शिक्षक मजदूरी करने को बाध्य हैं, कुछ सब्जी बेच रहे हैं और कुछ चाय का ठेला लगा कर बैठे हैं। 
* टूरिज्म ठप्प पडऩे के कारण अजय मोदी नामक अहमदाबाद के एक टूर आप्रेटर ने अपने स्टाफ को नौकरी से निकालने की बजाय अपने आफिस  में गुजराती नमकीन बेचने का नया बिजनैस शुरू करके न सिर्फ अपनी रोजी-रोटी का प्रबंध कर लिया बल्कि अपने स्टाफ को भी भुखमरी से बचा लिया है। 

* कम्प्यूटर साइंस में ग्रैजुएट लुधियाना की एक युवती परिवार के पालन-पोषण के लिए आइसक्रीम का ठेला लगा रही है। उसका कहना है कि हालात सामान्य होने पर वह अपने लिए कोई अच्छी नौकरी तलाश कर लेगी। 
* लुधियाना की ही एक अन्य युवती को जब एक लोकल गार्मैंट स्टोर में सेल्स गर्ल की नौकरी से हाथ धोने पड़े तो उसने ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले लोगों तक सामान पहुंचाने के  लिए डिलीवरी गर्ल का काम शुरू कर दिया। वह दिन भर घर-घर सामान पहुंचाती है और रात में पढ़ाई करती है ताकि हालात अनुकूल होने पर कहीं अच्छी नौकरी तलाश कर सके।

* लुधियाना की ही एक अन्य युवती ने सैलून में नौकरी छूट जाने पर एक पैट्रोल पम्प पर काम करना शुरू कर दिया है। कोरोना की मार से देश की हैंडलूम इंडस्ट्री को भी भारी आघात लगा है। लाखों परिवारों की रोजी-रोटी छिन गई है और पीढिय़ों से कलात्मक काम करते आ रहे माहिर बुनकर बेरोजगार हो गए हैं 

* वाराणसी के अनेक बुनकरों ने अपना धंधा बदल लिया है। अपने पिता और दादा से विरासत में यह कला सीखने वाले वे हाथ जो कभी रेशमी साडिय़ों पर सोने और चांदी के तारों की बुनाई किया करते थे आज अपने हथकरघे खड़े करके सब्जियां और चाय बेच रहे हैं। 
* लिनेन और रेशम की साडिय़ों के लिए विख्यात भागलपुर के अनेक कारीगर बेरोजगार होने के बाद आटोरिक्शा चला कर या ‘झालमूरी’ बेच रहे हैं। इनका कहना है कि साडिय़ों की बुनाई का 90 प्रतिशत धंधा चौपट हो चुका है और पीढिय़ों से चली आ रही उनकी कला लुप्त होती जा रही है। 

* यही नहीं बेरोजगारी के शिकार सऊदी अरब में रह कर काम करने वाले 450 भारतीय मजदूरों में से कई मजदूर तो सड़कों पर निकल कर भीख मांगने लगे। स्थानीय प्रशासन ने इसे पसंद नहीं किया और उन्हें जेद्दा के ‘शुमैसी डिटैंशन सैंटर’ में भेज दिया है। हाल ही में इन मजदूरों का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वे रोते हुए दिखाई दे रहे हैं। 

ये तो कुछ उदाहरण मात्र हैं वास्तव में कोरोना महामारी ने आज समूचे विश्व का ताना-बाना बदल कर लोगों को पेट पालने के लिए नए-नए क्षेत्रों में भाग्य आजमाने के लिए विवश कर दिया है। बेशक कहा जा सकता है कि इस आफत ने लोगों को जिंदगी जीने का नया नजरिया दिया है परंतु यह अनुभव बहुत पीड़ादायक है अत: इससे लोगों को जितनी जल्दी छुटकारा मिले उतना ही अच्छा!—विजय कुमार 


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