अफगानिस्तान से अमरीका के जाने के बाद भी दुनिया के लिए समस्या ज्यों की त्यों

punjabkesari.in Monday, Jul 10, 2023 - 04:38 AM (IST)

2 वर्ष पूर्व अगस्त 2021 में जब अफगानिस्तान से जाते समय अमरीका 7.12 अरब डालर के हथियार और उपकरण वहां छोड़ गया था उन पर अब तालिबान का कब्जा है। ये हथियार अब उन दूरदराज के इलाकों में मुसीबत का कारण बनते जा रहे हैं जहां आतंकवादी अमरीका के साथियों पर हमले कर रहे हैं। हथियारों के बड़े स्तर पर खरीदार आतंकवादी गिरोह हैं। दक्षिणी और पूर्वी अफगानिस्तान के व्यापारी अब तालिबानी सरकार की इजाजत से आटोमैटिक असाल्ट राइफलें और हैंडगन आदि बेच रहे हैं जिनके लिए गोला-बारूद रूस, पाकिस्तान, चीन, तुर्की व आस्ट्रिया से आ रहा है। 

आतंकवाद का कारोबार खूब तेजी से फैल रहा है। अफगानिस्तान के इन इलाकों में रॉकेट, बम,  ग्रेनेड लांचर, नाइट विजन कैमरे, नाइट विजन चश्मे, स्नाईपर राइफल और अन्य तरह के हथियार सड़कों पर बेचे जा रहे हैं। हथियारों के बढ़ रहे रुझान के चलते इनकी कीमतें चढऩे से अपराधी गिरोहों की कमाई में बड़ा उछाल आया है। अमरीकी सेनाओं द्वारा छोड़ी गई एम-4 असाल्ट राइफल 2400 डालर में बिक रही हैै। हथियारों के इस बड़े वैश्विक कारोबार के केंद्र में अलकायदा का समर्थक तालिबान ही है। इससे पहले तालिबानी हैरोइन से बड़ी कमाई करते थे, लेकिन अफगानिस्तान पर तालिबान की विजय ने आतंकी समूहों को हथियारों की ओर खींचा है और तालिबानी अब इन आतंकी समूहों को छोटे हथियार बेच रहे हैं। पाकिस्तान का तहरीक-ए-तालिबान (टी.टी.पी.) और ब्लूचिस्तान के अलगाववादी समूह अमरीका में बने हथियारों का इस्तेमाल पुलिस और पाकिस्तानी सेना के जवानों को मारने के लिए कर रहे हैं। 

हाल ही में पाकिस्तानी पुलिस पर आतंकियों ने अमरीकी नाइट विजन कैमरे का इस्तेमाल करके हमला किया। तालिबान के नंगरहार इलाके से ये नाइट विजन कैमरे पाकिस्तान के आतंकी समूहों को 500 से 1000 डालर तक मूल्य पर बेचे जा रहे हैं। इन हाईटैक अमरीकी हथियारों ने पाकिस्तान के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है क्योंकि आतंकियों के पास इतनी एडवांस तकनीक के हथियार होने के कारण पाकिस्तान के आतंक विरोधी तमाम अभियान विफल हो रहे हैं। विशेषकर आतंकवादी नाइट विजन कैमरे और हथियार पाकिस्तान की सेना और सुरक्षाबलों के विरुद्ध लगातार इस्तेमाल कर रहे हैं। 

हाल ही में कश्मीर में हुए कुछ आतंकी हमलों में अमरीका में बने हथियारों का इस्तेमाल सामने आया है जबकि इसराईल की गाजा पट्टी में भी आतंकी इन हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अफगान सेना के एक पूर्व जनरल यासिन जिया ने कहा कि इन हथियारों की आपूर्ति टी.टी.पी. को हो रही है और यह हथियार उत्तरी अफगानिस्तान के साथ-साथ पाकिस्तान में भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं इन्हें रोकना जरूरी है। अमरीका और तालिबान के कारण ये हथियार पूरी दुनिया में उन्हीं रास्तों से आतंकी गिरोहों को जा रहे हैं जिन रास्तों से नशे, हैरोइन तथा अन्य प्रकार की अवैध तस्करी होती है। अफ्रीका के अलशबाब आतंकी गिरोह और फिलीपीन्स, थाइलैंड, मलेशिया, श्रीलंका तथा अरब देशों के ओसामा बिन लादेन व अल-कायदा के समर्थक गिरोहों के पास भी ये हथियार पहुंच रहे हैं। 

अमरीकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका ने 2002 से लेकर अफगानिस्तान छोडऩे तक अफगान सेना को हथियारों से लैस करने के लिए 18.6 बिलियन डालर खर्च किए। अमरीका ने लगभग 6 लाख हथियार अफगानिस्तान मंगवाए थे। इसके अलावा 300 के लगभग विमान और विभिन्न माडलों के 80,000 के लगभग वाहन मंगवाए गए थे। इनमें से लगभग 3 लाख हल्के हथियारों, 26,000 बड़े हथियारों और 61,000 सैन्य वाहनों पर तालिबानी समूह ने कब्जा कर लिया। अफगानिस्तान में मौजूद अमरीकी हथियारों का इस्तेमाल तालिबानियों द्वारा ही किया जाता रहा क्योंकि ये हथियार अफगानिस्तान के भ्रष्ट सैन्य अधिकारियों ने तालिबानी समूहों को बेच दिए थे और अमरीका के सैन्य हैडक्वार्टर पैंटागन को इसकी कानों-कान खबर ही नहीं हुई कि ये हथियार कहां गए! 

इन बाजारों में अफगानिस्तान के युद्ध वाले इलाकों में छोड़े गए हथियारों की बिक्री तो हो रही है और इन इलाकों में हथियारों की मुरम्मत करने वाली फैक्टरियों को बड़ा लाभ हो रहा है जिनकी अमरीका ने ही शुरूआत की थी और हथियारों की मुरम्मत करने वाले कारीगरों को ट्रेङ्क्षनग दी थी। उन्हें तालिबान की सरकार में दोबारा काम पर बुलाया जा रहा है। तालिबानी समर्थकों और स्थानीय नागरिकों से हथियार वापस लेने के प्रयास विफल हो रहे हैं क्योंकि इन हथियारों का ट्रैक रिकार्ड रखना अब आसान नहीं है। ऐसे में यह उन देशों के लिए बड़ी समस्या खड़ी करता रहेगा जो आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। 


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