अब बहुओं और पोते-पोतियों को भी बनाया जाएगा अपने बुजुर्गों की सेवा के लिए जवाबदेह

punjabkesari.in Tuesday, Mar 27, 2018 - 02:26 AM (IST)

देश में 60 वर्ष से अधिक आयु के 14 करोड़ वरिष्ठï नागरिक हैं तथा संतानों द्वारा परित्यक्त और उपेक्षित वरिष्ठ नागरिकों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। इसी को देखते हुए सबसे पहले हिमाचल सरकार ने 2002 में ‘वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून’ बनाया था। फिर संसद द्वारा ‘माता-पिता और वरिष्ठï नागरिक देखभाल व कल्याण अधिनियम-2007’ लागू किया गया जिसके अनुसार बुजुर्गों की देखभाल न करने पर 3 मास तक कैद हो सकती है तथा इसके विरुद्ध अपील की अनुमति भी नहीं है। 

उक्त अधिनियम लागू किए जाने के बाद गुजारा भत्ता की अदायगी सहित इसके प्रावधान लागू करने के लिए ट्रिब्यूनल गठित किए गए थे जहां बुजुर्ग अपनी संतानों अथवा रिश्तेदारों द्वारा उनकी जमीन-जायदाद जबरदस्ती ले लेने पर गुजारा भत्ता तथा राहत प्राप्त करने के लिए गुहार कर सकते हैं परंतु उनका सही ढंग से पालन न होने के कारण बुजुर्ग बुरी तरह उपेक्षित हैं। संतानों द्वारा परित्यक्त वरिष्ठï नागरिकों और उनके लिए काम करने वाली एन.जी.ओ. से प्राप्त फीडबैक में यह तथ्य सामने आया कि  ‘माता-पिता और वरिष्ठï नागरिक देखभाल व कल्याण अधिनियम-2007’ में दर्ज शर्तों और देय भत्तों पर पुनॢवचार करने की जरूरत है। 

एक रिपोर्ट के अनुसार 53.2 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जिनमें माता-पिता से दुव्र्यवहार का कारण सिर्फ सम्पत्ति है। एन.जी.ओ. ‘हैल्प एज’ ने 2014 में जारी एक रिपोर्ट में खुलासा किया था कि देश में एक करोड़ से अधिक बुजुर्गों को उनके ही बच्चों ने सम्पत्ति विवाद के चलते घर से निकाल दिया है। लिहाजा केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय इसके लिए उक्त अधिनियम में संशोधन करने जा रहा है जिसके अनुसार माता-पिता को प्रताडि़त कर सम्पत्ति अपने नाम करवा लेने के बाद उन्हें बेसहारा छोडऩे वाले बच्चों पर कठोर दंड प्रावधान लागू किए जाएंगे और ऐसे मामलों में सिर्फ एक शिकायत पर बच्चों को सम्पत्ति मां-बाप को लौटानी पड़ेगी। 

लगातार ऐसी शिकायतें मिल रही थीं जिनमें बच्चों ने सम्पत्ति अपने नाम करवा लेने के बाद बूढ़े माता-पिता को घर से निकाल दिया। ऐसे मामलों को रोकने के लिए केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने अधिकारियों को अधिनियम में बदलाव के निर्देश दिए थे। मंत्रालय द्वारा अधिनियम में संशोधन को अंतिम रूप दिया जा चुका है और जल्दी ही इसे कैबिनेट में रखा जाएगा जहां से स्वीकृति के बाद इसे राज्यों को भेज दिया जाएगा। इस कानून को लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों की होगी तथा इसके अन्तर्गत पीड़ित माता-पिता राज्यों के मैंटीनैंस ट्रिब्यूनल या अपीलेट ट्रिब्यूनल, जिनके पास सिविल कोर्ट के अधिकार होंगे, में शिकायत कर सकेंगे। 

यही नहीं, केंद्र सरकार बुजुर्गों के कल्याण के लिए बच्चों की परिभाषा का दायरा और उन्हें दिए जाने वाले भरण-पोषण भत्ते की सीमा बढ़ाने के उद्देश्य से संबंधित प्रावधानों में बदलाव करने पर भी विचार कर रही है। इसके अंतर्गत सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने इस समय संतानों पर लागू 10,000 रुपए भरण-पोषण भत्ते की सीमा समाप्त करके इसे वरिष्ठï नागरिकों और उनके बच्चों की आय के साथ जोडऩे का प्रस्ताव किया है। इसके साथ ही मंत्रालय ने वरिष्ठï नागरिकों के बच्चों की परिभाषा का दायरा बढ़ा कर उसमें गोद लिए अथवा सौतेले बच्चों, दामादों और बहुओं, पोते-पोतियों और दोहते-दोहतियों, यहां तक कि नाबालिगों को शामिल करने की सिफारिश की है। इस समय इस परिभाषा में नाबालिगों को छोड़ कर केवल बेटे, बेटियां और पोते-पोतियां शामिल हैं। अब यह प्रस्ताव स्वीकृति के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल को भेजा जाएगा। अधिकारी के अनुसार प्रस्तावित संशोधनों द्वारा यदि वरिष्ठï नागरिकों के बच्चों अथवा उनकी देखभाल करने वालों ने उनकी प्रापर्टी पर कब्जा कर रखा है या उन्हें मिलने वाली है तो वे बुजुर्गों की देखभाल करने के लिए बाध्य होंगे। 

सरकार द्वारा ‘माता-पिता और वरिष्ठï नागरिक देखभाल व कल्याण अधिनियम-2007’ के दायरे में माता-पिता द्वारा संतानों को दी गई सम्पत्ति वापस लेने तथा गोद लिए या सौतेले बच्चों, दामादों व बहुओं, पोते-पोतियों, दोहते-दोहतियों तथा नाबालिगों को शामिल करने का विचार अच्छा है। अत: इन संशोधनों को जल्द से जल्द लागू करना चाहिए क्योंकि इसमें जितनी देर होगी उतनी ही तिल-तिल कर मरने वाले बुजुर्गों की पीड़ा में वृद्धि होगी। ये संशोधन लागू होने से संतानों द्वारा उपेक्षित बुजुर्गों की जीवन-यापन की स्थितियों में कुछ सुधार अवश्य होगा।—विजय कुमार 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Punjab Kesari

Recommended News

Related News