दिल्ली की झोंपड़-पट्टी जिसके निवासी रात को बच्चों को खाना नहीं देते

punjabkesari.in Monday, Jun 20, 2016 - 02:03 AM (IST)

देश की राजधानी होने के साथ-साथ दिल्ली क्रियात्मक रूप से बलात्कारों और अपराधों की राजधानी भी बन गई है और हैरानी होती है कि जब देश की राजधानी का यह हाल है तो देश के बाकी हिस्सों में स्थिति कैसी होगी। 

 
केंद्र सरकार के स्वच्छता अभियान के अंतर्गत बड़े पैमाने पर शौचालय बनवाने का अभियान चलाया जा रहा है परंतु यह अपने लक्ष्य से बहुत दूर है और देश की एक बड़ी जनसंख्या को शौचालय उपलब्ध न होने के तरह-तरह के दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। 
 
दिसम्बर 2013 और मार्च 2015 के बीच 15 महीनों की अवधि में बाहरी दिल्ली में शाहबाद डेरी की झोंपड़-पट्टïी में रहने वाले 171 बच्चे इसके निकट ही स्थित जंगल में गए और वापस नहीं लौटे। इनमें से 66 बच्चे वे थे जो झोंपड़-पट्टïी में शौचालय न होने के कारण जंगल में शौच के लिए गए थे।
 
गायब होने वाले बच्चों में से 5 बच्चों की हत्या कर दी गई जिनमें से 4 बच्चों की आयु 10 वर्ष से कम थी, 28 लड़कियों से बलात्कार किया गया और अन्य 17 लड़कियों को यौन शोषण का शिकार बनाया गया। 
 
एन.जी.ओ. ‘सक्षम’ के अनुसार शाहबाद डेरी की झोंपड़-पट्टी में रहने वाले 500 परिवारों के लिए एक भी शौचालय नहीं है जिस कारण उन्हें शौच हेतु नजदीकी जंगल में जाना पड़ता है जहां महिलाएं और बच्चे बलात्कारियों और अपराधी तत्वों के निशाने पर होते हैं। 
 
इस झोंपड़-पट्टी में 45 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे ऐसे हैं जिन्हें रात को खाने के लिए इसी डर से कुछ नहीं या बहुत कम दिया जाता है ताकि उन्हें रात के समय शौच जाने की जरूरत न पड़े। इस अवैज्ञानिक तरीके का परिणाम यह निकला कि झोंपड़-पट्टी की अधिकांश महिलाएं व बच्चे कुपोषण के शिकार तथा अंडर वेट हो गए हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक है। 
 
अपनी दुर्दशा के संबंध में बताते हुए इसी झोंपड़-पट्टी में रहने वाली राजकुमारी नामक एक 45 वर्षीय महिला का कहना है कि ‘‘हम लोग हमेशा तनाव में रहते हैं...ऐसे अनेक मामले हुए हैं जब अपराधी तत्व महिलाओं को घसीट कर जंगल में ले गए।’’
 
बच्चों के कल्याण के लिए कार्यरत एन.जी.ओ. ‘क्राई’ की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोयत्रा के अनुसार, ‘‘बच्चों के रात के खाने की छुट्टी करना उनमें दीर्घकालिक समस्याएं पैदा कर सकता है। खाना न मिलने के कारण नहीं बल्कि शौचालय न होने के कारण बच्चों को  भूखे पेट सोने के लिए विवश करना दुखद है।’’ 
 
हालांकि उक्त झोंपड़-पट्टी के संबंध में एन.जी.ओ. द्वारा इस रहस्योद्घाटन के बाद दिल्ली सरकार नींद से जागी है और उसने जुलाई के अंत तक 2 प्री फैब्रिकेटिड टायलैट लगवाने और 4 अगले वर्ष जनवरी तक लगवाने के आदेश जारी किए हैं परंतु यह तो ऊंट के मुंह में जीरे के ही समान है क्योंकि इस झोंपड़-पट्टी के लिए इससे कहीं अधिक शौचालयों की आवश्यकता है। 
 
यही नहीं जिन स्थानों पर सार्वजनिक शौचालय बनाए भी गए हैं उनमें से या तो अधिकांश बंद पड़े हैं या फिर अत्यंत बुरी हालत में हैं। दिल्ली ही नहीं, देश में अन्य स्थानों पर भी सार्वजनिक शौचालयों के संबंध में स्थिति बहुत अधिक संतोषजनक नहीं है।
 
अक्तूबर 2014 के बाद से केंद्र सरकार ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के अंतर्गत शौचालय आदि बनवाने पर 9093 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है लेकिन अभी तक इस योजना के परिणामों का कोई आकलन नहीं किया गया है ।
 
दूसरी ओर नैशनल सैम्पल सर्वे आर्गेनाइजेशन (एन.एस.एस.ओ.) द्वारा इस वर्ष के आरंभ में तैयार की गई स्वच्छता स्थिति रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण इलाकों में जिन घरों में शौचालय बने हैं उनमें से केवल 42.5 प्रतिशत शौचालयों में ही इस्तेमाल के लिए पानी उपलब्ध है। 
 
शहरी इलाकों में स्थिति इससे बेहतर है परंतु वहां भी 87 प्रतिशत शौचालयों को ही पानी उपलब्ध है। इतना ही नहीं शौचालयों के जल-मल की निकासी के लिए ड्रेनेज प्रणाली भी संतोषजनक नहीं होने के कारण स्वच्छ भारत मिशन अपने लक्ष्य से काफी दूर है और इसकी पूर्ति करने के लिए पर्याप्त संख्या में शौचालयों की व्यवस्था करने के साथ-साथ समुचित पानी की आपूर्ति और संतोषजनक ड्रेनेज प्रणाली का निर्माण करना भी जरूरी है। 
 

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