नेताओं की ‘बेलगाम होती जुबान’ पर अंकुश कैसे लगे

punjabkesari.in Wednesday, Dec 04, 2019 - 12:51 AM (IST)

विडम्बना ही है कि स्वतंत्रता के 72 वर्ष बाद भी लगभग सभी दलों के नेताओं द्वारा परिणामों की चिंता किए बगैर एक-दूसरे पर अनावश्यक छींटाकशी और बिना विचारे बयान देकर समाज में कटुता पैदा करने का सिलसिला थमा नहीं है जिसके मात्र 5 दिनों के उदाहरण निम्र में दर्ज हैं : 

27 नवम्बर को लोकसभा में एक बहस के दौरान भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त कहा जिस पर भारी हंगामा हो गया और उन्हें 29 नवम्बर को लोकसभा में 2 बार माफी मांगनी पड़ी। प्रज्ञा के उक्त बयान पर ब्यावरा से कांग्रेस विधायक गोवर्धन दांगी ने उन्हें जला डालने की धमकी दे डाली जिस पर 30 नवम्बर को प्रज्ञा ने कहा, ‘‘कांग्रेसियों को जिंदा जलाने का पुराना अनुभव है।’’‘‘1984 में सिखों को और नैना साहनी को तंदूर में जलाने तक का अनुभव। कांग्रेस विधायक गोवर्धन दांगी मुझे जलाएंगे। ठीक है, तो मैं आ रही हूं ब्यावरा उनके निवास पर 8 दिसम्बर शाम 4 बजे। जला दीजिए मुझे।’’ 

28 नवम्बर  को बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने अजीबोगरीब आरोप लगाया कि ‘‘मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (तृणमूल कांग्रेस) ने मुझ पर अभद्र टिप्पणी करते हुए मुझे ‘तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त’ कहा।’’ 01 दिसम्बर को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को ‘घुसपैठिया’ बताया और एन.आर.सी. को लेकर सरकार पर निशाना साधते हुए बोले, ‘‘हिंदुस्तान सबके लिए है यह किसी की जागीर है क्या? अमित शाह जी, नरेन्द्र मोदी जी, आप स्वयं बाहरी हैं। घर आपका गुजरात है, आ गए दिल्ली।’’ 

02 दिसम्बर को संसद में अधीर रंजन चौधरी के बयान को लेकर हुए हंगामे के दौरान संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी (भाजपा) ने सोनिया गांधी को ‘घुसपैठिया’ कहा। इस पर अधीर रंजन चौधरी बोले, ‘‘आप हमारी नेता (सोनिया गांधी) को घुसपैठिया कह रहे हैं। यदि हमारा नेता ‘घुसपैठिया’ है तो आपका नेता भी ‘घुसपैठिया’ है।’’ इसी दिन कार्पोरेट टैक्स में कटौती के नुक्सान गिना रहे अधीर रंजन चौधरी ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से कहा, ‘‘कभी-कभी मेरा आपको ‘निर्मला सीतारमण’ की बजाय ‘निर्बला सीतारमण’ कहने को मन करता है। सोचता हूं कि आपको ‘निर्मला’ की जगह ‘निर्बला’ कहना ठीक रहेगा।’’ 

02 दिसम्बर को ही झारखंड में चुनावी रैली में गृहमंत्री अमित शाह बोले, ‘‘राहुल गांधी अक्सर पूछते हैं कि एन.आर.सी. क्यों ला रहे हो? घुसपैठियों को क्यों निकाल रहे हो? ये कहां जाएंगे? क्या खाएंगे? हम पूछते हैं कि क्यों? ये आपके चचेरे भाई हैं क्या?’’02 दिसम्बर को ही राहुल गांधी ने झारखंड के सिमडेगा में एक रैली में बोलते हुए कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबों के पैसे छीन कर विजय माल्या, अनिल अंबानी, मेहुल चौकसी जैसे चोरों की जेबें भरीं।’’02 दिसम्बर को ही हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज (भाजपा) ने कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुर्जेवाला के जी.डी.पी. दर गिरने बारे बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘सुर्जेवाला तो बुद्धि विहीन हो गए हैं।’’ 

02 दिसम्बर को पंजाब के धर्मकोट से कांग्रेसी विधायक सुखजीत सिंह काका लोहगढ़ जब डी.जे. संचालक युवक कर्म सिंह की हत्या के मामले में सिविल अस्पताल, मोगा में अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए धरना दे रहे परिवार का हाल जानने पहुंचे तो वहां उनके बयान से बखेड़ा खड़ा हो गया। उन्होंने लोगों के सामने ही कह दिया, ‘‘एदां तां कई मुंडे मरदे रैहंदे हन। एह केहड़ा पहली वार होया है।’’ यह सुनते ही भड़के लोगों ने उनकी कार पर हमला कर दिया तथा कार पर पत्थर बरसाए। इससे कार का शीशा टूट गया और उन्होंने सिविल अस्पताल के एस.एम.ओ. के दफ्तर में छिप कर जान बचाई। 

बिना सोचे-समझे मुंह से निकाली हुई बातों और बदजुबानी से पैदा होने वाली कटुता के ये तो चंद उदाहरण मात्र हैं। समझ से बाहर है कि जन प्रतिनिधि और विधि निर्माता कहलाने वाले हमारे नेतागण ऐसे बयानों से अपना और देश का कौन-सा भला कर रहे हैं। इस तरह के बयानों से समाज में सिवाय कटुता और वैमनस्य पैदा होने के और कुछ हासिल होने वाला नहीं है। लिहाजा सभी पार्टियों को ऐसी बयानबाजी पर प्रभावशाली ढंग से रोक लगानी चाहिए क्योंकि : और भी गम हैं भारत में, फालतू की बयानबाजी के सिवा।—विजय कुमार  
                                                        


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