देश में बाढ़ से भयंकर तबाही और मौतों का सिलसिला लगातार जारी

punjabkesari.in Sunday, Aug 06, 2017 - 11:01 PM (IST)

मानसून के दौरान प्रतिवर्ष भारत में कहीं न कहीं आने वाली बाढ़ से करोड़ों लोगों की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित होती है। इस वर्ष देश के अनेक राज्यों गुजरात, बंगाल, मध्यप्रदेश, असम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी भाग, ओडिशा, बिहार, झारखंड आदि में भारी वर्षा से नदियां और नाले उफान पर हैं तथा बादल फटने से भी मौतें हो रही हैं। 

एक अनुमान के अनुसार अब तक देश में कम से कम 700 लोगों तथा 4000 से अधिक मवेशियों की मृत्यु हो चुकी है और सम्पत्ति को होने वाली क्षति इसके अलावा है तथा अभी भी यह सिलसिला थमा नहीं है। गुजरात में पिछले 112 वर्षों में इतनी वर्षा नहीं हुई जितनी इस वर्ष वहां हुई है। अनेक स्थानों पर पानी मकानों की छतों तक पहुंच गया। एक अनुमान के अनुसार गुजरात में 200 के लगभग लोगों की मृत्यु हुई है तथा 1.30 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के अनुसार राज्य के कुछ हिस्से इस समय निकृष्टï बाढ़ की लपेट में हैं। बिहार में मई के बाद से अब तक बिजली गिरने तथा बाढ़ से 140 लोगों की मृत्यु हो चुकी है जबकि झारखंड में भी भीषण वर्षा के कारण जान-माल की भारी क्षति हुई और अनेक क्षेत्र जलमग्र हो गए हैं। 

बंगाल में 39, असम में कम से कम 71 लोगों की मृत्यु होने के समाचार हैं। काजीरंगा नैशनल पार्क में कम से कम 91 वन्य जीवों की मृत्यु हुई जिनमें 7 गैंडे भी शामिल हैं। हिमाचल प्रदेश के शिमला, कुल्लू और मंडी जिलों में वर्तमान मानसून ने सर्वाधिक तबाही मचाई है। प्रदेश में इस मानसून सीजन के दौरान मृतकों की संख्या 16 तक पहुंच गई है और भारी वर्षा के कारण 220 से अधिक कच्चे-पक्के मकानों को क्षति पहुंची है। अभी तक 328 करोड़ रुपए की चल-अचल सम्पत्ति बरसात के कारण नष्ट हुई है। राजस्थान में कई दिनों से रुक-रुक कर हो रही वर्षा के परिणामस्वरूप लगभग डेढ़ दर्जन लोगों की मृत्यु हो चुकी है और जोधपुर में सुध माता बांध टूट जाने के कारण कई गांवों में पानी भर गया है। मणिपुर में भी बाढ़ से सामान्य जन-जीवन ठप्प होकर रह गया है। 

उत्तर प्रदेश के बहराइच के दर्जनों गांव पानी की लपेट में हैं और बड़ी संख्या में लोग अपने बच्चों को लेकर खुले आसमान के नीचे तटबंधों पर जिंदगी गुजारने को विवश हैं। लगभग सभी स्थानों पर करोड़ों की फसल बर्बाद हो गई है। बड़ी संख्या में पुल, रास्ते, सड़कें, रेल पटरियां आदि क्षतिग्रस्त हुई हैं। बाढ़ प्रभावित राज्यों में जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है और बीमारी फैलने का खतरा भी पैदा हो गया है।

सेना के तीनों अंगों तथा अन्य एजैंसियों द्वारा राहत कार्य जोरों पर है और प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के अलावा उनके पुनर्वास के लिए आर्थिक सहायता भी दी जा रही है जिसे पीड़ित राज्यों द्वारा अपर्याप्त बताया जा रहा है। प्राकृतिक आपदाओं से विनाश की प्रति वर्ष यही कहानी दोहराई जाती है और प्रति वर्ष सुरक्षा प्रबंध पहले से अधिक मजबूत करने की घोषणाएं की जाती हैं परन्तु क्रियात्मक रूप से ऐसा कुछ भी नहीं किया जाता जिससे इस विनाश लीला से स्थायी बचाव को सुनिश्चित किया जा सके। 

पर्यावरण नियमों के विपरीत बड़े पैमाने पर बांधों का निर्माण भी देश में बाढ़ों का कारण बना है। नदियों के किनारे मकानों के निर्माण में किसी निश्चित प्रक्रिया का पालन न करना, वनों और पेड़ों का अंधाधुंध कटान, जल विद्युत परियोजनाओं के लिए नदियों का बहाव मोडऩे की कोशिश इसके मुख्य कारण हैं। इसी प्रकार नदियों को आपस में जोडऩे की योजना का कागजों तक ही सीमित रह जाना भी बाढ़ प्रबंधन में बाधा बना हुआ है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बोर्ड बना होने के बावजूद, गठन के समय से ही इसने कोई खास काम नहीं किया। बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद हमने अभी तक कोई सबक नहीं सीखा।


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