‘देश के शासन और प्रशासन में कमजोरियों बारे’‘अदालतों की आंखें खोलने वाली टिप्पणियां’

punjabkesari.in Thursday, Feb 25, 2021 - 03:14 AM (IST)

आज जबकि देश में लोकतंत्र के तीन स्तम्भों कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका में से दो मुख्य स्तम्भ कार्यपालिका और विधायिका को निष्क्रिय माना जा रहा है, ऐसी स्थिति में सिर्फ न्यायपालिका ही विभिन्न केसों की सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणियां और आदेश जारी करके शासन और प्रशासन को झिंझोड़ रही है। इसी बारे फरवरी माह में ही देश की अदालतों की ओर से विभिन्न महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई के दौरान चार महत्वपूर्ण टिप्पणियां आई हैं : 

* 15 फरवरी को नशों के सेहत पर दुष्प्रभाव के अलावा इसके परिणामस्वरूप होने वाली मौतों और परिवारों की तबाही को रेखांकित करते हुए एक नशा तस्कर की नियमित जमानत याचिका रद्द करते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच.एस. मदान ने कहा : ‘‘चूंकि नशे ने समाज का ताना-बाना बिगाड़ कर रख दिया है और यह बड़ी तेजी से युवाओं का जीवन नष्ट कर रहा है, इसलिए नशे के सौदागरों के साथ किसी भी तरह का लिहाज करना उनके गलत काम को बढ़ावा देने के समान है अत: न्यायालय को नशे के व्यापारियों से कोई सहानुभूति नहीं है। ये चंद पैसों के लिए लोगों को मौत के मुंह में धकेल रहे हैं।’’ 

* 23 फरवरी को सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीशों न्यायमूॢत एन.वी. रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस पर आधारित पीठ ने प्रभावशाली लोगों द्वारा न्याय की पकड़ से बचते चले जाने की बुराई पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उत्तर प्रदेश में एक व्यापारी का अपहरण कर उसे जेल ले जाने और वहां उस पर हमले के मामले में पूर्व सांसद अतीक अहमद के बेटे मोहम्मद उमर की पेशगी जमानत याचिका रद्द करते हुए माननीय न्यायाधीशों ने कुछ ऐसा कहा : ‘‘देश में कुछ ऐसे सुविधा-सम्पन्न लोग भी हैं जिन्हें उनके विरुद्ध गैर जमानती वारंट जारी होने के बावजूद पुलिस पकड़ने में असमर्थ है।’’

* 23 फरवरी को ही सुप्रीमकोर्ट ने परीक्षाओं में सामूहिक नकल और प्रश्नपत्र लीक होने से छात्रों को होने वाली असुविधा और उनके करियर पर पड़ने वाले कुप्रभाव के मुद्दे पर भी एक महत्वपूर्ण टिप्णणी की। प्रश्नपत्र लीक होने के 2016 के एक मामले में संलिप्त एक उच्चाधिकारी को कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा केस से अलग करने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए माननीय मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे और माननीय न्यायाधीशों ए.एस. बोपन्ना तथा वी. रामासुब्रह्मण्यन पर आधारित पीठ ने कहा : ‘‘परीक्षाओं में सामूहिक नकल और प्रश्नपत्र लीक होने से समूची शिक्षा प्रणाली खराब और दूषित हो रही है। ऐसे लोग देश की शिक्षा प्रणाली को तबाह कर रहे हैं। आखिर ऐसे लोगों की जमानत क्यों न रद्द की जाए? ’ 

* 23 फरवरी को ही दिल्ली की पटियाला हाऊस अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश न्यायमूर्ति धर्मेंद्र राणा ने सोशल मीडिया पर किसानों के विरोध प्रदर्शन से संबंधित ‘टूल किट’ सांझा करने के मामले में गिरफ्तार जलवायु कार्यकत्र्ता दिशा रवि की जमानत याचिका पर फैसला सुनाने से पूर्व अंग्रेजों के जमाने की एक अदालत द्वारा सुनाए गए 1942 के एक फैसले का उल्लेख किया : ‘‘सरकार के अहंकार को चोट पहुंचने के आधार पर ही (किसी पर) देशद्रोह का मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता।’’ 

फिर उन्होंने अनुच्छेद 19 के हवाले से दिशा रवि को जमानत देते हुए कहा : ‘‘लोगों को सिर्फ इसलिए जेल में नहीं डाला जा सकता कि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं क्योंकि किसी भी लोकतांत्रिक देश के नागरिक ही सरकार के सच्चे प्रहरी होते हैं। दिशा के विरुद्ध ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि उसने भारत को बदनाम करने के इरादे से अभियान चलाया।’’ माननीय न्यायाधीश ने ऋग्वेद का एक श्लोक भी पढ़ा, ‘आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरितासउद्भिद:’ अर्थात हमारे पास प्रत्येक दिशा से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों, न ही इन्हें रोका जा सके और न ही ये किसी के द्वारा दबाए जा सकें। 

नशे के समाज पर दुष्प्रभाव, प्रभावशाली लोगों द्वारा अपनी स्थिति के दुरुपयोग के दम पर कानून से बचने, परीक्षाओं में सामूहिक नकल और प्रश्नपत्र लीक होने से छात्रों के भविष्य पर कुप्रभाव तथा किसी विषय पर असहमति के चलते सत्ता प्रतिष्ठान का कोपभाजन बनने जैसे विषयों पर विभिन्न न्यायालयों की उक्त टिप्पणियां आंखें खोलने वाली और शासन एवं प्रशासन में व्याप्त अनेक त्रुटियों को उजागर करने वाली हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है।—विजय कुमार 


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